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एतिहासिक फैसला: अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने कैलिफोर्निया सरकार की जाति भेदभाव रोकने के अधिकार को रखा बरकरार!

सैक्रामेंटो, कैलिफोर्निया- अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने कैलिफोर्निया सिविल राइट्स डिपार्टमेंट (CRD) को जाति-उत्पीड़ित व्यक्तियों के संरक्षण के लिए कानूनी कार्रवाई करने के अधिकार को बरकरार रखते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।

18 जुलाई को यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट (ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ कैलिफोर्निया) ने हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें CRD की जाति-विरोधी नीतियों को "हिंदू अमेरिकन्स के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन" बताया गया था।

कोर्ट ने कहा कि HAF के पास न तो केस लड़ने का कानूनी अधिकार (स्टैंडिंग) है और न ही उसके तर्क वैध हैं। जज ने यह भी कहा कि HAF का यह दावा पाखंडपूर्ण है कि जाति हिंदू धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है, जबकि वह यह भी कहता है कि जाति-आधारित सुरक्षा उपाय हिंदू धार्मिक अधिकारों का हनन करते हैं।

कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ी जीत बताया है।

कैलिफोर्निया स्थित जाति-विरोधी और सामाजिक न्याय संगठन- अंबेडकर किंग स्टडी सर्कल (AKSC) ने इस फैसले को न केवल एक कानूनी जीत बताया, बल्कि इसे "नागरिक अधिकारों और सामाजिक न्याय की बड़ी उपलब्धि" कहा।

AKSC ने अमेरिका के बहुजातीय, बहुधार्मिक और जाति-विरोधी संगठनों के प्लेटफॉर्म "सवेरा कोएलिशन" की ओर से एक बयान जारी कर कहा कि इस फैसले के चार प्रमुख नतीजे हैं:

  1. CRD की संवैधानिक शक्ति: कोर्ट ने CRD को जाति-आधारित भेदभाव के शिकार लोगों की ओर से कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार दिया है।

  2. सिस्को केस को वैध ठहराया: कोर्ट ने CRD की सिस्को के खिलाफ कार्रवाई को वैध राज्य कार्रवाई माना।

  3. धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं: कोर्ट ने कहा कि CRD की कार्रवाई हिंदू अमेरिकन्स के धार्मिक अधिकारों, समान संरक्षण या कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं करती और HAF के तर्क "पूरी तरह से अविश्वसनीय" हैं।

  4. HAF का प्रतिनिधित्व खारिज: कोर्ट ने HAF के इस दावे को खारिज कर दिया कि वह "सभी हिंदू अमेरिकन्स" का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि संगठन ने हिंदू समुदाय के साथ अपनी सक्रिय भागीदारी या प्रतिनिधित्व का कोई सबूत नहीं दिया।

कोर्ट ने HAF और आठ व्यक्तियों द्वारा सितंबर 2024 में CRD डायरेक्टर केविन किश के खिलाफ दायर दूसरी संशोधित याचिका को भी खारिज कर दिया।

जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ स्पष्ट संदेश

AKSC के संयोजक कार्तिकेयन शनमुगम ने कहा, "कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि नागरिक अधिकार कानूनों को लागू करना धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं है। यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है कि अमेरिका में जाति-आधारित भेदभाव और शोषण के लिए कोई जगह नहीं है, और पीड़ित कानून के तहत न्याय मांग सकते हैं।"

दलित सॉलिडैरिटी फोरम की अध्यक्ष रोजा सिंह ने कहा कि यह फैसला दर्शाता है कि "अमेरिका में दशकों से चल रहे जाति-आधारित उत्पीड़न का अंततः सामना किया जा रहा है।"

इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के अध्यक्ष जावेद अहमद ने कहा, "यह फैसला एक महत्वपूर्ण पुष्टि है जो हम सभी जानते हैं: कैलिफोर्निया सिविल राइट्स डिपार्टमेंट (CRD) का मुकदमा सभी के लिए नागरिक अधिकारों और मानवीय गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए था। किसी भी समूह को अपनी पहचान को हथियार बनाकर उत्पीड़न की व्यवस्थित प्रणालियों को मजबूत नहीं करना चाहिए। भारतीय अमेरिकी मुस्लिम समुदाय दलित और अन्य जाति-उत्पीड़ित समुदायों के साथ इस फैसले का जश्न मनाने में खड़ा रहेगा।"

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