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"उपमाव मत्तिट्टू बिरियानी"! 3 साल के इस मासूम के एक वायरल वीडियो ने बदल दिया केरल में 33 हजार आंगनबाड़ी केन्दों में पोषाहार मीनू

तिरुवनंतपुरम: "मुझे आंगनबाड़ी में उपमा नहीं, बिरयानी चाहिए!" – यह कहना था त्रिजल सुंदर (उर्फ शंकु) नाम के एक 3 साल के मासूम बच्चे का, जिसकी यह साधारण सी जिद आज केरल की 33,000 आंगनबाड़ियों के पोषण मेनू को बदलने का कारण बन गई। जी हाँ, अब से केरल की आंगनबाड़ियों में बच्चों को उपमा के साथ-साथ अंडा बिरयानी, पुलाव और पौष्टिक भोजन मिलेगा, और इस बड़े बदलाव का श्रेय जाता है इस छोटे से बच्चे और उसकी माँ की एक वायरल वीडियो को!

कैसे शुरू हुआ सबकुछ?

26 जनवरी 2024 की बात है। तिरुवनंतपुरम के रहने वाले शंकु को उसकी माँ घर पर बिरयानी खिला रही थीं। तभी अचानक उसने अपनी तुतलाती भाषा में कहा – "आंगनबाड़ी में भी बिरयानी क्यों नहीं मिलती? मैं वहाँ उपमा नहीं, बिरयानी और चिकन फ्राई खाना चाहता हूँ!"

यह सुनकर उसकी माँ ने हंसते हुए उसका वीडियो बना लिया और इंस्टाग्राम पर डाल दिया। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह मासूम सवाल जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएगा और केरल सरकार तक पहुँचेगा!

वीडियो इतना प्यारा था कि जल्द ही यह केरल की स्वास्थ्य एवं महिला-बाल कल्याण मंत्री वीना जॉर्ज तक पहुँच गया। उन्होंने भी वीडियो शेयर करते हुए कहा – "शंकु की यह मासूम मांग हमारे लिए एक सबक है। हम आंगनबाड़ियों के मेनू पर पुनर्विचार करेंगे।"

और अब, महीनों की योजना और चर्चा के बाद, केरल सरकार ने आंगनबाड़ियों के लिए नया यूनिफाइड पोषण मेनू लॉन्च कर दिया है।

क्या-क्या बदलाव हुए?

अब मिलेगी बिरयानी और पुलाव!

पहले बच्चों को सिर्फ उपमा, दलिया और सादा खाना दिया जाता था, लेकिन अब मेनू में अंडा बिरयानी, वेज पुलाव और पौष्टिक व्यंजन शामिल किए गए हैं।

दूध और अंडे की बढ़ी आवृत्ति

पहले सप्ताह में सिर्फ 2 दिन दूध और अंडा दिया जाता था, अब 3 दिन मिलेगा।

कम नमक-चीनी, ज्यादा पोषण

नए मेनू में बच्चों की सेहत का ध्यान रखते हुए नमक और चीनी की मात्रा कम की गई है।

स्मार्ट आंगनबाड़ी योजना

केरल सरकार अब सभी आंगनबाड़ियों को "स्मार्ट आंगनबाड़ी" में बदल रही है, जहाँ बच्चों के लिए अलग स्टडी रूम, प्ले एरिया, किचन और डाइनिंग हॉल होंगे।

सोचने की बात: बच्चे खाना नहीं खाएंगे, तो पोषण का क्या फायदा

केरल की आंगनबाड़ियाँ पहले से ही बच्चों के पोषण और प्रारंभिक शिक्षा का एक मजबूत आधार रही हैं। लेकिन अक्सर बच्चे वहाँ मिलने वाला खाना नहीं खाते थे, क्योंकि वह घर के खाने जैसा स्वादिष्ट नहीं होता था। शंकु की यह मांग सरकार के लिए एक आईना बन गई कि "अगर बच्चे खाना नहीं खाएंगे, तो पोषण का क्या फायदा?"

इसीलिए, अब नए मेनू में स्वाद और पोषण का बैलेंस रखा गया है, ताकि बच्चे खुशी-खुशी खाएँ और उनका शारीरिक-मानसिक विकास भी हो।

आज शंकु की वह छोटी सी जिद हज़ारों बच्चों के लिए एक बड़ा बदलाव लेकर आई है। यह साबित करता है कि छोटी आवाज़ें भी बड़े बदलाव ला सकती हैं, बस उन्हें सुनने वाला होना चाहिए।

केरल सरकार की यह पहल अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल है कि बच्चों के पोषण को सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि उनकी पसंद से भी जोड़ा जाना चाहिए।

तो अगली बार जब केरल की किसी आंगनबाड़ी में बच्चे बिरयानी खाते नज़र आएँ, तो याद रखिए – एक नन्हे बच्चे की मासूम मांग से यह सब संभव हुआ है।

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