नई दिल्ली - भारतीय संविधान के लागू होने के 75 वर्षों बाद अब देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें मनुवादी विचारधारा समर्थकों द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर नहीं, बल्कि बी.एन. राव थे। इस विवाद की जड़ दिल्ली के संविधान क्लब में हाल में आयोजित एक गोष्ठी है जिसमें शंभवी पीठाधीश्वर आनंद स्वरूप महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि बी.एन. राव संविधान के असली निर्माता हैं। इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के पूर्व डीआईजी जुगुल किशोर तिवारी भी शामिल थे। इस गोष्ठी में अतिथियों को बी.एन. राव का चित्र हाथ में लिए देखा जा सकता है जिसमें उन्हें 'संविधान निर्माता' लिखा गया है।
इस घटना ने दलित समुदाय में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है, और सोशल मीडिया पर बी.एन. राव की तस्वीरों पर "संविधान निर्माता बी.एन. राव" लिखने को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। कई लोगों ने इसे डॉ. अम्बेडकर और संविधान का अपमान बताते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से किसी भी बड़े बहुजन लीडर्स ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है।
अम्बेडकरनामा के एक एपिसोड में राहुल नागपाल के साथ चर्चा में प्रोफेसर रतनलाल ने मनुवादियों के इस "झूठे प्रचार" का तथ्यों के साथ खंडन किया। प्रोफेसर रतन लाल दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर हैं। उनकी विद्वता और स्पष्टवादिता के कारण वह सामाजिक और अकादमिक क्षेत्रों में चर्चित रहते हैं। उन्होंने दलित नेताओं, मायावती, चिराग पासवान, चंद्रशेखर और जीतन मांझी आदि का नाम लेते हुए सवाल किया कि सभी नेता दिन-रात डॉ. अम्बेडकर का नाम लेते हैं, संगठन उनके नाम से सहयोग मांगते है लेकिन इस मुद्दे पर सब चुप क्यों है? प्रोफेसर रतनलाल ने कहा, "ये नेता वोटों के लिए राजनीति करते हैं, लेकिन इस अपमान के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलते।"
BN Rau was a ICS Babu & Dr. Ambedkar was Cabinet Minister. That was the difference.
— Dr. Ratan Lal (@ratanlal72) June 11, 2025
For more details just go to Google. pic.twitter.com/UNFQlgDxAI
प्रोफेसर रतनलाल ने आनंद स्वरूप के दावों का जवाब देते हुए कहा, "पंडित जी ने अपने भाषण में कोई संदर्भ नहीं दिया, लेकिन मैं चैप्टर, पेज नंबर, और वॉल्यूम के साथ तथ्य दे रहा हूँ।" उन्होंने बताया कि 1942 में देश में 1076 आईसीएस अधिकारी थे, जिनमें केवल एक दलित था, बाकी सभी क्रांतिकारी या "हंबल सर्वेंट" थे। रतनलाल ने बी.एन. राव की एक चिट्ठी का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने खुद को "हंबल सर्वेंट" लिखा था।
उन्होंने 25 नवंबर 1949 को डॉ. अम्बेडकर के भाषण का हवाला दिया, जिसमें आर.के. सिद्धवा, पंडित ठाकुरदास भार्गव, और बहम इजाज मौजूद थे। डॉ. अम्बेडकर ने कहा था, "कनाडा को संविधान बनाने में 2 साल 5 महीने, ऑस्ट्रेलिया को 9 साल, और हमें 2 साल 11 महीने 17 दिन लगे। मुझे इसका श्रेय दिया जा रहा है, लेकिन यह केवल मेरा काम नहीं है। संविधान सभा के सलाहकार बी.एन. राव का भी इसमें आंशिक योगदान है, जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का कच्चा मसौदा तैयार किया था।"
क्या आप संज्ञान में कब लेगे?
— Gaurav Singh JAAT (UPSI VICTIM) (@gauravsingh9368) June 10, 2025
भारत में संविधान सर्वोच्च है
@Uppolice @CyberpoliceUP
बाबा साहेब डॉ.अंबेडकर के विरुद्ध झूठा प्रचार कर रहा है,संविधान निर्माता के तौर पर बी.एन.राव को आगे करके समाज में ज़हर घोल रहा है,ये नफरत और भ्रम फैलाने की साज़िश है।इस पर तत्काल कड़ी कार्रवाई हो। https://t.co/DG4XKIEoXB
प्रोफेसर रतनलाल ने बताया कि यह तथ्य भारत सरकार द्वारा प्रकाशित वॉल्यूम 40, पेज नंबर 41, चैप्टर 262 में दर्ज है। प्रोफेसर रतनलाल ने पूछा, "6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा बनी, 9 दिसंबर 1946 को पहली बैठक हुई, और 17 दिसंबर 1946 को डॉ. अम्बेडकर ने भाषण दिया। क्या बी.एन. राव ने कहीं कोई भाषण दिया?" उन्होंने मनुवादियों और कथित तौर पर आरएसएस समर्थकों के उस दावे का भी खंडन किया कि बी.एन. राव ने 240 आर्टिकल लिखे थे, और उसके बाद डॉ. अम्बेडकर की एंट्री हुई। रतनलाल ने तर्क दिया, "अगर 80% से ज्यादा बी.एन. राव ने लिख दिया, तो हिंदू कोड बिल कहाँ से आया? क्या साधुओं और आरएसएस ने इसके खिलाफ उनके पुतले नहीं जलाए?"
रतनलाल ने बताया कि डॉ. अम्बेडकर के विचार राज्य के पक्ष में थे, और वे राज्य को आवश्यक मानते थे। कम्युनिस्ट धर्म को अफीम मानते थे, लेकिन डॉ. अम्बेडकर धर्म को जरूरी मानते थे, क्योंकि उनका दर्शन धर्म से प्रेरित था। रतनलाल ने अम्बेडकरवादी संगठनों, राजनेताओं, और बुद्धिजीवियों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे ब्राह्मणवादी/ मनुवादियों और आरएसएस द्वारा डॉ. अम्बेडकर के अपमान के खिलाफ चुप क्यों हैं। उन्होंने समाज से पढ़ने-लिखने की अपील की ताकि तर्क के साथ ऐसे प्रचार का जवाब दिया जा सके। इस विवाद ने दलित समुदाय में गहरा आक्रोश पैदा किया है। सोशल मीडिया पर लोग बी.एन. राव की तस्वीरों पर "संविधान निर्माता" लिखने को गैरकानूनी और अपमानजनक बता रहे हैं। यह विवाद अब राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तूल पकड़ रहा है, और आने वाले दिनों में इस पर और चर्चा होने की संभावना है।