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MP: हाईकोर्ट ने जमीन अधिग्रहण मामले में देवसर के जज के खिलाफ जांच के दिए निर्देश, पांच वर्षों के कार्यों की होगी समीक्षा

भोपाल। जबलपुर स्थित मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने शुक्रवार को सिंगरौली जिले से जुड़े एक महत्वपूर्ण जमीन अधिग्रहण मामले में सुनवाई करते हुए एक बड़ा आदेश जारी किया। कोर्ट ने देवसर में पदस्थ चतुर्थ जिला जज दिनेश कुमार शर्मा के खिलाफ जांच के निर्देश दिए हैं। साथ ही सिंगरौली के प्रधान जिला जज को आदेश दिया है कि बीते पांच वर्षों में दिनेश शर्मा जहां-जहां पदस्थ रहे, वहां के सभी मामलों की सूक्ष्मता से जांच की जाए और तीन माह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट हाईकोर्ट में प्रस्तुत की जाए। यह आदेश तब सामने आया जब याचिकाकर्ता मंगल शरण की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय को पता चला कि मुआवजे के मामले में जिला जज द्वारा गलत आदेश पारित किया गया है।

मूल मामला सिंगरौली जिले के निवासी मंगल शरण की जमीन के अधिग्रहण से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि वर्ष 2019-20 में उनकी निजी जमीन का अधिग्रहण किया गया था, और जिला प्रशासन ने इसके लिए अधिसूचना भी जारी की थी। याचिकाकर्ता के अनुसार जिस जमीन का अधिग्रहण किया गया वह 'डायवर्टेड' यानी आवासीय प्रयोजन के लिए अधिकृत भूमि थी। ऐसी स्थिति में मुआवजा भी डायवर्टेड भूमि के हिसाब से तय किया जाना चाहिए था। उन्होंने इस संबंध में धारा 64 के तहत देवसर स्थित सम्यक प्राधिकारी की अदालत में मुआवजे के निर्धारण हेतु आवेदन प्रस्तुत किया था।

मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट नित्यानंद मिश्रा ने बताया कि उनके मुवक्किल ने नियमानुसार समय पर आवेदन प्रस्तुत किया था और इस पर कलेक्टर को कार्रवाई कर उसे सम्यक प्राधिकारी के पास रेफर करना था। लेकिन कलेक्टर की ओर से समयसीमा में कोई कदम नहीं उठाया गया। जब याचिकाकर्ता ने चतुर्थ जिला जज के समक्ष मामला रखा तो उन्होंने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि चूंकि कलेक्टर ने रेफरेंस नहीं भेजा, इसलिए यह मामला सुनवाई योग्य नहीं है। जज द्वारा यह आदेश पारित करने से याचिकाकर्ता को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

जिला जज के इस आदेश को याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि सम्यक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश विधिसम्मत नहीं था और उसमें गंभीर त्रुटि पाई गई। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा आम नागरिकों को नहीं भुगतना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने देवसर के चतुर्थ जिला जज दिनेश कुमार शर्मा द्वारा दिए गए आदेश को खारिज करते हुए मामले को पुनः सुनवाई के लिए भेजने और उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाने के निर्देश दिए।

हाईकोर्ट ने आदेश में यह भी जोड़ा कि जिला जज द्वारा किया गया यह आचरण न्यायिक मर्यादाओं के विरुद्ध है और इससे नागरिक के संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है। इसलिए उनके कार्यों की निष्पक्ष जांच आवश्यक है। कोर्ट ने सिंगरौली के प्रधान जिला न्यायाधीश को यह जिम्मेदारी दी कि वे दिनेश शर्मा की बीते पांच वर्षों की पदस्थापनाओं की समीक्षा करते हुए उनकी कार्यप्रणाली की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। यदि अन्य मामलों में भी ऐसी ही अनियमितताएं मिलती हैं, तो उनके विरुद्ध उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

यह फैसला न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। साथ ही यह प्रशासनिक अधिकारियों और न्यायिक पदाधिकारियों के लिए भी यह संदेश है कि उनकी जिम्मेदारी जनता को न्याय दिलाना है, न कि प्रक्रिया का बहाना बनाकर न्याय से वंचित करना। इस आदेश से यह भी स्पष्ट होता है कि नागरिक यदि नियमानुसार आवेदन करते हैं और उन्हें समय पर न्याय नहीं मिलता, तो उच्च न्यायालय उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप कर सकता है।

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