जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर बेंच ने 8 जनवरी को बाड़मेर पुलिस को फटकार लगाते हुए पूछा कि याचिकाकर्ता शैलेंद्र सिंह के खिलाफ फर्जी मामला बनाने और झूठे सबूत पेश करने पर उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए। न्यायालय ने कहा कि भले ही आरोपी का आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो, लेकिन अधिकारियों को झूठे मामले बनाने का अधिकार नहीं है।
यह मामला एक एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें आरोप लगाया गया कि शैलेंद्र सिंह ने अपनी कार से बाड़मेर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) की गाड़ी को टक्कर मारने की कोशिश की। हालांकि, सुनवाई के दौरान अदालत में पेश की गई रंगीन तस्वीरों और वीडियो फुटेज में स्पष्ट रूप से दिखा कि वाहनों के बीच कोई टक्कर नहीं हुई और एसपी की गाड़ी पर कोई नुकसान के निशान नहीं थे।
न्यायालय ने टिप्पणी की, "प्रथम दृष्टया, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता को परेशान करने और फंसाने के लिए झूठे सबूत गढ़े गए हैं।"
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस फरजंद अली ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि झूठी एफआईआर दर्ज करना धारा 182 के तहत अपराध है, और इस मामले में धारा 193 और 211 भी लागू हो सकती हैं। न्यायालय ने बाड़मेर के तत्कालीन एसपी और कोतवाली थाने के एसएचओ को निर्देश दिया कि वे हलफनामे के रूप में इस मामले पर स्पष्टीकरण दें और यह भी बताएं कि उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।
न्यायालय ने सख्त शब्दों में कहा, "यह कहना उचित होगा कि याचिकाकर्ता का अतीत संदिग्ध हो सकता है और संभवतः उसने पहले अपराध किए हों, लेकिन इस तरह की स्थिति में भी, सरकारी अधिकारियों को झूठे मामले गढ़ने या फर्जी सबूत तैयार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्हें कानून का दुरुपयोग कर इसे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
अदालत की मुख्य टिप्पणियां
पेश किए गए सबूत, जैसे तस्वीरें और वीडियो फुटेज, ने टक्कर के आरोपों को गलत साबित किया।
झूठा मामला बनाना न्याय और सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही के सिद्धांतों को कमजोर करता है।
बाड़मेर एसपी और एसएचओ से उनके कार्यों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है और उन्हें अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी, 2025 को निर्धारित की है, साथ ही पुलिस अधीक्षक और थानाधिकारी को अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए उपस्थित रहने को कहा है।
इस बीच, कोतवाली थाने, बाड़मेर में दर्ज एफआईआर नंबर 175/2024 से संबंधित कार्यवाही पर रोक लगा दी गई है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि सुनवाई के दौरान प्रस्तुत वीडियो फुटेज की प्रतियां रिकॉर्ड के लिए सुरक्षित रखी जाएं।
यह आदेश पुलिस अधिकारियों द्वारा अपने अधिकार के दुरुपयोग किये जाने पर न्यायालय का सख्त रुख जाहिर करता है और यह सुनिश्चित करने के महत्व को उजागर करता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां कानूनी दायरे में रहकर काम करें। कोर्ट के इस आदेश पर मानव और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं ने ख़ुशी जाहिर की है।