भोपाल। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के द्वारा दिए गए राजनीतिक नारे "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" का पालन करने में मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन लगातार असफल साबित हो रहा है। इसकी ताजा मिसाल प्रदेश कांग्रेस की हाल ही में घोषित प्रवक्ता सूची है, जिसमें सामाजिक न्याय और जातीय प्रतिनिधित्व की मूल भावना नजर नहीं आती।
5 मई को कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक ने अध्यक्ष जीतू पटवारी के निर्देश पर 53 प्रवक्ताओं की सूची जारी की गई। इस सूची में सवर्ण जातियों का दबदबा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जबकि बड़ी जनसंख्या वाले पिछड़े वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अल्पसंख्यक समुदाय को अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
सामान्य वर्ग का वर्चस्व
सूची के अनुसार, 18 ब्राह्मण, 6 ठाकुर, 6 अन्य सामान्य वर्गऔर पिछड़ा वर्ग के 11 नेताओं को प्रवक्ता नियुक्त किया गया है। यानी कुल 29 प्रवक्ताओं का संबंध सवर्ण वर्ग से है, जो कुल सूची का लगभग 55% है।
वहीं, पिछड़ा वर्ग जिसे प्रदेश की जनसंख्या में लगभग 50% भागीदारी मानी जाती है, उसके सिर्फ 9 नेताओं को प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई है। अनुसूचित जाति वर्ग के सिर्फ 7 प्रतिनिधि इस सूची में हैं और अल्पसंख्यक वर्ग से 6 नेता ही प्रवक्ता बन सके।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि प्रदेश में आदिवासियों की 21.10 प्रतिशत की भागीदारी है। कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग से किसी भी व्यक्ति को प्रवक्ता नहीं बनाया, जबकि मध्यप्रदेश एक जनजातीय बहुल राज्य है।
जातीय संतुलन की कमी पर उठे सवाल
कांग्रेस लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रही है और राहुल गांधी ने हर मंच से सामाजिक न्याय की पैरवी करते हुए स्पष्ट किया है कि पार्टी का लक्ष्य संख्या के अनुपात में हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है। लेकिन मध्यप्रदेश कांग्रेस की इस सूची ने न सिर्फ इस विचार को कमजोर किया है, बल्कि जमीनी स्तर पर जातीय प्रतिनिधित्व की उपेक्षा को भी उजागर किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब संगठनात्मक ढांचे में ही बहुजन समाज को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, तब कांग्रेस की नीतियों और उनके सामाजिक न्याय के नारे पर जनता कैसे भरोसा करेगी?
द मूकनायक से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी भले ही सामाजिक न्याय के तहत प्रतिनिधित्व देने की बात करती हो, लेकिन उसकी सूची में संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व नजर नहीं आता।
सामाजिक वर्गों के अनुसार प्रतिनिधियों की सूची
सामान्य वर्ग (कुल): 30
ठाकुर: (6) अजित भदोरिया, अवनीश बुंदेला, संतोष सिंह परिहार, समर सिंह, हिमानी सिंह, संतोष सिंह गौतम,
ब्राह्मण: (18) अपराजिता पांडेय, अंबिका शर्मा, गुंजन शुक्ला, जितेंद्र मिश्रा, धर्मेंद्र शर्मा, नीलाभ शुक्ला, प्रमोद द्विवेदी, प्रियंका शर्मा, मृणाल पन्त, राम पांडेय, संगीता शर्मा, राहुल राज, संदीप सबलोक, सुनील मिश्रा, स्वदेश शर्मा, विवेक त्रिपाठी, विनोद शर्मा।
अन्य सामान्य वर्ग: (6) भूपेंद्र गुप्ता, विनय सक्सेना, रवि सक्सेना, आनंद जैन कासीवाल, हर्ष जैन, कुंदन पंजाबी।
पिछड़ा वर्ग: (कुल 11) अभिनव बारोलिया, अमित चौरसिया, आनंद जाट, ज्योति पटेल, योगेश यादव, राजेश चौकसे, रोशनी यादव, शैलेन्द्र पटेल, स्पर्श चौधरी, आर.पी. सिंह, समर सिंह
अनुसूचित जाति: (SC) (कुल 7) अमित तावड़े, प्रवीण धौलपुरे, मिथुन अहिरवार, मुकेश पंथी, रवि वर्मा, विक्रम चौधरी, सीताशरण सूर्यवंशी।
अनुसूचित जनजाति (ST): कोई प्रवक्ता नहीं।
अल्पसंख्यक समुदाय: (कुल 6) अब्बास हाफिज, नूरी खान, फिरोज सिद्दीकी, शहरयार खान, साबिर फिटवाल।
इस मुद्दे पर जब द मूकनायक ने नवनियुक्त प्रवक्ता डॉ. विक्रम चौधरी से प्रतिक्रिया लेनी चाही, तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और इस विषय पर बोलने से बचते नजर आए।
यूथ कांग्रेस चुनाव में भी नहीं मिला SC/ST को प्रतिनिधित्व
यूथ कांग्रेस के इस बार के चुनाव में कुल 59 पदों में से केवल 7 सीटें ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के युवाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। यह संख्या राज्य की जनसंख्या में इन वर्गों की हिस्सेदारी के मुकाबले बेहद कम है। मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या करीब 3.29 करोड़ हो चुकी है, जिसमें दलित और आदिवासी समुदायों की बड़ी भागीदारी है, लेकिन संगठनात्मक प्रतिनिधित्व में उनकी हिस्सेदारी संतोषजनक नहीं दिखती। इससे साफ है कि आरक्षण की नीति यहां केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।
प्रतिनिधित्व में कटौती क्यों अहम मुद्दा है?
राजनीतिक संगठनों में सामाजिक समूहों को समुचित प्रतिनिधित्व देना केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, यह लोकतंत्र की आत्मा और संवैधानिक मूल्यों से जुड़ा विषय है। SC/ST समुदाय के युवा नेताओं को नेतृत्व के अवसर देना ही सामाजिक न्याय की बुनियादी शर्त है। जब कांग्रेस खुद को सामाजिक न्याय का पक्षधर बताती है, तो यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने संगठनात्मक ढांचे में भी उस विचार को लागू करे!