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23 साल पुराना 498A केस खारिज: सुप्रीम कोर्ट ने कहा— महिला सब-इंस्पेक्टर ने कानून का किया गलत इस्तेमाल

नई दिल्ली: भारतीय दंड संहिता की धारा 498A — जो वैवाहिक उत्पीड़न और दहेज प्रताड़ना को अपराध बनाती है — के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की एक महिला सब-इंस्पेक्टर द्वारा अपने पति, ससुराल वालों और अन्य पर दर्ज 23 साल पुराने केस को खारिज कर दिया है।

जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए 2002 में दिल्ली के मालवीय नगर थाने में दर्ज एफआईआर और 2004 में दाखिल चार्जशीट को रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा, "यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिकायतकर्ता, जो स्वयं राज्य की अधिकारी हैं, ने आपराधिक कानून की प्रक्रिया का ऐसा दुरुपयोग किया, जिसमें वृद्ध सास-ससुर, पांच बहनें और एक दर्जी तक को आरोपी बना दिया गया।"

'498A के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है'

फैसला लिखते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा, "अगर अभियोजन पक्ष के आरोपों को उनकी संपूर्णता में भी मान लिया जाए, तब भी उनमें समय, तारीख या स्थान की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है। ऐसे में 'क्रूरता' के आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सामग्री पेश नहीं की गई है।"

उन्होंने कहा कि जहां एक ओर दहेज उत्पीड़न के कई वास्तविक मामले होते हैं, वहीं दूसरी ओर इस कानून का दुरुपयोग करके महिलाओं द्वारा अपने पति और उसके पूरे परिवार को झूठे केस में फंसाने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।

गौरतलब है कि पति और पत्नी, दोनों दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर थे और फरवरी 1998 में बौद्ध रीति-रिवाज से विवाह हुआ था। जुलाई 2002 में महिला ने पति और उसके परिजनों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न की शिकायत की थी, जिसके आधार पर 2004 में चार्जशीट दाखिल की गई। 2008 में मजिस्ट्रेट ने आरोप तय किए थे।

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