चंद्रशेखर आज़ाद पर आधारित आईपीएस अधिकारी प्रताप गोपेन्द्र की नई किताब ‘चंद्रशेखर आज़ाद: मिथक और यथार्थ’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी कई ऐतिहासिक धारणाओं को चुनौती देती है। यह पुस्तक उन पुलिस रिकॉर्ड्स, खुफिया रिपोर्ट्स, CID फाइलों, और आज़ाद के अप्रकाशित पत्रों पर आधारित है, जो दशकों तक सार्वजनिक इतिहासकारों की आंखों से ओझल थे।
इस पुस्तक में जो खुलासे हुए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि हमारे इतिहास की मूल समझ पर भी सवाल उठाते है
चन्द्रशेखर आजाद की शहादत पर छिड़ी नई बहस
एल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आज़ाद पार्क) में आज़ाद की मृत्यु को लेकर लंबे समय से बहस रही है। पुस्तक में दिए गए ब्रिटिश रिकॉर्ड्स, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, और हथियारों की जांच रिपोर्ट पर ये किताब काफी गहराई से बात करती है.
इतिहास में प्रचलित धारणा है कि चंद्रशेखर की शहादत के वक्त उनके पिस्तौल में आखिरी गोली बची थी जबकि उनकी जांच रिपोर्ट में साफ लिखा है कि आजाद की पिस्तौल में जिंदा 16 कारतूस थे जबकि 22 गोलियां चलाई जा चुकी थी.
तो क्या आज़ाद ने आत्महत्या की थी या नहीं ये अपने आप बड़ा सवाल आमजन में पैदा करता है? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है जब उनके पास गोलियां बची थी तो इतिहास में अंतिम गोली की बात किसने कही?
अल्फ्रेड पार्क में शहादत के समय आज़ाद और सुखदेवराज के अलावा एक और क्रांतिकारी साथी मौजूद था, लेकिन इतिहास में उसके नाम का उल्लेख नहीं है। जिसका नाम हजारी लाल था. यह पुस्तक इस पर विस्तृत चर्चा करती है।
हालांकि, उनके साथियों शिव वर्मा और सदाशिवराव मलकापुरकर ने हमेशा इस बात से इनकार किया कि उन्होंने आत्महत्या की थी।
यहाँ किताब में पहली बार प्रस्तुत किए गए प्रमुख खुलासे दिए गए हैं, साथ ही नवीनतम खोजे गए विवरण भी शामिल हैं:
कानपुर के भौती में पैतृक जड़ें: यह किताब कानपुर के भौती गाँव और आज़ाद के परिवार की वंशावली के बारे में नई जानकारी प्रदान करती है, जिससे उनके प्रारंभिक जीवन को आकार देने वाले प्रभावों की गहरी समझ मिलती है।
जन्मस्थान की स्पष्टता: पहली बार, किताब में अलीराजपुर और भंवरा के समय और स्थान का विवरण दिया गया है, जिन्हें निश्चित रूप से आज़ाद का जन्मस्थान माना गया है, जिससे ऐतिहासिक अस्पष्टताओं का समाधान हुआ है।
जन्म तिथि की प्रामाणिकता: किताब विश्वसनीय साक्ष्यों के साथ आज़ाद की जन्म तिथि को प्रमाणित करती है, जिससे दशकों से चली आ रही बहस समाप्त हो गई है।
एक से अधिक गिरफ्तारियाँ उजागर: जहाँ पहले की जीवनी में केवल एक गिरफ्तारी का उल्लेख है, वहीं किताब आज अखबार की रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताती है कि आज़ाद को दो बार गिरफ्तार किया गया, एक बार जुर्माना लगाया गया और उन्होंने आज के संपादक को एक पत्र भी लिखा। ये अनदेखे विवरण अब पूरी तरह से दर्ज किए गए हैं।
वाराणसी के वर्ष (1921–1925): 1921–1925 के दौरान वाराणसी में आज़ाद की गतिविधियों और ठिकानों का पहली बार विस्तृत विवरण दिया गया है, जो उनकी प्रारंभिक क्रांतिकारी गतिविधियों पर प्रकाश डालता है।
‘आज़ाद’ उपनाम का उद्भव: किताब स्पष्ट करती है कि “आज़ाद” नाम को कोड़ों की सजा की घटना से पहले अपनाया गया था और इसका उस घटना से कोई संबंध नहीं है। यह भी विस्तार से बताया गया है कि उन्होंने यह प्रतिष्ठित नाम कब और कैसे अपनाया।
कोड़ों की संख्या में सुधार: पहले के विवरणों में दावा किया गया था कि आज़ाद को 15 कोड़े मारे गए थे, लेकिन किताब में उद्धृत प्राथमिक और समकालीन स्रोतों के अनुसार यह संख्या 12 थी।
क्रांति का मार्ग: खुफिया रिपोर्टों के आधार पर, किताब में बताया गया है कि आज़ाद क्रांतिकारी कैसे बने और वे कब पहली बार ब्रिटिश CID की नजर में आए।
काकोरी से पहले की कार्रवाइयाँ: किताब में काकोरी केस से पहले आज़ाद द्वारा चार धन-संबंधी क्रांतिकारी कार्रवाइयों में भागीदारी का विवरण दिया गया है, जिसमें सटीक समयरेखा और विवरण शामिल हैं, जो पहले की जीवनी में अनुपस्थित थे।
झांसी में भूमिगत दिन: काकोरी कांड के बाद झांसी में आज़ाद के भूमिगत दिनों को ब्रिटिश समकालीन रिपोर्टों और डायरियों के आधार पर फिर से जांचा गया है, जो उनके साथियों की स्मरण-रचनाओं से परे एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है।
अप्रकाशित बयान: पहली बार, शिव वर्मा, सदाशिव मलकापुरकर, दुर्गा भाभी, और कैलाशपति जैसे साथियों और मुखबिरों के पुलिस को दिए गए या न्यायिक कार्यवाही में दर्ज बयानों को प्रकाशित किया गया है, जो आज़ाद के क्रांतिकारी नेटवर्क में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
HSRA का गठन और आज़ाद की अनुपस्थिति: किताब में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना और इसके उद्घाटन बैठक से आज़ाद की अनुपस्थिति के कारणों की पहली बार चर्चा की गई है.
आज़ाद के अंतिम दिन के रहस्य: किताब में अल्फ्रेड पार्क में आज़ाद के अंतिम दिन से जुड़े कई सवालों की जांच की गई है.
पुलिस मुखबिर की पहचान: इंस्पेक्टर के घर में बंद रहस्यमयी व्यक्ति के बारे में विवरण, जिसे मुखबिर माना जाता है.
गांधी और नेहरू के साथ आजाद के संबंध: शहादत से दस दिन पहले इलाहाबाद में एक पार्क में गांधी से मुलाकात का उल्लेख है, जब आज़ाद ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया और गांधी जी ने हाथ हिलाकर जवाब दिया. चन्द्रशेखर आज़ाद ने प्रयागराज में मोतीलाल नेहरू के अंतिम संस्कार में चेहरा ढककर बिना खाए पिए शामिल रहे और पत्रकार सुरेंद्र नाथ से कहा, “आज देश का एक महान नेता विदा हो गया."
किताब में बताया गया है कि आज़ाद ने छह वर्षों तक ब्रिटिश CID को कैसे चकमा दिया, जिसमें उनकी चतुराई और रणनीतिक बचाव के तरीकों पर प्रकाश डाला गया है।
आज़ाद का व्यक्तित्व और विचारधारा: आज़ाद के व्यक्तित्व और क्रांतिकारी विचारधारा का व्यापक विश्लेषण भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके दृष्टिकोण की पूरी तस्वीर प्रस्तुत करता है।
नए पत्रों की खोज: जहाँ पहले की जीवनी में केवल एक पोस्टकार्ड पत्र का उल्लेख था, वहीं किताब में आज़ाद के तीन अतिरिक्त पत्रों का विवरण, उनके स्रोत और प्रामाणिकता के साथ दिया गया है।
धर्मेंद्र गौड़ के कार्य की समीक्षा: किताब में धर्मेंद्र गौड़ की आज़ाद पर लिखी पुस्तक की आलोचनात्मक समीक्षा शामिल है, जो इसे व्यापक इतिहास लेखन के संदर्भ में रखती है
आज़ाद के जीवन की समयरेखा: आज़ाद के जीवन से संबंधित लगभग 250 प्रमुख तिथियों की विस्तृत सूची शोधकर्ताओं और उत्साही लोगों के लिए एक विस्तृत समयरेखा प्रदान करती है।
दुर्लभ दस्तावेज: किताब में ऐतिहासिक दस्तावेजों की दुर्लभ तस्वीरें शामिल हैं, जो आज़ाद के जीवन और समय के दृश्य साक्ष्य प्रदान करती हैं।
व्यापक ग्रंथ सूची: नई संदर्भ सामग्री और उनके स्रोतों से समृद्ध ग्रंथ सूची इस कार्य के पीछे किए गए शोध की गहराई को दर्शाती है।
यह शोध पूर्वक तैयार की गई किताब चंद्रशेखर आज़ाद के बारे में कथानक को फिर से परिभाषित करती है और इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रशंसकों के लिए एक अमूल्य संसाधन के रूप में कार्य करती है।
नए साक्ष्यों और स्रोतों की गहन जांच के साथ, यह आज़ाद के जीवन और विरासत का निश्चित विवरण बनने की ओर अग्रसर है। जो आज़ाद की कहानी को बेजोड़ गहराई और प्रामाणिकता के साथ जीवंत करता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.