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MP: कैनवास पर बसा जनजातीय संसार, भीली चित्रकार रीता भूरिया की चित्रों की प्रदर्शनी 'शलाका' में..

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को सशक्त मंच प्रदान करने के उद्देश्य से आयोजित की जाने वाली मासिक श्रृंखला 'शलाका चित्र प्रदर्शनी' में इस बार युवा भीली चित्रकार रीता भूरिया के चित्रों की प्रदर्शनी सह-विक्रय का आयोजन किया गया है। 3 जनवरी से शुरू हुई यह प्रदर्शनी संग्रहालय की 'लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा' में 30 जनवरी तक चलेगी।

भोपाल में जन्मी और पली-बढ़ी रीता भूरिया जनजातीय कला की समृद्ध परंपरा की प्रतिनिधि हैं। उनके पिता विजय भूरिया निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि माता शांता भूरिया भीली चित्रकला में एक स्थापित नाम हैं। रीता की नानी, प्रख्यात भीली चित्रकार और पद्मश्री सम्मानित भूरीबाई, उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा रही हैं। रीता का कहना है, "मेरी नानी न केवल मेरी कला-गुरु हैं, बल्कि मेरी सफलता की आधारशिला भी उन्हीं ने रखी।"

रीता ने विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई की है और बचपन से ही चित्रकला में रुचि रखती थीं। उन्होंने अपनी नानी के मार्गदर्शन में परंपरागत भीली चित्रकला की बारीकियों को सीखा और उनके कार्यों में सहयोग भी किया।

भील चित्रकार रीता भूरिया

रीता भूरिया की कला में प्रकृति और जनजातीय जीवन के विविध पहलुओं की झलक मिलती है। उनके चित्रों में जंगली पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, और जनजातीय जीवन की कहानियां प्रमुखता से उभरती हैं। उन्होंने बैंगलोर, नई दिल्ली, और लखनऊ जैसे शहरों में आयोजित एकल और संयुक्त प्रदर्शनियों में भाग लेकर अपनी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।

रीता स्वतंत्र रूप से व्यावसायिक चित्रकला में सक्रिय हैं। उनके चित्रों की शैली पारंपरिक भीली चित्रकला पर आधारित है, जिसमें बारीक ज्यामितीय आकृतियां और प्रकृति से प्रेरित रंगों का प्रयोग होता है।

शलाका चित्र प्रदर्शनी का महत्व

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की 'शलाका' श्रृंखला जनजातीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने और उनकी कला को बाजार तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह श्रृंखला न केवल कलाकारों को एक मंच प्रदान करती है, बल्कि जनजातीय कला को संरक्षित और प्रचारित करने में भी सहायक है।

रीता भूरिया की प्रदर्शनी सह-विक्रय इस प्रयास का हिस्सा है, जो दर्शकों को भीली चित्रकला की विशिष्ट शैली से परिचित कराएगी। यह प्रदर्शनी हर मंगलवार से रविवार तक दर्शकों के लिए खुली है।

रीता ने बताया, कि जनजातीय कला केवल एक सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि एक संवाद है, जो प्रकृति और मानव जीवन के बीच के संबंधों को उजागर करता है। वह चाहती हैं कि अधिक से अधिक युवा कलाकार इस परंपरा को आगे बढ़ाएं।

युवा भीली चित्रकार रीता भूरिया ने 'द मूकनायक' से विशेष बातचीत में बताया कि उनकी कला उनकी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने कहा, "भीली चित्रकला मेरी संस्कृति की आत्मा है। इसे सीखना और आगे बढ़ाना मेरे लिए न केवल एक शौक बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। बचपन से ही मेरी नानी भूरीबाई ने मुझे प्रेरित किया कि मैं अपनी परंपरा को समझूं और इसे अपने चित्रों के माध्यम से दुनिया तक पहुंचाऊं।" रीता का मानना है कि उनकी कला के जरिए जनजातीय जीवन और प्रकृति के बीच के गहरे संबंध को दर्शाया जा सकता है।

रीता ने अपनी कला यात्रा पर चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अपनी नानी और माता-पिता के समर्थन ने उन्हें हर कठिनाई से लड़ने का हौसला दिया। उन्होंने कहा, "भीली चित्रकला केवल रंगों और आकृतियों का मिश्रण नहीं है; यह हमारी परंपराओं और कहानियों का दस्तावेज़ है। जब मैं अपने चित्र बनाती हूं, तो ऐसा लगता है जैसे मैं अपने पूर्वजों के अनुभवों को पुनः जीवंत कर रही हूं।" रीता ने इस बात पर भी जोर दिया कि जनजातीय कला को संरक्षित करने के लिए युवा पीढ़ी का इसे अपनाना और आगे बढ़ाना बेहद जरूरी है।

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