+

'ये आंकड़े बहुजनों की हकमारी और..... मनुवाद के पक्के सबूत हैं', राहुल गांधी ने पेश किया SC-ST, OBC की कम भागीदारी का सबूत!

नई दिल्ली: देश में कई सरकारी संस्थाओं में, निम्न से लेकर उच्च तक, बहुजनों जैसे- दलित, पिछड़े, आदिवासियों की संख्या न के बराबर है. कई संस्थाओं में तो पद वर्षों से खाली पड़े हैं, लेकिन उनपर आजतक नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं. इसी मसले पर शुक्रवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र के मोदी सरकार को घेरा है.

सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए राहुल गांधी ने लिखा कि, "संसद में मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए ये आंकड़े बहुजनों की हकमारी और संस्थागत मनुवाद के पक्के सबूत हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के - ST के 83% - OBC के 80% - SC के 64% पद जानबूझकर खाली रखे गए हैं। वहीं एसोसिएट प्रोफेसर के - ST के 65% - ⁠OBC के 69% - ⁠SC के 51% पद भी रिक्त छोड़ दिए गए हैं।"

उन्होंने आगे लिखा कि, "ये सिर्फ लापरवाही नहीं, एक सोची-समझी साजिश है - बहुजनों को शिक्षा, रिसर्च और नीतियों से बाहर रखने की। विश्वविद्यालयों में बहुजनों की पर्याप्त भागीदारी नहीं होने से वंचित समुदायों की समस्याएं रिसर्च और विमर्श से जानबूझकर गायब कर दी जाती हैं। NFS (Not Found Suitable) के नाम पर हज़ारों योग्य SC, ST, OBC उम्मीदवारों को मनुवादी सोच के तहत अयोग्य घोषित किया जा रहा है और सरकार कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं। ये पूरी तरह से अस्वीकार्य है। सभी रिक्त पद तुरंत भरे जाएं - बहुजनों को उनका अधिकार मिलना चाहिए, मनुवादी बहिष्कार नहीं।"

राहुल गांधी द्वारा उठाए गए यह सवाल तो ठीक वैसे हैं जैसे सवालों के सागर से मात्र एक लोटा भरकर ही सवाल उठाए गए हैं. असल में इसकी गंभीरता और भी चौंकाने वाली है. शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 6,549 शिक्षक पद रिक्त हैं, जिनमें 3,669 आरक्षित श्रेणियों (SC/ST/OBC) के हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय (900 रिक्तियां), इलाहाबाद विश्वविद्यालय (622 रिक्तियां), और बीएचयू (532) में सबसे अधिक रिक्तियां हैं।

राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों (जैसे IITs, IIMs, NITs) और अन्य केंद्रीय सरकारी संस्थानों में भी SC/ST/OBC के लिए आरक्षित पदों में कमी देखी गई है। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार, इन संस्थानों में सवर्ण हिंदुओं की हिस्सेदारी 70.2% थी, जबकि आरक्षित वर्गों की हिस्सेदारी अपेक्षा से कम थी।

मंत्रालयों में उच्च पदों (जैसे PMO, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय) पर SC/ST/OBC की प्रतिनिधिता नगण्य है। उदाहरण के लिए, PMO में 21 सवर्णों के मुकाबले SC/ST से कोई नहीं, और OBC से केवल 4 लोग हैं।

सरकारी संस्थाओं में रिक्तियों के कारण

कई विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में "संस्थागत मनुवाद" के कारण आरक्षित पदों को जानबूझकर खाली रखा जाता है। "कोई योग्य नहीं (Not Found Suitable - NFS)" का हवाला देकर आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को अस्वीकार किया जाता है, जिसे आरक्षण को खत्म करने की साजिश के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, साक्षात्कार प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और चयन समितियों में सवर्ण वर्चस्व भी एक कारण है।

सरकारी संस्थानों में स्थायी नियुक्तियों के बजाय ठेके पर शिक्षक और कर्मचारी रखने की प्रथा बढ़ी है। ठेके और निजी क्षेत्र में आरक्षण नीति लागू नहीं होती, जिससे SC/ST/OBC उम्मीदवारों को अवसर नहीं मिलते हैं। टेक्निकली देखा जाए तो, सरकारी भर्तियों में कमी और निजीकरण की नीतियों से भी आरक्षित पदों की रिक्तियों का दायरा बढ़ता जा रहा है।

जाहिर है कि, उच्च शिक्षा संस्थानों में दलित और आदिवासी छात्रों और शिक्षकों को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण कई योग्य उम्मीदवार इन संस्थानों में करियर बनाने से हिचकते हैं। रोहित वेमुला की आत्महत्या (2016) इसका एक प्रमुख उदाहरण है।

facebook twitter