राजस्थान: राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और 406 के तहत आरोपी एक व्यक्ति को हज यात्रा के लिए मक्का-मदीना जाने की अनुमति दे दी है। न्यायालय ने साफ कहा कि किसी धार्मिक उद्देश्य से विदेश यात्रा पर रोक लगाना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत सुरक्षित है।
इस मामले में 23 वर्षीय हरेश चौधरी ने अपनी 18 वर्षीय पत्नी के साथ हज यात्रा पर जाने के लिए आवेदन किया था। लेकिन, निचली अदालत और पासपोर्ट प्राधिकरण ने यह कहकर अनुमति देने से इनकार कर दिया कि उस पर IPC की धारा 498ए और 406 के तहत मामला लंबित है।
कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की पीठ ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा, "498A और 406 के तहत मामला लंबित होने के आधार पर हज यात्रा जैसी धार्मिक यात्रा की अनुमति न देना अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।"
इसके साथ ही अदालत ने राज्य के सभी अधीनस्थ न्यायालयों को निर्देशित किया कि जब भी किसी अभियुक्त द्वारा विदेश यात्रा की अनुमति के लिए आवेदन किया जाए, तो स्पष्ट और विशेष आदेश पारित किया जाए, ताकि पासपोर्ट अथॉरिटी किसी भ्रम में न रहे।
संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया गया हवाला
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के "मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया" मामले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि विदेश यात्रा करना व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है। इसके अलावा, कोर्ट ने 25 अगस्त 1993 को विदेश मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना का भी ज़िक्र किया जिसमें कहा गया था कि यदि किसी आरोपी को सक्षम न्यायालय से अनुमति प्राप्त हो, तो उसे विदेश यात्रा की अनुमति दी जा सकती है।
संविधान बनाम अभियोजन: कैसे बना संतुलन?
न्यायालय ने इस मामले में व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य द्वारा अभियोजन के अधिकार के बीच संतुलन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी को विदेश यात्रा की अनुमति दी जा सकती है यदि वह न्यायालय द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करता है। यदि वह इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उस पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
मौलिक अधिकारों की जीत!
इस फैसले के साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा को रोका नहीं जा सकता, केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर आपराधिक मामला लंबित है। यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या को और मज़बूती देता है।