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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमिया उर्दू की डिग्रियों को बताया फर्जी, हजारों उर्दू टीचर्स की नौकरी पर लटकी तलवार!

प्रयागराज — इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था जमिया उर्दू अलीगढ़ द्वारा बिना नियमित कक्षाओं और उचित कोर्स के वितरित की गई डिग्रियां वैध नहीं मानी जाएंगी। कोर्ट के मुताबिक, ऐसी डिग्री रखने वाले अभ्यर्थियों को उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड (UPBEB) द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक (उर्दू) के पदों पर नियुक्ति का अधिकार नहीं है।

मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने जमिया उर्दू से अदीब-ए-कामिल कोर्स की डिग्री हासिल की है और 2013 की यूपी शिक्षक पात्रता परीक्षा (UPTET) पास की है, जिससे वे उर्दू सहायक अध्यापक पद के लिए पात्र हैं। कुछ याचिकाकर्ताओं को पहले ही नियुक्ति मिल चुकी थी, जबकि कुछ की नियुक्ति प्रक्रिया लंबित थी।

हालांकि जांच में खुलासा हुआ कि कई याचिकाकर्ताओं ने अदीब-ए-कामिल कोर्स को एक साल की निर्धारित अवधि से कम समय में पूरा कर लिया था। कुछ मामलों में तो अभ्यर्थियों ने उसी साल डिग्री ले ली थी, जब उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा दी थी। इस अनियमितता के कारण जिन याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति दी जा चुकी थी, उनकी नियुक्तियां रद्द कर दी गईं।

याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में दलील दी कि जमिया उर्दू मान्यता प्राप्त संस्था है और वहां शिक्षकों और कक्षाओं के न होने का आरोप निराधार है। उन्होंने 2018 के सर्ताज अहमद बनाम राज्य उत्तर प्रदेश मामले का हवाला दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि 11 अगस्त 1997 से पहले जमिया उर्दू से मोअल्लिम-ए-उर्दू कोर्स पूरा करने वाले अभ्यर्थी 2016 के सरकारी आदेश के तहत उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के पात्र माने जाएंगे।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि उनके साथ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है और साथ-साथ दो कोर्स करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

वहीं, राज्य सरकार के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जमिया उर्दू को यूजीसी (UGC) से मान्यता प्राप्त नहीं है और संस्था नियमित कक्षाएं संचालित नहीं करती। आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने धोखाधड़ी से डिग्रियां हासिल कीं।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शम्शेरी ने अजहर अली व अन्य की याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा:

“याचिकाकर्ता ने 1995 में इंटरमीडिएट परीक्षा पास की, जुलाई 1995 में प्रमाणपत्र प्राप्त किया, उसी महीने जमिया उर्दू में अदीब-ए-कामिल कोर्स में प्रवेश लिया, और केवल पांच महीने बाद नवंबर 1995 में परीक्षा दे दी। जुलाई 1996 में परिणाम घोषित हुआ। रिकॉर्ड से यह भी स्पष्ट है कि फरवरी 1997 में याचिकाकर्ता ने मोअल्लिम-ए-उर्दू की परीक्षा भी पास कर ली।”

कोर्ट ने पाया कि इतनी कम अवधि में दो महत्वपूर्ण परीक्षाएं पास करना संदेहास्पद और अनुचित है।

17 मई को सुनाए गए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि जमिया उर्दू अवैध तरीके से डिग्रियां वितरित कर रही है। अतः याचिकाकर्ता सहायक अध्यापक (उर्दू) के पद के लिए अपात्र माने जाएंगे।

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