बिहार में वोटर लिस्ट पर घमासान: चुनाव आयोग ने जारी की 2003 की सूची, विपक्ष का आरोप- वोटरों की सफाई!

11:53 AM Jun 30, 2025 | Rajan Chaudhary

नई दिल्ली: चुनाव आयोग (ECI) जल्द ही बिहार की 2003 की मतदाता सूची को अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा। इससे करीब 4.96 करोड़ मतदाता अपने नाम वाले हिस्से को निकालकर विशेष व्यापक पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के तहत दी जाने वाली नामांकन फार्म के साथ लगा सकेंगे।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार को समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि इस कवायद का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पात्र नागरिक मतदाता सूची से बाहर न रह जाए और कोई भी अपात्र व्यक्ति इसमें शामिल न हो।

हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि राज्य तंत्र का दुरुपयोग कर जानबूझकर कुछ मतदाताओं के नाम काटे जा सकते हैं।

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इस पर प्रतिक्रिया देते हुए एक वरिष्ठ चुनाव आयोग अधिकारी ने कहा कि इस प्रक्रिया का विरोध करने वाले लोग संविधान के अनुच्छेद 326 का भी विरोध कर रहे हैं। अनुच्छेद 326 के तहत सभी पात्र नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल किया जाना चाहिए, जबकि अपात्र या गैर-नागरिकों को इसमें जगह नहीं मिलनी चाहिए।

क्या है यह विशेष पुनरीक्षण?

बिहार में जारी पुनरीक्षण के दौरान आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा है कि वे अपने बूथ लेवल एजेंट (BLA) अभी ही सभी मतदान केंद्रों पर नियुक्त करें, ताकि बाद में मतदाता सूची में खामियां निकालने की जरूरत न पड़े।

अब तक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों ने 1,54,977 बीएलए नियुक्त कर दिए हैं। आयोग ने कहा है कि और भी एजेंट नियुक्त किए जा सकते हैं।

बीएलए वे पार्टी कार्यकर्ता होते हैं जो बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के साथ मिलकर मतदाता सूची के निर्माण और संशोधन के दौरान काम करते हैं।

आयोग के निर्देशों के अनुसार, वे 4.96 करोड़ मतदाता जिनके नाम 2003 की विशेष व्यापक पुनरीक्षण सूची में हैं (लगभग 60% मतदाता), उन्हें अपनी जन्मतिथि या जन्मस्थान साबित करने के लिए कोई अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं होगी। उन्हें सिर्फ 2003 की मतदाता सूची से संबंधित हिस्सा लगाना होगा।

वहीं, बाकी करीब तीन करोड़ मतदाताओं (करीब 40%) को जन्मतिथि या जन्मस्थान साबित करने के लिए 11 सूचीबद्ध दस्तावेजों में से कोई एक देना होगा।

यदि किसी मतदाता के माता-पिता का नाम 2003 की सूची में है, तो उस मतदाता को केवल अपनी जन्म तिथि/स्थान का प्रमाण देना होगा। माता-पिता के जन्म से जुड़े दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी क्योंकि 2003 की सूची में उनकी प्रविष्टि प्रमाण मानी जाएगी।

सटीक और समावेशी सूची की तैयारी

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य बाकी तीन करोड़ मतदाताओं की पहचान करना और उनकी पात्रता सुनिश्चित करना है।”

फिलहाल बिहार में 243 विधानसभा सीटों में 7.89 करोड़ से ज्यादा मतदाता पंजीकृत हैं। राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं।

आयोग के निर्देशों के मुताबिक, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी पात्र व्यक्ति सूची से बाहर न रहे और कोई अपात्र व्यक्ति इसमें शामिल न हो।

प्रत्येक मौजूदा मतदाता को नामांकन फार्म बीएलओ के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा और वे इसे एक समर्पित वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकेंगे। बीएलओ इस फार्म की प्रति लेकर जमा करेंगे और दूसरी प्रति पर रसीद देकर मतदाता के पास रखी जाएगी। जमा फार्म और दस्तावेजों के आधार पर ईआरओ ड्राफ्ट मतदाता सूची तैयार करेगा।

पिछला अनुभव और नई व्यवस्था

बिहार में पिछली बार व्यापक पुनरीक्षण 2003 में किया गया था, जिसमें 1 जनवरी 2003 को योग्यता तिथि माना गया था। आयोग ने कहा है कि उस समय जिनकी पात्रता स्थापित हो चुकी थी, उन्हें अब अतिरिक्त दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है, सिर्फ 2003 की सूची का हिस्सा ही पर्याप्त होगा।

आयोग ने कहा कि 2003 की सूची की हार्ड कॉपी सभी बीएलओ को उपलब्ध कराई जाएगी और इसे वेबसाइट पर भी फ्री में डाउनलोड के लिए रखा जाएगा, ताकि कोई भी मतदाता इसे अपने दस्तावेज के रूप में इस्तेमाल कर सके।

पुनरीक्षण के हिस्से के रूप में चुनाव अधिकारी घर-घर जाकर सत्यापन भी करेंगे, ताकि मतदाता सूची त्रुटिरहित तैयार की जा सके।

अन्य राज्यों में भी तैयारी, लेकिन बिहार में तुरंत कवायद

असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की विधानसभाओं का कार्यकाल मई-जून 2025 में समाप्त होगा। इन राज्यों में भी इसी साल के अंत तक विशेष व्यापक पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

हालांकि, बिहार में इसी साल चुनाव होने के चलते यहां तुरंत यह प्रक्रिया कराई जा रही है।

फर्जी नामांकन रोकने के लिए अतिरिक्त उपाय

विपक्षी दलों द्वारा भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए डेटा में हेरफेर के आरोपों के बीच आयोग ने अवैध प्रवासियों के नामांकन को रोकने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए हैं।

बिहार से बाहर से आकर नामांकन कराने या नए मतदाता बनने के इच्छुक लोगों के लिए अलग से ‘घोषणा पत्र’ अनिवार्य किया गया है। उन्हें यह घोषित करना होगा कि उनका जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में हुआ है और इसके समर्थन में कोई दस्तावेज देना होगा।

जो लोग 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच भारत में जन्मे हैं, उन्हें अपने माता-पिता के जन्मस्थान और जन्मतिथि के प्रमाण भी देने होंगे।

आयोग ने कहा है कि तेज़ शहरीकरण, लगातार प्रवास, युवाओं के मतदाता बनने की पात्रता, मृत्यु के मामलों की सही सूचना न मिलना और विदेशी अवैध प्रवासियों के नामों का शामिल हो जाना—इन सभी वजहों से यह व्यापक और सघन पुनरीक्षण जरूरी हो गया है, ताकि मतदाता सूची पूरी तरह साफ और सही हो सके।