नई दिल्ली- देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक बदलाव को अपनाया है। विश्वविद्यालय ने अपने कुलपति के पदनाम को बदलकर 'कुलगुरु' कर दिया है, जिसे एक लिंग-तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) शब्द माना गया है।
इस बदलाव के पीछे जेएनयू की पहली महिला कुलगुरु, प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित का विशेष योगदान रहा है, जिन्होंने इस प्रस्ताव को रखते हुए इसे समावेशी शैक्षणिक नेतृत्व का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि 'कुलगुरु' शब्द न केवल सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लिंग-तटस्थ होने के कारण पारंपरिक पदनामों का एक समावेशी विकल्प भी प्रदान करता है। हिंदी में 'पति' शब्द का अर्थ पति या स्वामी होता है, जबकि 'गुरु' का अर्थ शिक्षक है, जो लिंग से परे एक समानता का प्रतीक है। इस बदलाव को जेएनयू की कार्यकारी परिषद ने छह महीने पहले स्वीकार किया था और अब यह औपचारिक रूप से लागू हो चुका है। प्रोफेसर शांतिश्री जेएनयू की वीसी बनने से पहले सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में थीं।
गौरतलब है कि अगस्त 2022 में 'डॉ. बी आर अंबेडकर के विचार जेंडर जस्टिस : डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड' विषय पर एक व्याख्यान में प्रो. शांतिश्री धुलीपुड़ी शामिल हुईं थीं। इसी दौरान उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने देवी देवताओं की जाति तक का जिक्र किया। उन्होंने कहा था देवता ऊंची जाति के नहीं होते, शिव SC या ST हो सकते हैं।
कौन हैं शांतिश्री, शैक्षिक पृष्ठभूमि
शांतिश्री धुलीपुडी पंडित का जन्म 15 जुलाई 1962 को रूस के लेनिनग्राद (वर्तमान सेंट पीटर्सबर्ग) में हुआ था, ने अपने शैक्षणिक और पेशेवर जीवन में कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए और एमए की पढ़ाई पूरी की, जहां वे दोनों ही डिग्रियों में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली गोल्ड मेडलिस्ट रहीं। इसके बाद, उन्होंने जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एम.फिल और पीएचडी पूरी की। स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी से शांति और संघर्ष अध्ययन में पोस्ट-डॉक्टरेट करने वाली शांतिश्री ने अपने करियर की शुरुआत 1988 में गोवा यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के रूप में की और 1991 में पुणे यूनिवर्सिटी (वर्तमान सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी) में शामिल हुईं। 2006 से वे राजनीति और लोक प्रशासन विभाग में प्रोफेसर रहीं और 2001 से 2007 तक अंतरराष्ट्रीय केंद्र की निदेशक भी रहीं।
7 फरवरी 2022 को शांतिश्री धुलीपुडी को जेएनयू की पहली महिला और पूर्व छात्रा के रूप में कुलगुरु नियुक्त किया गया, जो पांच साल का कार्यकाल है। तीन दशकों से अधिक के उनके शिक्षण और शोध करियर में उन्होंने चार किताबें लिखीं और दो का संपादन किया। इसके अलावा, उन्होंने कई शोध पत्र प्रकाशित किए और 36 से अधिक किताबों में अध्याय लिखे। उनके कुछ उल्लेखनीय प्रकाशनों में 'पार्लियामेंट एंड फॉरेन पॉलिसी इन इंडिया' (1990), 'रेस्ट्रक्चरिंग एनवायर्नमेंटल गवर्नेंस इन एशिया-एथिक्स एंड पॉलिसी' (2003), और 'कोविड-19 क्राइसिस एंड द फ्यूचर ऑफ हायर एजुकेशन इन इंडिया' (2022) शामिल हैं। उन्होंने 'द हिंदू', 'न्यूज टुडे', 'सकाळ', और 'न्यू स्वतंत्र टाइम्स' जैसे समाचार पत्रों में लेख और कॉलम लिखे, साथ ही कई पत्रिकाओं में पुस्तक समीक्षाएं भी प्रकाशित कीं।
शांतिश्री धुलीपुडी की शैक्षणिक और सामाजिक सक्रियता भी उल्लेखनीय है। उन्होंने 30 छात्रों को पीएचडी और 8 को एम.फिल में मार्गदर्शन प्रदान किया, और वर्तमान में चार छात्र उनके मार्गदर्शन में डॉक्टरेट कर रहे हैं। वे 1996 से 2009 तक पुणे यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन की महासचिव रहीं और 2001 से 2006 तक पुणे यूनिवर्सिटी के सीनेट और मैनेजमेंट काउंसिल की सदस्य थीं। इसके अलावा, वे अंतरराष्ट्रीय संबंध, एशियाई अध्ययन, संस्कृति, और विदेश नीति जैसे विषयों में विशेषज्ञ के रूप में कई विश्वविद्यालयों की बोर्ड ऑफ स्टडीज में शामिल रही हैं। वे तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में पारंगत हैं, और कन्नड़, मलयालम, और कोंकणी को भी समझ सकती हैं।
उनके योगदान के लिए शांतिश्री को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 2003 में यूथ फोरम फॉर गांधियन स्टडीज, चेन्नई द्वारा वुमन एजुकेटर अवार्ड, 2004 में वाइसटेक्स अवार्ड फॉर वुमन लीडर्स, 2010 में वीर सावरकर अवार्ड, 2022 में सुषमा स्वराज स्त्री शक्ति अवार्ड, और यूनिवर्सल पीस फेडरेशन का एम्बेसडर ऑफ पीस अवार्ड शामिल हैं।
इस बदलाव पर प्रतिक्रिया देते हुए, जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष नितीश कुमार ने इसे एक प्रतीकात्मक कदम बताया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि विश्वविद्यालय को केवल प्रतीकात्मक बदलावों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्होंने लिंग-तटस्थ शौचालयों और छात्रावासों जैसे ठोस कदमों की मांग की, जो वास्तविक लैंगिक न्याय को बढ़ावा दे सकें। यह बदलाव मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के अनुरूप है, जहां 'कुलगुरु' और 'प्रतिकुलगुरु' जैसे शब्द पहले ही अपनाए जा चुके हैं। मध्य प्रदेश ने पिछले साल जुलाई में और राजस्थान ने बीते फरवरी में इस तरह के संशोधनों को मंजूरी दी थी।
शांतिश्री धुलीपुडी के नेतृत्व में जेएनयू द्वारा 'कुलगुरु' शब्द को अपनाना न केवल एक भाषाई बदलाव है, बल्कि यह समावेशिता और लैंगिक तटस्थता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।