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Pride Month: क्या है प्राइड माह ? इसे जून में क्यों मनाया जाता है?

प्राइड माह, जो हर साल जून में मनाया जाता है, लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर (LGBTQ+) समुदाय के अधिकारों, संस्कृति और इतिहास को सम्मान देने और जागरूकता बढ़ाने का एक वैश्विक उत्सव है। यह माह समानता, स्वीकार्यता और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, साथ ही LGBTQ+ समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके संघर्षों को उजागर करता है।

जून में प्राइड माह मनाने का कारण 1969 में न्यूयॉर्क शहर में हुई स्टोनवॉल दंगे (Stonewall Riots) की ऐतिहासिक घटना है। 28 जून, 1969 को एक गे बार, स्टोनवॉल इन में पुलिस छापेमारी के खिलाफ LGBTQ+ समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किया। यह घटना LGBTQ+ अधिकार आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने समुदाय के लिए संगठित सक्रियता को प्रेरित किया। इस घटना की पहली वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए 1970 में पहली प्राइड परेड आयोजित की गई, और तब से जून को प्राइड माह के रूप में मनाया जाता है।

विश्व स्तर पर, प्राइड माह में परेड, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कार्यशालाएं और सामुदायिक आयोजन होते हैं। भारत में, प्राइड मार्च जैसे दिल्ली क्वीर प्राइड और मुंबई क्वीर आजादी मार्च, LGBTQ+ समुदाय के लिए दृश्यता और समर्थन बढ़ाने का काम करते हैं। भारत में 2018 में धारा 377 को निरस्त करना एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने समलैंगिक संबंधों को अपराधमुक्त किया, और प्राइड माह इस प्रगति का उत्सव है।

स्टोनवॉल दंगों की कहानी

स्टोनवॉल दंगे (Stonewall Riots) आधुनिक LGBTQ+ अधिकार आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ माने जाते हैं। 28 जून, 1969 को न्यूयॉर्क शहर के ग्रीनविच विलेज में स्टोनवॉल इन (Stonewall Inn) नामक एक गे बार में हुई पुलिस छापेमारी ने एक ऐसी घटना को जन्म दिया, जिसने न केवल अमेरिका बल्कि पूरे विश्व में LGBTQ+ समुदाय के लिए समानता और स्वतंत्रता की लड़ाई को प्रेरित किया। यह दंगे एक रात की घटना नहीं थे, बल्कि दशकों तक चले उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ एक विद्रोह का प्रतीक थे। इस रिपोर्ट में स्टोनवॉल दंगों की पृष्ठभूमि, घटनाओं, प्रभाव और महत्व को विस्तार से बताया गया है, जो ऐतिहासिक रिकॉर्ड और प्रामाणिक स्रोतों पर आधारित है।

पृष्ठभूमि: 1960 के दशक में LGBTQ+ समुदाय की स्थिति

1960 के दशक में अमेरिका में समलैंगिकता को सामाजिक और कानूनी रूप से अपराध माना जाता था। समलैंगिक संबंधों को कई राज्यों में अवैध ठहराया गया था, और LGBTQ+ व्यक्तियों को सामाजिक बहिष्कार, हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता था। कुछ प्रमुख तथ्य:

  • कानूनी उत्पीड़न: न्यूयॉर्क में समलैंगिक गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले कानून थे, जैसे कि "सार्वजनिक अनैतिकता" के खिलाफ कानून, जिसके तहत समलैंगिक जोड़े को सार्वजनिक रूप से स्नेह दिखाने या एक साथ नृत्य करने पर गिरफ्तार किया जा सकता था।

  • पुलिस छापेमारी: स्टोनवॉल इन जैसे गे बार और क्लब, नियमित रूप से पुलिस छापेमारी का निशाना बनते थे। इन छापों में बार मालिकों और संरक्षकों को गिरफ्तार किया जाता था, और उनकी पहचान को सार्वजनिक करके सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ता था।

  • सामाजिक बहिष्कार: LGBTQ+ व्यक्ति नौकरी, आवास और सामाजिक स्वीकृति से वंचित रहते थे। समलैंगिकता को उस समय मानसिक बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

  • सुरक्षित स्थान की कमी: स्टोनवॉल इन जैसे गे बार LGBTQ+ समुदाय के लिए कुछ गिने-चुने सुरक्षित स्थान थे, जहां वे अपनी पहचान को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकते थे। हालांकि, ये स्थान भी माफिया द्वारा संचालित थे, जो पुलिस को रिश्वत देकर इन्हें चलाते थे।

स्टोनवॉल इन, ग्रीनविच विलेज में क्रिस्टोफर स्ट्रीट पर स्थित, एक ऐसा स्थान था जहां समलैंगिक, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर और ड्रैग क्वीन्स सहित विविध LGBTQ+ समुदाय के लोग एकत्र होते थे। यह बार विशेष रूप से निम्न-आय वर्ग, रंगभेद का सामना करने वाले और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक आश्रय स्थल था।

दंगों की पहली रात के दौरान फ्रीलांस फोटोग्राफर जोसेफ एम्ब्रोसिनी द्वारा ली गई एकमात्र ज्ञात तस्वीर में LGBTQ युवाओं को पुलिस के साथ हाथापाई करते हुए दिखाया गया है।

28 जून, 1969: स्टोनवॉल दंगों की शुरुआत

28 जून, 1969 की सुबह करीब 1:20 बजे, न्यूयॉर्क शहर की पुलिस ने स्टोनवॉल इन पर छापा मारा। यह छापा सामान्य नहीं था, क्योंकि इस बार पुलिस ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के कार्रवाई की, जो माफिया संचालकों के साथ उनके सामान्य समझौते के खिलाफ था। छापे का औपचारिक कारण बार में शराब की अवैध बिक्री था, लेकिन वास्तव में यह LGBTQ+ समुदाय को दबाने का एक प्रयास था।

पुलिस ने बार में प्रवेश किया और सभी संरक्षकों को बाहर निकालने का आदेश दिया। सामान्य प्रक्रिया के अनुसार, पुलिस ने बार के कर्मचारियों और उन लोगों को गिरफ्तार करना शुरू किया जो "उचित लिंग के कपड़े" नहीं पहने थे (उस समय न्यूयॉर्क में एक कानून था जिसमें कहा गया था कि व्यक्ति को अपने लिंग के अनुरूप कपड़े पहनने चाहिए)।

इस बार, संरक्षकों ने पुलिस के आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया। बार के बाहर भीड़ जमा होने लगी, जिसमें स्थानीय लोग और राहगीर भी शामिल थे। पुलिस की क्रूरता, जैसे संरक्षकों को मारना और उन्हें गिरफ्तार करना, ने भीड़ को उत्तेजित कर दिया।

एक ट्रांसजेंडर महिला, मॉर्शा पी. जॉनसन (Marsha P. Johnson), और एक ड्रैग परफॉर्मर, सिल्विया रिवेरा (Sylvia Rivera), को दंगों की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है। माना जाता है कि मॉर्शा ने पुलिस पर एक शॉट ग्लास या बोतल फेंकी, जिसने भीड़ को और उकसाया। हालांकि, इस घटना के सटीक विवरण पर कुछ विवाद है।

भीड़ ने पुलिस पर बोतलें, पत्थर और अन्य वस्तुएँ फेंकनी शुरू कीं। पुलिस को बार के अंदर पीछे हटना पड़ा, और कुछ समय के लिए वे घेर लिए गए। भीड़ ने नारे लगाए, जैसे "We shall overcome" और "Gay Power," जो उस समय के नागरिक अधिकार आंदोलनों से प्रेरित थे।दंगों के दौरान, भीड़ ने कचरे के डिब्बों में आग लगा दी और बार के बाहर बैरिकेड बनाए। पुलिस ने अतिरिक्त बल बुलाया, और टकराव कई घंटों तक चला।

दंगे केवल एक रात तक सीमित नहीं रहे। अगली कुछ रातों तक ग्रीनविच विलेज में तनाव और विरोध प्रदर्शन जारी रहे। ये विरोध अधिक संगठित हो गए, और लोग सड़कों पर नारे लगाते हुए समानता की मांग करने लगे। दंगा के बाद स्टोनवॉल इन सिर्फ़ कुछ हफ़्ते ही चला। अक्टूबर 1969 तक यह किराए पर दे दिया गया।

स्टोनवॉल दंगों ने LGBTQ+ अधिकार आंदोलन को एक नई दिशा दी। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  1. प्राइड परेड की शुरुआत: स्टोनवॉल दंगों की पहली वर्षगांठ पर, 28 जून, 1970 को न्यूयॉर्क में पहली प्राइड परेड आयोजित की गई, जिसे क्रिस्टोफर स्ट्रीट लिबरेशन डे मार्च कहा गया। यह परंपरा आज भी विश्व भर में प्राइड माह के रूप में जून में मनाई जाती है।

  2. संगठित सक्रियता: दंगों ने गे लिबरेशन फ्रंट (GLF) और गे एक्टिविस्ट्स एलायंस (GAA) जैसे संगठनों को जन्म दिया, जिन्होंने कानूनी और सामाजिक सुधारों के लिए काम किया।

  3. कानूनी प्रगति: स्टोनवॉल ने समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने और भेदभाव विरोधी कानूनों के लिए आंदोलनों को गति दी। 2003 में अमेरिका में समलैंगिकता को पूरी तरह अपराधमुक्त किया गया, और 2015 में समलैंगिक विवाह को वैध किया गया।

  4. वैश्विक प्रेरणा: स्टोनवॉल ने विश्व भर में LGBTQ+ समुदायों को अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। भारत में भी, इसकी प्रेरणा से क्वीर आंदोलन ने गति पकड़ी, जिसके परिणामस्वरूप 2018 में धारा 377 को निरस्त किया गया।

  5. ट्रांसजेंडर और रंगभेद का ध्यान: दंगों ने ट्रांसजेंडर और रंगभेद का सामना करने वाले लोगों की समस्याओं को उजागर किया, जो पहले मुख्यधारा के समलैंगिक आंदोलनों में उपेक्षित थे।

प्राइड माह का महत्व

  1. जागरूकता और स्वीकार्यता: प्राइड माह LGBTQ+ समुदाय के लिए सामाजिक स्वीकार्यता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोगों को उनकी पहचान को गर्व के साथ अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

  2. इतिहास और संघर्ष का सम्मान: यह माह उन लोगों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने LGBTQ+ अधिकारों के लिए संघर्ष किया, विशेष रूप से उन लोगों को जो स्टोनवॉल दंगों जैसे आंदोलनों का हिस्सा थे।

  3. कानूनी और सामाजिक प्रगति: प्राइड माह उन कानूनी उपलब्धियों का उत्सव है, जैसे समलैंगिक विवाह को वैध करना और भेदभाव विरोधी कानून, साथ ही आगे की प्रगति के लिए प्रेरणा देता है।

  4. विविधता का उत्सव: यह माह विभिन्न यौन अभिविन्यास (sexual orientation) और लिंग पहचानों (gender identity) की विविधता को स्वीकार करता है और सभी के लिए एक समावेशी समाज की पैरवी करता है।

  5. चुनौतियों पर ध्यान: प्राइड माह उन चुनौतियों को भी उजागर करता है, जैसे सामाजिक भेदभाव, हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, जिनका सामना LGBTQ+ समुदाय करता है।

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