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राष्ट्रपति को पत्र लिखकर 'न्याय' मांगने वाले आदिवासी प्रोफेसर की पत्नी ने मीडिया को लगाई गुहार: ' प्लीज MNNIT में जातिगत भेदभाव के खिलाफ हमारी लड़ाई में साथ दें'

हैदराबाद- मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और ऐसे समय में जब कि कार्यपालिका और न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद टूट जाती है तो कई लोग मीडिया को आखिरी आसरा मान कर मदद की गुहार लगाते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर MNNIT इलाहबाद (प्रयागराज) में जातिगत भेदभाव की शिकायत करने वाले सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक की पत्नी निम्मकायला वनजा ने भी ऐसा कदम उठाया है।

उन्होंने मीडिया संस्थानों को एक खुला पत्र लिखकर अपने पति के 8 साल से चले आ रहे संघर्ष को उजागर करने की अपील की है। डॉ. नायक अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय से हैं और 2017 से अपने साथ संस्थान में जातिगत भेदभाव, पदोन्नति में रोक और प्रशासनिक उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।

डॉ. नायक ने संस्थान पर उनके करियर को "जानबूझकर बर्बाद करने" के प्रयासों का विस्तार से ब्यौरा दिया था। वनजा के मुताबिक, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) समेत सभी संबंधित अधिकारियों को दिए गए "सभी सबूतों और दस्तावेजों" के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।

मीडिया को लिखे अपने भावुक पत्र में वनजा ने वंचित समुदाय के शिक्षकों के प्रति उपेक्षा पर दुख जताया: "जब ईमानदार, मेहनती ST शिक्षकों के साथ अन्याय होता है, तो उनकी आवाज कोई सुनता नहीं है । मेरे पति द्वारा मीडिया से संपर्क करने के बार-बार प्रयासों के बावजूद, कोई भी उनके संघर्ष को उजागर करने के लिए आगे नहीं आया। अगर उनके जैसे ईमानदार, निष्ठावान और मेहनती शिक्षकों को उनके साथ हो रहे अन्याय को व्यक्त करने के लिए मंच नहीं दिया जाता है, तो वे न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

 उन्होंने आईआईटी कानपुर के डॉ. सुब्रह्मण्यम सदरला और आईआईटी मद्रास के डॉ. विपिन वीतिल जैसे पूर्व मामलों का जिक्र किया, जहां जातिगत भेदभाव की खबरों ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थीं।

पत्र में उन्होंने लिखा, " यह पहली बार नहीं है जब प्रमुख संस्थानों में इस तरह का भेदभाव हुआ है। हमने पहले भी ऐसे ही मामले देखे हैं - आईआईटी कानपुर में डॉ. सुब्रह्मण्यम सदरला, आईआईटी मद्रास में डॉ. विपिन वीटिल और कई अन्य जिनके दर्दनाक अनुभव सुर्खियों में रहे। आज मेरे पति भी इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं। शिक्षा और शोध में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बावजूद, उन्हें केवल अपनी जाति की पहचान के कारण ही प्रताड़ित किया जाता है।"

संस्थागत उपेक्षा का चलन?

डॉ. नायक का कहना है कि 2025 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर उनकी पदोन्नति जानबूझकर रोकी गई। MNNIT के SC/ST सेल और शिक्षा मंत्रालय को दी गई शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई । इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके वकील द्वारा "गलत तरीके से पेश किए जाने" के आरोप लगे।

वनजा ने अपने पत्र में मीडिया को "लोकतंत्र के चौथे स्तंभ" की भूमिका निभाते हुए इस मामले को उजागर करने का आग्रह किया है। "हर रास्ता बंद होने के बाद, हम आपके पास आए हैं," उन्होंने लिखा, अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए मीडिया कवरेज की मांग की।

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