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अरब वर्ल्ड में प्रजातंत्र का उदय और सीरिया का लंबा संघर्ष

साल 2010 पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के देशों के लिए खास रहा। 2010 दिसंबर के महीने में ट्यूनीशिया से शुरू हुआ प्रजातंत्र समर्थित आंदोलन देखते-देखते अरब के कई और देश में फैल गया।

इंडोनेशिया और इजिप्ट में हुए प्रदर्शनों और विरोध के परिणाम स्वरुप वहां की तात्कालिक सरकारों का पतन हुआ और ट्यूनीशिया से बेन अली और इजिप्ट से होस्नी मुबारक सत्ता से अपदस्थ हुए। इन देशों में आंदोलन की सफलता से प्रेरित होकर यमन, लीबिया, बहरीन, सीरिया और अन्य देशों में भी तत्कालीन सरकारों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों की शुरुआत हुई जिससे वहां की सरकारों ने दमनकारी तरीकों से निपटने की कोशिश की। देखते देखते बदलाव की यह बयार पुरे पश्चिम एशियाई देशों में आग की तरह फैल गई।

सीरिया में राष्ट्रपति बशर -अल असद एवं बाथ पार्टी के तानाशाही शासन के खिलाफ आंदोलन एवं प्रदर्शनों की शुरुआत मार्च 2011 से शुरू हुई जिसका अंत अभी दिसंबर के शुरुआती दिनों में राष्ट्रपति अल- असद के देश छोड़कर भागने एवं असद परिवार के वर्षों के शासन के खत्म होने के साथ हुआ।

सीरिया इस दौरान दशक की शुरुआत से ही खराब अर्थव्यवस्था एवं भीषण सूखे की वजह से गंभीर आंतरिक परेशानियों से जूझ रहा था महंगाई और बेरोजगारी अपने चरम पर थी और जनता में भयंकर असंतोष की स्थिति थी जिससे राष्ट्रपति बशर -अल-असद के खिलाफ प्रदर्शनों में तेजी आ गई। आर्थिक असमानता के साथ एक और वजह देश की बहुसंख्यक सुन्नी जनता एवं सत्तारूढ़ शिया अलवैत समुदाय के बीच का विभाजन भी मुख्य कारण था।

असद इसी समुदाय से आते हैं जो शिया का ही हिस्सा है जबकि सीरिया की बहुसंख्यक जनता सुन्नी है। शुरुआत में यहां प्रजातंत्र समर्थित आंदोलन शांतिपूर्ण रहे, जिसे असद सरकार ने दमनकारी तरीकों से निपटने की कोशिश की। प्रदर्शनकारियों पर हुए हिंसक कार्यवाही ने आंदोलन को गृहयुद्ध की स्तिथि मे पहुँचा दिया।

सीरियाई सेना और विपक्षी मिलिशिया के बीच के टकराव ने युद्ध को जन्म दिया जिसमें सीरियाई लोगों की लाखों की संख्या में हत्या हुई और विस्थापन तथा पलायन का सामना करना पड़ा और शरणार्थी बनना पड़ा। आंकड़ों की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के अनुसार लगभग हर दिन औसतन 84 नागरिक मारे गए।

2022 तक मारे गए लोगों की संख्या लगभग 306,887 तक है। 2011 में युद्ध के प्रारंभ से कार्यरत संस्था 'यू -एस इंस्टीट्यूट आफ पीस' के आंकड़े बताते हैं कि सीरिया से करीब 13 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं। यह सीरिया की युद्ध पूर्व आबादी का आधा से अधिक है। आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या लगभग 6.2 मिलियन है जबकि आसपास के देश जिसमें तुर्की, लेबनान, जॉर्डन प्रमुख है में शरणार्थियों की संख्या लगभग 5- 6 मिलियन है।

सीरिया के युद्ध की शुरुआत शांतिपूर्ण नागरिक प्रदर्शनों को सेना के द्वारा दमनकारी तरीकों से कुचलना से हुआ जिसमें असद सरकार एवं सेना, सीरियाई विद्रोही संगठन, इस्लामिक स्टेट, अलकायदा से जुड़े आतंकवादी संगठन, हिजबुल्लाह और सीरियाई कुर्दो के संगठन के बीच हिंसक टकराव से हुई। हालत बिगड़ने के साथ युद्ध में कई बाहरी ताकत एवं अंतर्राष्ट्रीय दखल की शुरुआत हुई जिसमें कई देश अपने हित साधने में लगे हुए थे।

इराक, सऊदी अरब और कुछ अन्य पश्चिमी एशियाई देशों ने खुले तौर पर विपक्षियों की मदद की तथा हथियार आदि भी मुहैया कराए। बाहरी दखल ने आंतरिक टकराव को और भी बढ़ाया। ईरान और रूस ने असद सरकार की इन विरोधियों से निपटने में मदद की। रूस ने अपने सीरिया स्थित सैनिक अड्डो से विरोधियों को कुचलना के लिए मिसाइल तक दागे। ईरान ने हिजबुल्लाह को आथिर्क मदद के साथ अपनी सैनिक टुकडियो को भी सीरियाई सेना की मदद के लिए भेजा।

अमेरिका, रूस जैसी महाशक्तियों और पड़ोसी देशों ने इस पूरे क्षेत्र में अपने पैर पसारने की कोशिश की। इस बीच विभिन्न पक्षों के बीच सुलह की कोशिश भी हुई। जून 2012 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने जिनेवा में सीरियाई सरकार और विपक्षियों को बातचीत के लिए बुलाया। हालांकि कई प्रयासों के बाद भी ये गुट किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए। 2017 में पहले अस्ताना और जनवरी 2018 में सोची में रूस ने सुलाह की जिसे विपक्षियों ने नकार दिया। कुल मिलाकर इस दौरान जिनेवा शांति वार्ता के आठ दौरो और अन्य प्रयासों ने क्षेत्र में शांति स्थापित करने में कोई विशेष सफलता नहीं हासिल की।

बहरहाल, 8 दिसंबर को ‘हयात तहरीर अ ल-शाम’ (HTS) के सत्ता संभालते ही सीरिया की जनता में जश्न का माहौल है 12 साल लंबे उथल-पुथल और अस्थिरता झेलने के बाद हालांकि सीरिया को स्थिरता और शांति स्थापित करने में लंबा वक्त लग सकता है पर फौरी तौर पर सामान्य जनता असद सरकार के तख्ता पलट से राहत महसूस कर रही है। तमाम जेल एवं डिटेंशन सेंटर से राजनीतिक विरोधियों एवं कैदी बाहर आ गए हैं जिन्हें सरकार की विरोध के चलते बरसों से बंदी बनाकर रखा गया था।

उनका अपराध बस इतना था कि उन्होंने असद सरकार की दमनकारी तरीकों का विरोध किया था और बदलाव के लिए आवाज उठाई थी। इसके साथ ही लाखों के तादाद में विस्थापित हुए सीरियाई लोगों एवं शरणार्थियों का वापस लौटना भी शुरू हो गया है सीरिया के बॉर्डर से लगे तमाम देशों जिसमें टर्की, जॉर्डन और लीबिया प्रमुख है रोज हजारों की संख्या में लोग अपने देश लौट रहे हैं।

असद के सत्ता पलट के तात्कालिक कारण

बशर अल-असद का तख्ता- पलट का ना सिर्फ आंतरिक प्रभाव महत्वपूर्ण है बल्कि यह पूरे दक्षिण पूर्व क्षेत्र को प्रभावित करता है। यहां तक की दक्षिण पूर्व एशिया/ पश्चिम एशिया के देशों के शक्ति संतुलन के साथ पश्चिमी देशों से संबंधों पर भी इसका व्यापक असर आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा। इस युद्ध में रूस और ईरान को भारी नुकसान उठाना पड़ा। रुस के यूक्रेन के साथ सीधे युद्ध की शुरुआत और क्षेत्र में इजराइल, हमास एंव ईरान के ताजा संघर्षों ने सीरियाई सेना की आक्रामकता को ना सिर्फ कमजोर किया बल्कि देश के अंदर कई शहरों पर विरोधी गुटों ने कब्जा कर लिया।

असद सरकार की देश में पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए युद्ध की शुरुआती दौर में सीरियाई स्थित अपने नौसैनिक अड्डो से रुस ने विरोधियों पर मिसाइल दागे जिसमें विरोधियों के साथ आम जन-माल को भी काफी नुकसान पहुंचा। इन कार्रवाइयों ने जनता का असद के खिलाफ असंतोष को और बढ़ावा ही दिया। ईरान की सेना और उसके द्वारा प्रशिक्षित सैनिक संगठनों ने भी असद सरकार को विरोधियों के दामन में सहायता पहुंचाती रही।

अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहे ईरान की खराब अर्थव्यवस्था से ईरान, सीरिया को और मदद पहुंचाने की स्थिति में नही रहा। हाल में हमास और इजरायल के आमने-सामने के युद्ध में सीरियाई सेना को और कमजोर तो किया ही इजरायल के सीरियाई सीमा के अंदर गोल्डन हाइट्स तक पहुंचने में HTS और विरोधियों की मदद भी पहुंचाई।

हमास, हिज्बुल्लाह, रूस और ईरान की कमजोर होती सामरिक स्थिती असद को मदद कर पाने में असफल रहे। दूसरी तरफ रुस, सीरिया से अपने सैनिक एवं हथियार हटाकर यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल करने की जरूरत अधिक थी सीरियल ऐसा सरकार की सफलता जो रस और ईरान की मदद से मुख्ता टिकी हुई थी रूस और ईरान की भी सफलता ही है। मधुपुर क्षेत्र में रूस के खत्म होते प्रभाव का असर और अफ्रीकी देशों में देखने को मिलेगा।

सीरियस से रूस के सामरिक अड्डे पूरे अफ्रीका में रूस की गतिविधियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे। सीडीस्थित टाइटस में रूसी सैनिक अड्डा भूमध्य सागर में रूस का इकलौता नौसैनिक अड्डा है। जो जहाज की मरम्मत और ईंधन के लिए महत्वपूर्ण केंद्र है। वही वही हामी में एयरवेज भी रूस के लिए स्ट्रैटेजिक है जहां से रूस ने मध्य पूर्व एशियाई देशों एवं अफ्रीका में अपना प्रभाव स्थापित किया था। इन दोनों सामरिक ठिकानों के नुकसान से रस पूरे क्षेत्र में प्रभाव पर गहरा असर पड़ सकता है।

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे अधिक फायदा महत्वपूर्ण में तुर्की को मिलेगा। शुरू से ही टर्की असद को सीरिया में अपरदस्त करने के लिए विरोधियों का मददगार रहा है। टर्की ने कुल समुदाय को कमजोर करने तथासीडी शरणार्थियों को वापस भेज पाने के लिए गृह युद्ध में विरोधियों को समर्थन देता रहा। अल सरकार के पतन ने क्षेत्र में तुर्की की स्थिति को मजबूती प्रदान की है।

यहां तक कि सीरिया में ने सरकार के गठन में तुर्की की भूमिका की महत्वपूर्ण हो सकती है। मधुपुर में ईरान की स्थिति कमजोर होने के साथ तुर्की इतनी शक्ति केंद्र के ऊपर रूप में उभर रहा है। तुर्की के अलावा अन्य खाड़ी देशों ने भी सीरिया के संकट पर अपनी प्रतिज्ञाएं दी हैं। कतर ने 2015 के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के आधार पर सीरिया में शांति की स्थापना एवं ने सरकार के गठन पर जोर दिया है वही कुवैत संयुक्त राष्ट्र अरब अमीरात ओमान ने सीरिया की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए सभी पक्षों के बीच शांतिपूर्ण समझौते और सीरिया में सिरसा के प्रयासों का समर्थन किया है।

सीरिया में नई सरकार का गठन और चुनौतियां

लंबे समय तक गृह युद्ध में गृह सीरियल में समान स्थिति की बहाली अभी तक काम चुनौती पूर्ण नहीं है. राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन को उखाड़ फेंकने के बाद, हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेता और नए प्रशासन के कमांडर-इन-चीफ अहमद अल-शरा ने 1 मार्च तक कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करने के लिए मोहम्मद अल-बशीर को नियुक्त किया है। इससे नागरिकों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करने में मदद मिलेगी और देश मे स्थिरता कायम करना आसान होगा। राज्य के संसाधनों और मंत्रालयों पर सशस्त्र समूहों के बीच सत्ता संघर्ष को रोकना भी सरकार की प्राथमिकता होगी।

अहमद अल-शरा के लिए कट्टरवादी समुदायों और देश के बहुसंख्यक प्रगतिशील जनता के बीच तालमेल बिठा कर चलना चुनौतीपूर्ण होगा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपनी स्वीकारिताके लिए जरुरी भी। अल-शरा ने अपने संदेशों में इसलिए सीरिया के विविधतापूर्ण समाज के अंदर सह-अस्तित्व पर जोर दिया है. महत्वपूर्ण बदलावों में उन पूर्व-सैनिकों के लिए माफ़ी का ऐलान किया गया है जिन्हें सेना में जबरन भर्ती किया गया था. पूर्व सरकारी अधिकारियों और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई पर पाबंदी लगाई गई है.

अहमद अल-शरा ने इसराइल, अमेरिका, ईरान और रूस जैसे विरोधियों के बारे में समझौतावादी रवैया अपनाया है और ख़ुद को भड़काऊ बयानों और धमकियों से दूर रखा है ताकि एचटीएस और खुद अहमद अल-शरा का नाम अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची से निकाले जाने में मदद मिले।

भारत के परिप्रेक्ष्य मे देखें तो ईरान का कमजोर होना हमारे हित में नही है। भारत ईरान में चाबहार पोर्ट बना रहा है. ऐसे में ईरान अस्थिर होता है तो भारत के हित प्रभावित होंगे. ईरान ही पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन करता है क्योंकि अन्य खाड़ी देशों मे ज्यादातर सुन्नी शासन है और इससे उन का दबदबा बढ़ेगा जो पाकिस्तान के लिए मददगार साबित हो सकता है।

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