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'राष्ट्रीय मानव' का दर्जा लेकिन घर-बिजली-पानी तक नसीब नहीं: क्यों चर्चा में है मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति, क्या है हाल?

मध्यप्रदेश के हिंडौरी जिले में गरीब और संसाधन विहीन बैगा आदिवासियों के नाम पर भू माफियाओं द्वारा करोड़ों की बेनामी सम्पत्ति खरीदने का एक मामला सुर्ख़ियों में है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक भू और खनन माफिया आदिवासियों की बेशकीमती जमीनों की खरीद फरोख्त कर रहे हैं। इसी कड़ी में हिंडौरी जिले की बजाग तहसील में पिपरिया माल और बचनेली सानी गांवों में चार आदिवासियों के नाम पर संरक्षित बैगा आदिवासियों की 1200 एकड़ से ज्यादा जमीनें खरीद लिए जाने का मामला चर्चित हो रहा है।

मामला उजागर होने के बाद भारत आदिवासी पार्टी के राजस्थान से सांसद राजकुमार रोत ने मूलभूत सुविधाओं से वंचित बैगा जनजाति की पीड़ा को आवाज़ दी है. सोशल मीडिया में एक पोस्ट में रोत ने लिखा, " ये वही बेगा आदिवासी है जिन्हें राष्ट्रीय मानव का दर्जा प्राप्त है। मध्यप्रदेश में दो माह पहले उसी बेगा आदिवासी समूह से हिरण परते नामक व्यक्ति को पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी और नक्सली का झूठा ठप्पा लगा दिया था। मैं स्वयं उस पीड़ित परिवार से मिला था। सभी को पता है कि उसको नक्सली का ABCD भी नहीं पता था। क्या हिरण परते का एनकाउंटर भी बैनामी सम्पति से जुड़ा कोई बड़ा राज तो नही ? यह भी जांच का विषय है ?

बेगा आदिवासी कभी नक्सली के नाम से मारे जाते है। कुछ को पुलिस थानो के पेंडिंग पड़े केस को थोपने का सबसे सस्ते साधन के रूप में उपयोग किया जाता है और वो जेल में ही अपनी आधी जिन्दगी गुजार देता है। कुछ लापता हो जाते हैं, जिनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज तक नही होती। इसी तरह कई कारणों से बेगा आदिवासियों की जनसंख्या दिन-ब-दिन घटती जा रही है। आज भी ना शिक्षा, ना स्वास्थ्य सुविधा, ना घर, ना बिजली और ना पानी नसीब हो रहा है। लेकिन वो कागजो में करोड़ों के मालिक बने बैठे हैं। क्या मध्यप्रदेश सरकार बेगा आदिवासियों की सुध लेगी ? क्या उन बेगा आदिवासी के चेहरे के पीछे शोषणकारी दबंग लोगो का सजा देगी ? या धर्म की राजनीतिक चटनी ही चटा-चटाकर वोट लेते रहोगे? "

2012 में मिला था "राष्ट्रीय मानव" का दर्जा

बैगा जनजाति, जिसे 9 अगस्त 2012 से भारत का "राष्ट्रीय मानव" का दर्जा प्राप्त है, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में निवास करने वाली विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) में से एक है। अपनी अनूठी सांस्कृतिक विरासत और आधिकारिक मान्यता के बावजूद, बैगा समुदाय को व्यवस्थित उपेक्षा, शोषण और शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

बैगा जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के मंडला, डिंडोरी और बालाघाट जिलों में पाई जाती है। यह जनजाति अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जानी जाती है, जो गोंडवाना विरासत में निहित हैं। "बैगा" शब्द का अर्थ "ओझा" या "शमन" है, जो उनकी हर्बल चिकित्सा और आध्यात्मिक अनुष्ठानों में गहरी आस्था को दर्शाता है। उनका मुख्य व्यवसाय झूम खेती, शिकार और वन उत्पाद जैसे कंदमूल इकट्ठा करना है। बैगा बूढ़ा देव, दूल्हा देव और भवानी माता जैसे देवताओं की पूजा करते हैं और बाघ को अपने छोटे भाई के रूप में मानते हैं, जो प्रकृति के साथ उनके सामंजस्यपूर्ण संबंध को दर्शाता है।

इस जनजाति में बिजवार, नरोतिया, भरोतिया, नाहर, राय भैना और कढ़ भैना जैसे उप-समूह शामिल हैं, जिनमें संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित है, जिसका नेतृत्व गाँव का मुखिया "मुकद्दम" करता है। सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे दंदरिया (दशहरा के दौरान किया जाने वाला प्रेम आधारित नृत्य) और परधौनी (विवाह के अवसर पर होने वाला लोक नृत्य) उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। बैगा में लमझेना, लमिया और लमसेना जैसी अनूठी विवाह प्रथाएँ भी प्रचलित हैं।

हाल के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में बैगा की कुल जनसंख्या 42,838 है, जबकि मध्य प्रदेश में उनकी उल्लेखनीय उपस्थिति है, जहाँ वे तीसरी सबसे बड़ी जनजाति हैं। हालांकि, व्यवस्थित उपेक्षा और शोषण के कारण उनकी आबादी लगातार कम हो रही है। मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी भलाई के लिए बैगा विकास प्राधिकरण की स्थापना की है, और छत्तीसगढ़ के मुंगेली और बिलासपुर जैसे बैगा बहुल क्षेत्रों में ₹241.56 लाख की परियोजनाएँ लागू की गई हैं। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार ने बैगा कल्याण के लिए ₹614 लाख आवंटित किए हैं। इन प्रयासों के बावजूद, जमीनी स्तर पर प्रभाव सीमित है, और स्वास्थ्य व जनसंख्या संबंधी निर्देशों की अक्सर स्थानीय प्रशासन द्वारा अनदेखी की जाती है।

"राष्ट्रीय मानव" के दर्जे के बावजूद, बैगा को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, बिजली और स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है। यह व्यवस्थित उपेक्षा उनके सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा डालती है और गरीबी को बढ़ावा देती है। हाल की घटनाएँ, जैसे मध्य प्रदेश में बैगा आदिवासी हिरण परते की कथित तौर पर पुलिस द्वारा हत्या ने इस समुदाय की बेबसी और पीड़ा को उजागर किया है। परते को झूठा नक्सली करार दिया गया, जिससे गैर-न्यायिक हत्याओं और बेनामी संपत्ति विवादों से उनके संभावित संबंधों पर सवाल उठे। ऐसी घटनाएँ अलग-थलग नहीं हैं, क्योंकि बैगा व्यक्तियों को झूठे मामलों में फंसाया जाता है या वे बिना लापता हो जाते हैं।

बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने अपने पोस्ट में आरोप लगाया है कि बैगा व्यक्तियों को अक्सर नक्सली होने का झूठा आरोप लगाया जाता है, पुलिस के लंबित मामलों को सुलझाने के लिए बलि का बकरा बनाया जाता है, या बिना उचित दस्तावेज के गायब हो जाते हैं। रोत ने सवाल उठाया कि क्या मध्य प्रदेश सरकार प्रभावशाली समूहों द्वारा बैगा के व्यवस्थित शोषण पर कारवाई कर समुदाय को न्याय दिलाएगी, या उनकी दुर्दशा का राजनीतिक लाभ उठाना जारी रखेगी।

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