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छत्तीसगढ़ में जातीय नफरत की मार! रायगढ़ में दलित परिवार पर हमला, फिर सामाजिक बहिष्कार

नई-दिल्ली। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के पुसौर थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम ठाकुरपाली में दलित परिवारों पर जातिगत हमले, सामाजिक बहिष्कार और पुलिसिया निष्क्रियता का एक गंभीर मामला सामने आया है। यह घटना न केवल संविधान के समता और न्याय के मूल्यों को चुनौती देती है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या ग्रामीण भारत अब भी जातिगत भेदभाव के साये में जी रहा है?

क्या है पूरा मामला?

गांव के निवासी भगालू चौहान मोटरसाइकिल मरम्मत का कार्य कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। उनके बेटे महेश चौहान और गांव के ही एक युवक दिलीप प्रधान के बीच किसी व्यक्तिगत विवाद ने अचानक जातिगत रंग ले लिया। भगालू चौहान ने पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को दिए आवेदन में बताया कि ऊंची जाति के प्रभावशाली मनबढ़ लोगों ने इस विवाद को बहाना बनाकर उनके घर पर हमला कर दिया और पूरे दलित समुदाय को निशाना बनाना शुरू कर दिया।

पुलिस से की गई शिकायत के अनुसार 13 मई 2025 की रात लगभग 10:30 बजे प्रधान परिवार के सदस्य और अन्य लोग हथियारों से लैस होकर भगालू चौहान के घर में जबरन घुस गए। हमला सुनियोजित था — घर में तोड़फोड़ की गई, कतिथ जातिसूचक गाली-गलौज और मारपीट की गई। भगालू की वृद्ध मां तुलसी बाई के साथ भी अभद्रता की गई। पुलिस को 14 मई को शिकायत दी गई और एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन अब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

“पुलिस हटेगी तो गांव से निकाल देंगे”

पीड़ित भगालू चौहान ने बताया कि आरोपियों द्वारा खुलेआम धमकी दी जा रही है, उन्होंने बताया आरोपी धमकी देते हुए कहा रहे हैं,— “जब तक पुलिस गांव में आ-जा रही है, तब तक तुम लोग सुरक्षित हो, जब पुलिस हटेगी तब तुमको गांव से निकाल देंगे।”

इससे गांव के अन्य दलित परिवारों में भी भय का माहौल है। लगातार धमकियों और सामाजिक बहिष्कार से उनका जीवन दूभर हो गया है।

सामूहिक सामाजिक बहिष्कार

घटना के बाद गांव में एक पंचायत बुलाई गई। इस पंचायत में आरोपियों ने अन्य ग्रामीणों को भड़काकर भगालू चौहान के अलावा चार अन्य दलित परिवारों को भी गांव से निष्कासित करने का निर्णय लिया। इनमें अरुण चौहान, राहुल यादव, विपिन यादव, वीरू, रजनी बेबी चौहान और पाणिग्रही चौहान जैसे लोग शामिल हैं जिनका मूल विवाद से कोई संबंध नहीं था।

पीड़ितों का आरोप है कि एफआईआर दर्ज होने के बाद गांव के दबंगों ने उन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे पुलिस शिकायत वापस लें, नहीं तो बहिष्कार झेलने को तैयार रहें। एक बैठक में कहा गया:

पीड़ित ने बताया, "अगर गांव में रहना है तो केस वापस लो। नहीं तो सामाजिक बहिष्कार झेलो।"

पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल!

एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। आरोपियों को खुली छूट मिली हुई है, जो पीड़ितों को धमकाते घूम रहे हैं। पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस कार्रवाई करने के बजाय मामले को दबाने में लगी है। इधर द मूकनायक ने पुलिस का पक्ष जानने के लिए पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल को फोन किया लेकिन उनसे बात नही हो सकी।

मानव अधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने 'द मूकनायक' से बातचीत में बताया, “इस इलाके में जातिगत अत्याचार आम हो चले हैं। कुछ महीने पहले भी पंचायत चुनाव में ऊंची जाति के प्रभावशाली लोगों के खिलाफ वोट देने के आरोप में दलित बस्ती पर हमला हुआ था। उस समय भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की थी, बल्कि पीड़ितों को ही काउंटर केस की धमकी दी थी।”

उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से मांग की कि पुसौर थाना क्षेत्र और विशेष रूप से गोतमा ग्राम पंचायत को ‘जातीय अत्याचार बहुल क्षेत्र (Atrocity Prone Area)’ घोषित किया जाए, ताकि अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत पीड़ितों को प्रभावी संरक्षण और न्याय मिल सके।

कानून क्या कहता है?

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

धारा 3(1)(r): जातिसूचक शब्दों का सार्वजनिक प्रयोग दंडनीय अपराध

धारा 3(1)(s): अनुसूचित जाति व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कार की धमकी देना अपराध

धारा 3(2)(v): यदि अपराध जातीय कारणों से किया गया हो तो कठोर सजा का प्रावधान

सजा: 6 महीने से लेकर आजीवन कारावास तक

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