राजस्थान हाई कोर्ट ने अधीनस्थ अदालतों में चल रही न्यायिक कर्मचारियों की हड़ताल को पूरी तरह अवैध बताते हुए सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने सभी हड़ताली कर्मचारियों को शुक्रवार, 25 जुलाई को सुबह 10 बजे तक अपने कार्यस्थलों पर लौटने का स्पष्ट निर्देश दिया है, अन्यथा कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी है।
राजस्थान के करीब 21,000 न्यायिक कर्मचारी कैडर पुनर्गठन की मांग को लेकर 18 जुलाई से सामूहिक अवकाश पर हैं। राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ के नेतृत्व में चल रही इस हड़ताल का मुख्य मुद्दा न्यायिक सेवाओं में कैडर पुनर्गठन है। मई 2023 में हाई कोर्ट की फुल बेंच ने कैडर पुनर्गठन का प्रस्ताव पारित कर इसे राज्य सरकार को भेजा था। हालांकि, दो साल बीतने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ के नेतृत्व में नाराज कमियों ने हडताल शुरू की जिसकी वजह से प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों में काम काज पूरी तरह से ठप पड़ा है।
24 जुलाई को मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में न्यायिक व्यवस्था को बाधित करने वाली हड़ताल बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसके साथ ही कोर्ट ने आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (रेस्मा) लागू करने की चेतावनी दी है, जिसने इस मामले को और गंभीर बना दिया है। दूसरी ओर, 25 जुलाई को राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच विधि सचिव और मुख्य सचिव की उपस्थिति में होने वाली बैठक पर इस आदेश का असर पड़ने की आशंका है।
गुरुवार को जस्टिस अशोक कुमार जैन की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब अधिवक्ताओं को हड़ताल करने का अधिकार नहीं है, तो वेतनभोगी न्यायिक कर्मचारी हड़ताल पर कैसे जा सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायिक व्यवस्था जनता को त्वरित और निर्बाध न्याय प्रदान करने का आधार है और इसे ठप करना जनहित के खिलाफ है। कोर्ट ने सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को निर्देश दिए हैं कि यदि कर्मचारी निर्धारित समय तक काम पर नहीं लौटते, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाए।
न्यायिक कार्यों में बाधा से बचने के लिए हाई कोर्ट ने वैकल्पिक इंतजामों का आदेश दिया है। जिला न्यायाधीशों और जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि आवश्यकतानुसार होमगार्ड की सेवाएं ली जाएं। साथ ही बार एसोसिएशनों के सहयोग से नवप्रवेशी वकीलों को कोर्ट की कार्यवाही में शामिल किया जाए। इससे सुनवाई, केस रजिस्ट्रेशन और अन्य महत्वपूर्ण कार्य प्रभावित न हों।
कर्मचारियों का कहना है कि कैडर पुनर्गठन न होने से उनकी पदोन्नति की संभावनाएं सीमित हो गई हैं और आर्थिक नुकसान हो रहा है। अन्य सरकारी विभागों में इस तरह के पुनर्गठन तेजी से लागू किए गए हैं, लेकिन न्यायिक कर्मचारियों के साथ सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण रहा है। जोशी ने कहा, "हमारी मांगें जायज हैं। जब तक सरकार हमारी बात नहीं मानती, हम काम पर नहीं लौटेंगे।"
रेस्मा (RESMA) क्या है?
रेस्मा (आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम) राजस्थान सरकार का एक कानून है, जो आवश्यक सेवाओं जैसे न्यायिक सेवाएं, स्वास्थ्य, बिजली, जल आपूर्ति आदि को बिना किसी रुकावट के चलाने के लिए बनाया गया है। इस कानून के तहत, आवश्यक सेवाओं में हड़ताल को अवैध घोषित किया जा सकता है। रेस्मा लागू होने पर हड़ताली कर्मचारियों को दंडित किया जा सकता है, जिसमें जुर्माना, कारावास, या नौकरी से बर्खास्तगी शामिल हो सकती है। यह कानून सरकार को वैकल्पिक कर्मियों को तैनात करने या अन्य उपाय करने का अधिकार देता है ताकि जनता को इन सेवाओं से वंचित न होना पड़े।
हाई कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि कर्मचारी 28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई तक काम पर नहीं लौटते, तो रेस्मा लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कर्मचारियों की मांगों पर विचार के लिए मई 2023 में ही एक प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जा चुका है, लेकिन यह नीतिगत मामला है, जिसमें न्यायालय सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता।