नई दिल्ली- कर्नाटक विधान परिषद में विपक्ष के मुख्य सचेतक एन. रविकुमार ने रविवार को एक नई बहस छेड़ दी, जब उन्होंने दावा किया कि यदि स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के बजाय डॉ. बी.आर. अंबेडकर या सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बने होते, तो भारत आज विकास के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ चुका होता।
रविकुमार ने रविवार को ‘संविधान-75 बदलायसिद्दु यारु बलपदिसिद्दु यारु’ पुस्तक के विमोचन के दौरान कहा, “स्वतंत्रता के बाद डॉ. अंबेडकर, जो संविधान के शिल्पकार थे, उनकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ रही थी। वे योजना मंत्री बनना चाहते थे ताकि समाज के कमजोर वर्गों का उत्थान कर सकें।” उन्होंने दावा किया कि 16 में से 14 राज्यों ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन दिया था, जबकि केवल दो राज्यों ने नेहरू का समर्थन किया था।
इसी तरह, जनवरी 2025 में रोहतक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 पर एक सेमिनार में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने नेहरू को “संयोगवश” प्रधानमंत्री बनने वाला बताया। खट्टर ने कहा, “स्वतंत्रता के बाद देश को आकार देने में डॉ. अंबेडकर का योगदान किसी से कम नहीं था। वे केवल एक जाति के नेता नहीं थे, बल्कि समाज के सभी कमजोर वर्गों के लिए प्रेरणा थे। नेहरू के बजाय सरदार पटेल या डॉ. अंबेडकर प्रधानमंत्री बन सकते थे।
भाजपा का सामाजिक न्याय पर यू-टर्न
जाति जनगणना को लेकर हाल के महीनों में राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है। 30 अप्रैल, 2025 को केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की थी कि अगली जनगणना में जाति गणना को शामिल किया जाएगा, जो केंद्र सरकार की नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। यह फैसला बिहार जैसे राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों और सामाजिक न्याय की मांगों के दबाव में लिया गया माना जा रहा है।
हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर सामाजिक न्याय और जाति जनगणना के मुद्दे पर रुख बदलने का आरोप लग रहा है। पहले जाति जनगणना का विरोध करने वाली भाजपा अब इस मुद्दे पर सामाजिक न्याय की बात कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव 2024 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी और कांग्रेस की ओर से लगातार उठाए गए सामाजिक न्याय और जाति जनगणना के दबाव का परिणाम है।
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान जाति जनगणना को सामाजिक और आर्थिक न्याय का आधार बनाया। उनकी नारा “जितनी आबादी, उतना हक” और “गिने नहीं जाओगे तो सुने नहीं जाओगे” ने जनता में गहरी पैठ बनाई। कांग्रेस ने इस मुद्दे को 2024 के चुनावों में प्रमुखता से उठाया, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को 272 सीटों के बहुमत से 30 सीटें कम मिलीं, जबकि कांग्रेस ने अपनी सीटें 47 से बढ़ाकर 99 कर लीं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 15 मई,2025 को बिहार के दरभंगा में दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “जनता के दबाव और डर” के कारण जाति जनगणना की घोषणा की। उन्होंने कहा, “मैंने संसद में पीएम मोदी से जाति जनगणना की मांग की थी। जनता के दबाव के कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा, लेकिन सच्चाई यह है कि वे इसके खिलाफ हैं।”
वहीं, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए कहा, “हमने 2021 में जनगणना नहीं हो पाने के कारण यह फैसला 2024 में नहीं ले सके। अब 2025 में जनगणना की तैयारियों के साथ यह निर्णय लिया गया है। यह सामाजिक न्याय के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है।”
बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य सामाजिक और राजनीतिक रूप से जाति-आधारित रणनीतियों का केंद्र रहा है। आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के इस फैसले ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक प्रासंगिकता को फिर से बढ़ा दिया है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 मई, 2025 को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि जाति जनगणना के लिए तेलंगाना मॉडल अपनाया जाए और 50% आरक्षण की सीमा हटाई जाए।
अमित शाह का अंबेडकर विवाद
इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दिसंबर 2024 में राज्यसभा में दिया गया बयान विवादों में रहा। संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर चर्चा के दौरान शाह ने कहा, “अब एक फैशन हो गया है - अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।” इस टिप्पणी को कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अंबेडकर का अपमान बताया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शाह के बयान को “संविधान और अंबेडकर विरोधी” करार देते हुए कहा कि यह भाजपा और आरएसएस की मानसिकता को दर्शाता है, जो मनुस्मृति को संविधान पर तरजीह देती है। राहुल गांधी ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी, कहा कि “जो मनुस्मृति में विश्वास रखते हैं, वे अंबेडकर के विचारों के खिलाफ होंगे।” विपक्षी सांसदों ने संसद में ‘जय भीम’ और ‘अमित शाह माफी मांगो’ के नारे लगाए, जबकि भाजपा ने दावा किया कि शाह के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।
अंबेडकर और सामाजिक न्याय की विरासत को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही यह बहस न केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, बल्कि यह भारत के सामाजिक ढांचे में गहरे बदलाव की जरूरत को भी दर्शाती है। अमित शाह के विवादास्पद बयान और जाति जनगणना पर भाजपा के बदले रुख ने सवाल उठाया है कि क्या यह सामाजिक न्याय के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता है या चुनावी दबाव का परिणाम। जैसे-जैसेजाति जनगणना नजदीक आ रही है, यह देखना बाकी है कि यह कदम भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को कैसे प्रभावित करेगा।