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'जाति और धर्म' से मुक्ति को लेकर मद्रास HC का बड़ा फैसला, तमिलनाडू सरकार को दिए ये निर्देश!

चेन्नई- मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया है कि वह उन लोगों को "नो कास्ट, नो रिलिजन" (बिना जाति, बिना धर्म) सर्टिफिकेट जारी करने के लिए शीघ्र ही एक सरकारी आदेश (GO) पारित करे जो अपनी पहचान किसी विशेष जाति या धर्म से नहीं जोड़ना चाहते हैं ।

इससे पूर्व फरवरी 2024 में एकल न्यायाधीश ने तिरुपत्तूर के तहसीलदार को 'नो कास्ट, नो कम्युनिटी' (बिना जाति, बिना समुदाय) प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि राजस्व अधिकारियों को ऐसा प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं दिया गया था। याची द्वारा इस मामले को लेकर रिट अपील फाइल की थी जिसपर सुनवाई करते हुए जस्टिस एम.एस. रमेश और एन. सेन्थिलकुमार की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को पलटते हुए यह आदेश पारित किया।

तिरुपत्तूर जिले के निवासी ने याचिका में अपने परिवार के लिए किसी भी धर्म या जाती से मुक्त होने के आशय वाले ऐसे सर्टिफिकेट को प्राप्त करने की मांग की थी । याची ने अदालत में बताया कि उन्होंने कभी भी जाति या धर्म के आधार पर सरकारी लाभ नहीं लिया और न ही भविष्य में लेने का इरादा है। उनका उद्देश्य अपने बच्चों को एक ऐसे समाज में पालना है जहाँ जाति और धर्म की पहचान न हो।

एकल न्यायाधीश ने आवेदक की इच्छा की सराहना तो की कि वह एक ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहता है जो यह प्रमाणित करे कि वह किसी जाति या धर्म से संबंधित नहीं है, लेकिन तहसीलदार को कोई निर्देश जारी करने से मना कर दिया, क्योंकि तहसीलदार के पास ऐसा प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं था।

याचिका करता द्वारा एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दायर की गई अपील पर सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि एकल न्यायाधीश, एक अतिरिक्त सरकारी वकील के इस तर्क से "गुमराह" हो गया था कि राजस्व अधिकारियों को 'नो कास्ट, नो कम्युनिटी' प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं है।

खंडपीठ ने तिरुपत्तूर के तहसीलदार और जिला कलेक्टर को एक महीने के भीतर याची को यह सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी योग्य आवेदकों को ऐसे सर्टिफिकेट जारी करने के लिए एक स्पष्ट नीति बनाए।

अदालत ने कहा कि संतोष का यह फैसला "सराहनीय" है और इससे जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने में मदद मिलेगी। कोर्ट ने कहा, "भारतीय संविधान जातिगत भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, लेकिन आज भी जाति और धर्म का समाज, राजनीति और रोजगार में बड़ा प्रभाव है। ऐसे में, जो लोग अपनी पहचान इनसे अलग रखना चाहते हैं, उनकी इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए।"

कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए राजस्व विभाग ने दावा किया था कि तहसीलदारों के पास ऐसे सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इस संबंध में कोई सरकारी आदेश नहीं है। लेकिन अदालत ने इस तर्क को "विरोधाभासी" बताते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पहले भी तिरुपत्तूर, कोयंबटूर और अंबत्तूर में तहसीलदारों ने ऐसे सर्टिफिकेट जारी किए हैं।

पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, जिसमें यह भी शामिल है कि कोई व्यक्ति किसी भी धर्म या जाति से अपनी पहचान न जोड़े। अदालत ने कहा कि प्रशासनिक लापरवाही संवैधानिक अधिकारों को दबा नहीं सकती।

अब तमिलनाडु सरकार को एक महीने के भीतर इस संबंध में सरकारी आदेश जारी करना होगा, ताकि अन्य नागरिक भी बिना जाति-धर्म की पहचान के सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकें। यह फैसला उन लोगों के लिए एक बड़ी राहत हो सकता है, जो समाज में समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना चाहते हैं।

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