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MP: पन्ना में पटवारी पर वनाधिकार पट्टा देने के बदले रिश्वत और गाली-गलौज का आरोप, जयस ने कलेक्ट्रेट घेरा

भोपाल। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के इटवाखॉस पंचायत में आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपनी ज़मीन के बेदखली और प्रशासन की अनदेखी का आरोप लगाते हुए सोमवार को कलेक्ट्रेट कार्यालय में प्रदर्शन किया। जय आदिवासी युवा शक्ति (JAYS) संगठन के नेतृत्व में आदिवासियों ने ज्ञापन सौंपकर पटवारी रघुनाथ बागरी पर कतिथ गालियाँ देने, रिश्वत मांगने और वन अधिकार अधिनियम के तहत ज़मीन के पट्टे न देने का आरोप लगाया।

आदिवासियों ने लगाए गंभीर आरोप

इटवाखॉस पंचायत के आदिवासियों का कहना है कि वे 1980 से 1992 के बीच और अबतक इस वनभूमि पर काबिज़ हैं, लेकिन प्रशासन ने अब तक उन्हें वनाधिकार पट्टा जारी नहीं किया है। आदिवासियों ने बताया कि जब उन्होंने अपनी ज़मीन के अधिकारों की माँग को लेकर कांग्रेस नेता उमंग सिंघार से मुलाकात की, तो यह खबर फैल गई। इसके बाद हल्का पटवारी रघुनाथ बागरी ने व्हाट्सएप ग्रुप में आदिवासी समुदाय को जातिसूचक शब्दों से गाली दी, जिसकी कॉपी उन्होंने प्रशासन को भी सौंपी है।

आदिवासी ने मुकेश गौंड ने द मूकनायक से कहा, "हम कई पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं, लेकिन हमें अब तक ज़मीन के अधिकार नहीं मिले। जब हमने अधिकारियों से बात की, तो हमसे रिश्वत मांगी गई और जब इसकी शिकायत नेता प्रतिपक्ष से की तो अब हमें गालियाँ दी जा रही हैं।"

जयस ने की सख्त कार्रवाई की मांग

जयस संगठन के कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकारी अधिकारी खुलेआम आदिवासियों से रिश्वत मांग रहे हैं और जब वे अपने हक की बात करते हैं, तो उनके खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।

जयस ने ज्ञापन सौंपकर मांग की:

  • पटवारी रघुनाथ बागरी को तत्काल निलंबित किया जाए और उनके खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज हो।

  • इटवाखॉस पंचायत के आदिवासियों को वनाधिकार पट्टा तुरंत प्रदान किया जाए।

  • भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में लिप्त अन्य अधिकारियों की भी जांच हो।

नाम ज्ञापन सौंपकर कार्रवाई की मांग की है। डीएसपी राजेंद्र मोहन दुबे ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग एसपी कार्यालय में शिकायत दर्ज कराने आए थे। उनकी शिकायत में आरोप लगाया गया है कि एक पटवारी ने आदिवासी समाज के लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया है। पुलिस ने शिकायत पत्र प्राप्त कर लिया है और जांच के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

क्या कहता है कानून?

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिवासियों को उनकी परंपरागत वनभूमि पर अधिकार दिए जाने का प्रावधान है। यदि वे वर्ष 2005 से पहले किसी वनभूमि पर रह रहे हैं और जीविका चला रहे हैं, तो वे इस अधिनियम के तहत पट्टे के हकदार हैं।

SC-ST अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का मुख्य उद्देश्य इन समुदायों के व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करना और उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकना है। इस अधिनियम में सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए भी कठोर दंड निर्धारित किया गया है।

अगर कोई सरकारी अधिकारी अनुसूचित जाति या जनजाति समुदाय के व्यक्ति का अपमान करता है या उसके अधिकारों का हनन करता है, तो उसे 6 महीने से 5 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल के एडवोकेट मयंक सिंह ने बताया कि अगर कोई सरकारी अधिकारी कर्मचारी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय के किसी व्यक्ति का अपमान करता है, उसके संवैधानिक या कानूनी अधिकारों का हनन करता है या उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है, तो यह अपराध SC-ST अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) माना जाएगा।

इस अधिनियम की धारा 3(1) के तहत:

उन्होंने आगे बताया, यदि कोई सरकारी अधिकारी, कर्मचारी किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के साथ अपमानजनक व्यवहार करता है, उसे प्रताड़ित करता है, या उसके वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो SC-ST अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धाराओं के तहत उसे 6 महीने से 5 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।

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