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दलित नाबालिग 7 दिन पहले हुई किडनैप, चित्तौड़गढ़ पुलिस ने POCSO और SC/ST एक्ट को दरकिनार कर BNS में दर्ज की रिपोर्ट!

चित्तौड़गढ़- दलित और वंचित वर्ग के उत्पीड़न के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन पुलिस का रवैया इन मामलों को गंभीरता से लेने के बजाय लापरवाही और मनमानी का शिकार हो रहा है। ताजा मामला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के निम्बाहेड़ा का है, जहां एक दलित परिवार ने अपनी 15 वर्षीय नाबालिग बेटी के अपहरण की शिकायत 6 दिन पहले दर्ज कराई थी।

लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने संवेदनशील मामले में शिकायत प्राप्त होते ही निम्बाहेड़ा कोतवाली थाना पुलिस ने न तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) की धाराएं लगाईं और न ही यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत कार्रवाई की। इसके बजाय, पुलिस ने केवल भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 137(2) के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी। बाद में मीडिया के समक्ष मामला उजागर होने पर आनन फानन में 29 मई को SC/ST एक्ट की धारा जोड़ी गयी। इस पूरे मामले में जहां जांच और कार्रवाई विभागीय नियमों के अनुसार पुलिस उपअधीक्षक स्तर के अधिकारी के पास जानी चाहिए वही पुलिस उप अधीक्षक निंबाहेड़ा बद्रीलाल राव को इस मामले की जानकारी भी नहीं थी।

इस मामले में बाल अधिकार से जुड़े एक्सपर्ट्स कहते हैं अगर मामला नाबालिग का है तो इस प्रकार के मामलों में दस्तियाब करने के बाद उसे बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। जिससे विस्तृत जांच और कार्रवाई हो सके।

क्या है पूरा मामला

दिनांक 24 मई को बापू बस्ती निवासी एक दलित महिला ने कोतवाली थाने में शिकायत दर्ज कराई कि 23 मई को दोपहर करीब 3 बजे उनकी 15 वर्षीय नाबालिग बेटी को बड़ा कसाई मोहल्ला, निम्बाहेड़ा निवासी आरोपी उनके घर में अनाधिकृत प्रवेश कर जबरन मोटरसाइकिल पर ले गया। महिलाके अनुसार, उस समय वह पड़ोस में काम से गई थीं, और घर में उनकी बेटी और छोटा बेटा अकेले थे। बेटे ने बताया कि आरोपी उसकी बहन को जबरन उठाकर ले गया।

परिजनों ने अभियुक्त के घर जाकर अपनी बेटी के बारे में पूछताछ की, तो अभियुक्त के परिवार ने कहा कि "लड़की वापस आ जाएगी, बेटा उसे लेकर गया है," और पुलिस में शिकायत न करने की धमकी दी। परिवार ने यह भी चेतावनी दी कि शिकायत करने पर नाबालिग के साथ कोई गंभीर घटना हो सकती है। द मूकनायक ने परिजनों से इस मामले में बात की तो बताया गया कि नाबालिग की आरोपी से पहले जान पहचान थी लेकिन अब संपर्क में नहीं है। वह अपने ननिहाल में रह रही है और आरोपी का घर आठ-दस गली दूर है। परिजनों को आशंका है कि नाबालिग को अगवा करके ले जाने में और भी कई लोगों का हाथ है।

पुलिस की लापरवाही और मनमानी

शिकायत के इतने दिन बीत जाने के बावजूद, निम्बाहेड़ा कोतवाली थाना पुलिस ने न तो नाबालिग लड़की को बरामद कर सकी है और न ही अभियुक्त को गिरफ्तार किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि दलित नाबालिग लड़की के अपहरण जैसे गंभीर मामले में शिकायत मिलते ही पुलिस ने SC/ST Act और POCSO Act की धाराएं लागू नहीं कीं, जो इस मामले की गंभीरता को कमजोर करने का प्रयास दर्शाता है। सूत्रों के अनुसार, अभियुक्त और पीड़िता के बीच पहले से परिचय था, लेकिन यह तथ्य मामले की गंभीरता को कम नहीं करता।

नियमों के अनुसार, दलित उत्पीड़न से संबंधित मामलों की जांच पुलिस उपाधीक्षक (DySP) स्तर के अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। लेकिन निम्बाहेड़ा कोतवाली थाना प्रभारी राम सुमेर मीणा ने इस मामले को उप निरीक्षक स्तर के अधिकारी को सौंप दिया और इसे उच्च अधिकारियों तक पहुंचने से रोकने के लिए SC/ST Act की धाराएं जोड़ने से भी परहेज किया। यह पुलिस की मनमानी और लापरवाही को दर्शाता है। नाबालिग की माँ ने कहा, "मेरी बेटी का पूरा जीवन दांव पर है। अभियुक्त को उसके परिवार का पूरा संरक्षण प्राप्त है, और हमें डर है कि वह मेरी बेटी के साथ कोई गंभीर अपराध कर सकता है।" पीड़ित परिवार ने तत्काल कार्रवाई और उनकी बेटी को सुरक्षित वापस लाने की गुहार लगाई है।

राजस्थान सरकार दलित और वंचित वर्ग को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्धता जताती रही है, लेकिन इस मामले में स्थानीय पुलिस का रवैया सरकार के दावों पर सवाल उठाता है। थाना प्रभारी की कार्यशैली से न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट हो रहा है कि संवेदनशील मामलों में पुलिस का रवैया गैर-जिम्मेदाराना और पक्षपातपूर्ण हो सकता है।

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