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राजस्थान में इस कलेक्टर की छोटी सी पहल आ रही बेटियों के बड़े काम: क्या है 'बिटिया गौरव पेटी' की कहानी

जयपुर- राजस्थान के जयपुर जिला प्रशासन ने एक छोटे से विचार को बड़ा संदेश बनाकर बेटियों के सम्मान और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता दी है। पिछले एक साल में प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान अभ्यर्थियों का सामान रखने के लिए बनाई गई पेटियों को अब नीलाम करने के बजाय 'बिटिया गौरव पेटी' के रूप में बालिका स्कूलों और छात्रावासों में भेजा जा रहा है। इन पेटियों को आकर्षक रंगों से सजाकर छात्राओं के लिए सेनेटरी नैपकिन, दवाइयां, विटामिन-डी और अन्य जरूरी सामान से भरा जा रहा है, ताकि बेटियां बिना संकोच अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।

जिला कलेक्टर जितेन्द्र कुमार सोनी की इस पहल से पहले इन पेटियों को नीलामी के जरिए बेचा जाता था, जिससे प्रशासन को सीमित आय होती थी और पेटियों का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता था। लेकिन अब इनका सदुपयोग करते हुए इन्हें पीएमश्री बालिका स्कूलों और छात्रावासों में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए वितरित करने का फैसला लिया गया। कलेक्टर सोनी ने द मूकनायक को बताया यह अभियान बेटियों के सम्मान को बढ़ाने और उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों के लिए सुविधा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।

स्कूलों के प्रधानाचार्यों को निर्देश दिए गए हैं कि वे इन पेटियों का सही उपयोग सुनिश्चित करें और उपयोग की तस्वीरें ई-मेल के जरिए प्रशासन को भेजें।

अब तक जिला प्रशासन ने 1000 से अधिक 'बिटिया गौरव पेटियां' तैयार की हैं, जिनमें से 50 फीसदी का वितरण स्कूलों में हो चुका है। इन पेटियों को रंग-बिरंगे रंगों से सजाया गया है और पांचों तरफ 'बिटिया गौरव पेटी' लिखा गया है। स्कूलों के प्रधानाचार्यों को निर्देश दिए गए हैं कि वे इन पेटियों का सही उपयोग सुनिश्चित करें और उपयोग की तस्वीरें ई-मेल के जरिए प्रशासन को भेजें। जिला शिक्षा अधिकारी को भी स्कूलों में इन पेटियों के सही इस्तेमाल के लिए दिशा-निर्देश देने को कहा गया है।

इन पेटियों को रंग-बिरंगे रंगों से सजाया गया है और पांचों तरफ 'बिटिया गौरव पेटी' लिखा गया है।

'द मूकनायक' से बात करते हुए महिला सशक्तिकरण विभाग, राजस्थान के उप निदेशक राजेश डोगीवाल ने बताया, "लगभग 50 प्रतिशत पेटियां स्कूलों तक पहुंच चुकी हैं, बाकी इस सप्ताह के भीतर भेज दी जाएंगी। इन पेटियों में सेनेटरी पैड, जरूरी दवाइयां और स्टेशनरी का सामान रखा गया है, जो छात्राओं के लिए बेहद उपयोगी होगा।" उन्होंने आगे कहा कि 15 से 20 किलोग्राम वजनी इन पेटियों को पहले नीलाम किया जाता था, लेकिन इससे ज्यादा आय नहीं मिलती थी। अब इस पहल से छात्राओं को बड़ा फायदा होगा। स्कूलों में रखी इन पेटियों से बेटियां जरूरत पड़ने पर बिना झिझक सेनेटरी पैड या दवाइयां ले सकेंगी।

सरकारी स्कूलों में पोषाहार और अन्य जरूरी सामान स्टोर करने में भी यह पेटियां उपयोगी साबित हो सकती हैं।

स्कूलों में रखी इन पेटियों से बेटियां जरूरत पड़ने पर बिना झिझक सेनेटरी पैड या दवाइयां ले सकेंगी।

डोगीवाल ने बताया कि इस अभियान के पूरा होने के बाद स्कूलों से फीडबैक लिया जाएगा। इसके आधार पर रिपोर्ट तैयार कर अधिकारियों को सौंपी जाएगी, ताकि इसे राज्य के अन्य जिलों में भी लागू किया जा सके। अगले चरण में इन पेटियों को आंगनवाड़ी केंद्रों तक पहुंचाने की योजना है।

जिला कलेक्टर की ओर से इससे पहले भी कई नवाचार किए जा चुके हैं। पिछले साल 'बिटिया गौरव डैशबोर्ड' कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसमें होनहार छात्राओं के नाम डैशबोर्ड पर दर्ज किए गए। इसकी सफलता के बाद 'बिटिया गौरव पेटी' की शुरुआत हुई, जो अब बेटियों के लिए एक नई उम्मीद बन रही है।

2020 में होनहार बेटियों के नाम किये थे 'बिटिया गौरव पथ'

साल 2020 में जब जितेंद्र कुमार सोनी ने नागौर के जिला कलेक्टर का पद संभाला, तो उनकी पहली कोशिश थी ग्रामीणों को शहर के हर कोने तक आसानी से पहुंचाना। इसके लिए उन्होंने 'रास्ता खोलो अभियान' शुरू किया, जिसके तहत अतिक्रमण और जमीन पर कब्जे हटाए गए। पुलिस थानों में रास्ते बंद होने और अतिक्रमण की शिकायतें भरी पड़ी थीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। इन इलाकों में पक्की सड़कें नहीं थीं, सिर्फ राजस्व विभाग की जमीन थी। लोग लंबे चक्कर काटने को मजबूर थे। 31 जुलाई 2020 को शुरू हुए पहले अभियान में 38 रास्ते खोले गए। पंचायत समितियों और स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर रास्तों को साफ किया गया और 'पट्टिकाएं' (पत्थर) लगाई गईं, जिन पर रास्ते का नाम और निर्माण तिथि लिखी गई।

सोनी ने सिर्फ रास्ते खोलने तक खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने इन रास्तों को फिर से बंद होने से बचाने के लिए अनोखा तरीका अपनाया। इन रास्तों को 'बिटिया गौरव पथ' नाम दिया गया और गांव की उन बेटियों के नाम पर रखा गया, जिन्होंने शिक्षा या खेल में उपलब्धियां हासिल की थीं। सोनी ने कहा, "यह महिलाओं के प्रति सम्मान का छोटा सा प्रयास था और लोगों से नियम मानने की भावनात्मक अपील थी। इन पट्टिकाओं में रास्ते की जानकारी के साथ GPS ट्रैकिंग सिस्टम भी लगाया गया, जो छेड़छाड़ होने पर पुलिस को सूचना देगा।" इस पहल ने न सिर्फ रास्ते खोले, बल्कि बेटियों की सफलता को समाज के सामने एक मिसाल बनाया।

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