राजस्थान: खून में लथपथ तडपती रही प्रसूता, PHC नर्सिंगकर्मियों ने कहा- दूसरे अस्पताल ले जाओ!

05:47 PM Dec 03, 2024 | Geetha Sunil Pillai

डूंगरपुर, राजस्थान - ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लगातार प्रयासों के बावजूद, आदिवासी समुदायों को अब भी प्रणालीगत लापरवाही का सामना करना पड़ रहा है। एक दुखद घटना में, एक आदिवासी महिला ने डूंगरपुर जिले के पीठ सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के पोर्च में बच्चे को जन्म दिया, क्योंकि अस्पताल के स्टाफ ने कथित रूप से उसे चिकित्सा सहायता देने से इनकार कर दिया, और महिला के परिवार को खुद ही प्रसव करवाना पड़ा।

स्थानीय पत्रकार गुणवंत कलाल, जिन्होंने इस घटना की रिपोर्ट The Mooknayak को दी, ने बताया कि 1 दिसंबर को नवघारा भचड़िया गांव की सुरा पत्नी महेश डामोर को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। उसका परिवार उसे तत्काल पीठ सरकारी स्वास्थ्य केंद्र लेकर गया, ताकि उसे त्वरित चिकित्सा सहायता मिल सके। लेकिन वहां मौजूद दो नर्सिंग स्टाफ ने उसे देखने से इनकार कर दिया और परिवार को सिमलवाड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) जाने की सलाह दी, जो कि कई किलोमीटर दूर था।

परेशान परिवार जन तुरंत परिवहन का इंतजाम नहीं होने की मजबूरी बताते हुए नर्सिंग स्टाफ से कम से कम बुनियादी सहायता देने की विनती करता रहा, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। जैसे-जैसे सुरा की प्रसव पीड़ा बढ़ी, वह अस्पताल के पोर्च में गिर पड़ी। चिकित्सा सहायता के बिना, उसने वहीं जमीन पर बच्चे को जन्म दिया, उसके परिवार के सदस्य बेबस होकर उसकी देखभाल करते रहे।

बच्चे का जन्म हो जाने के बाद भी अस्पताल के स्टाफ ने कथित तौर पर हस्तक्षेप करने से इनकार किया। यहाँ तक कि खूब से लथपथ प्रसूता से नवजात को अलग करने के लिए परिजनों ने ही नाल को काटा और शिशु को सम्भाला। लगभग आधे घंटे बाद, महिला और बच्चा सिमलवाड़ा सीएचसी में भर्ती किए गए।

चिकित्सा सहायता के बिना, महिला ने पोर्च में जमीन पर बच्चे को जन्म दिया, उसके परिवार के सदस्य बेबस होकर शिशु को संभालते दिखे।

अस्पताल के बाहर प्रदर्शन करते ग्रामीण

इस घटना के बाद स्थानीय समुदाय में व्यापक नाराजगी फैल गई। गांववालों ने अस्पताल के बाहर प्रदर्शन किया, और लापरवाह स्टाफ के खिलाफ तत्काल कार्रवाई और क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की मांग की।

प्रदर्शन के जवाब में, डूंगरपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ), डॉ. अलंकार गुप्ता, अस्पताल पहुंचे और प्रदर्शनकारियों की शिकायतें सुनीं। डॉ. गुप्ता ने समुदाय को आश्वस्त किया कि कार्रवाई की जाएगी और इसके बाद उन्होंने पीठ अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर, डॉ. जय सिंह चौधरी को एपीओ आदेश जारी किया। इसके अतिरिक्त, एक समिति भी गठित की गई है जो इस घटना की जांच करेगी और लापरवाही में शामिल किसी भी कर्मचारी के खिलाफ आगे की कार्रवाई की सिफारिश करेगी।

डूंगरपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ), डॉ. अलंकार गुप्ता ने ग्रामीणों की शिकायतें सुनी और अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर, डॉ. जय सिंह चौधरी को एपीओ आदेश जारी किया।

इस मामले में बढ़ते विरोध के बीच, पीठ अस्पताल से जुड़े डॉ. रोहित लबाना ने लापरवाही के आरोपों का खंडन किया। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अस्पताल का आधिकारिक समय सुबह 9 बजे से है, और परिवार इससे पहले अस्पताल आया था। उन्होंने यह भी कहा कि नर्सिंग स्टाफ और किसी भी डॉक्टर को इस मामले की पूर्व सूचना नहीं थी।

डॉ. लबाना ने अस्पताल की स्थिति के बारे में भी जानकारी दी, और बताया कि पीएचसी की जर्जर अवस्था के कारण स्टाफ वर्तमान में आवासीय क्वार्टर से काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि हो सकता है इस कारण से समय पर मदद नहीं मिल पाई हो।

समाज सेवी और पत्रकार गुणवंत कलाल ने कहा, "इस मामले में दिखाई गई संवेदनहीनता और तत्परता की कमी निंदनीय है । एक महिला को अस्पताल के पोर्च में अपने बच्चे को जन्म देने के लिए छोड़ दिया जाना, हमारे आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति के बारे में बहुत कुछ कहता है।"

खोखरिया ने चेतावनी दी कि यदि दोषी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है, तो वे पांच दिनों के बाद फिर से एक और विरोध प्रदर्शन करेंगे।

सामाजिक कार्यकर्ता और भारत आदिवासी पार्टी के नेता पॉपट खोखरिया ने डूंगरपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं की खराब हालत पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि चौरासी में सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टर अक्सर अपनी निजी क्लीनिक चलाते हैं, जिससे वे सरकारी अस्पतालों में मरीजों को इलाज देने के लिए अनुपलब्ध रहते हैं, और इसके परिणामस्वरूप लोग गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं। खोखरिया ने CMHO डॉ. अलंकार गुप्ता द्वारा तत्काल कार्रवाई करने की सराहना की, लेकिन चेतावनी दी कि यदि दोषी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है, तो वे पांच दिनों के बाद फिर से एक और विरोध प्रदर्शन करेंगे।