भोपाल। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ परिसर में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित किए जाने को लेकर चल रहा विवाद अब राष्ट्रीय स्तर पर एक संवैधानिक बहस का रूप लेता जा रहा है। इस मुद्दे पर देश के पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दिव्यांग तैराक और पद्मश्री से सम्मानित सतेंद्र सिंह लोहिया ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक भावनात्मक और संविधानसम्मत अपील भेजी है।
सतेंद्र लोहिया ने इस पत्र की प्रतियां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी भेजी हैं। उन्होंने कहा कि ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा का निर्माण महज एक मूर्त स्थापना नहीं, बल्कि भारतीय संविधान, न्याय व्यवस्था और सामाजिक समरसता के प्रति एक मजबूत संदेश है।

अंबेडकर के विचारों पर चलकर समाज को दिशा देने का संकल्प
भिंड जिले के गाता गांव से आने वाले सतेंद्र लोहिया वर्तमान में इंदौर में रहते हैं। वे न सिर्फ दिव्यांग समुदाय के लिए प्रेरणा हैं, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए संघर्ष और उपलब्धियों की मिसाल भी हैं। वर्ष 2024 में राष्ट्रपति द्वारा उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने बताया कि ग्वालियर में रहकर उन्होंने शिक्षा पाई और वहीं से जीवन के मूल्य सीखे।
उन्होंने अपने पत्र में उल्लेख किया कि जब वे वर्ष 2018 में लंदन गए थे, तो उन्होंने डॉ. अंबेडकर की लंदन स्थित अध्ययन स्थली पर नतमस्तक होकर यह संकल्प लिया था कि वे जीवन में उन्हीं के आदर्शों पर चलकर देश और समाज का नाम ऊंचा करेंगे।
सतेंद्र लोहिया ने अपने पत्र में गहरी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा है कि कुछ जातिवादी मानसिकता वाले लोग ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में अंबेडकर प्रतिमा की स्थापना का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह न केवल डॉ. अंबेडकर का अपमान है, बल्कि भारतीय संविधान, न्यायपालिका और उन मूल्यों का भी अपमान है, जिनके लिए यह देश खड़ा है।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, "डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा का विरोध करना उसी संविधान का विरोध करना है, जिसने न्याय, समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे मूल अधिकार हर नागरिक को दिए हैं। यह केवल एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र का अपमान है।"
सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग
सतेंद्र लोहिया ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि वे इस मामले में स्वतः संज्ञान लेकर उचित निर्देश जारी करें, ताकि ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा शीघ्र स्थापित हो सके। उनका कहना है कि यह न केवल संविधान में आस्था रखने वालों को सम्मान देगा, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा को भी और ऊँचा करेगा।
अपने पत्र के अंत में लोहिया ने लिखा कि यदि उच्च न्यायालय जैसे संवैधानिक परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित होती है, तो यह केवल एक प्रतीक नहीं होगा, बल्कि करोड़ों लोगों को यह विश्वास दिलाएगा कि देश की न्याय व्यवस्था संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़ी है।
उन्होंने यह भी कहा कि इससे भारत की संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा और भरोसा और अधिक मजबूत होगा, जो आज के दौर में निहायत जरूरी है।
जानिए कैसे शुरू हुआ विवाद?
19 फरवरी 2025 – ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति लगाने की मांग को लेकर अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन सौंपा।
26 मार्च 2025 – जबलपुर स्थित प्रधान रजिस्ट्रार ने अधिवक्ताओं के समर्थन के आधार पर मूर्ति स्थापना के आदेश दिए।
21 अप्रैल 2025 – रजिस्ट्रार ने PWD को स्थल पर मंच निर्माण कर मूर्ति स्थापित करने के निर्देश दिए।
10 मई 2025 – मूर्ति का विरोध कर रहे वकीलों ने स्थल पर तिरंगा फहराया, पुलिस से झड़प हुई।
14 मई 2025 – वकीलों के दो गुटों में टकराव, सोशल मीडिया पर पोस्टर वॉर शुरू।
17 मई 2025 – हाईकोर्ट परिसर में भीम आर्मी के सदस्य पर हमला हुआ, जिससे तनाव बढ़ गया।