MP 27% OBC आरक्षण विवाद: कोर्ट ने कहा, "जब कानून पर स्टे नहीं है, तो इसे लागू करने से सरकार क्यों बच रही है?"

12:32 PM Dec 06, 2024 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुरेश कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने ओबीसी आरक्षण से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और महाधिवक्ता कार्यालय पर तीखी टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने पूछा कि जब 27% आरक्षण कानून पर कोई स्टे नहीं है, तो इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने खुद 27% आरक्षण का कानून बनाया था, लेकिन इसे लागू करने में वर्तमान सरकार हिचकिचा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि महाधिवक्ता के गलत अभिमत के कारण लगभग 90 हजार युवाओं का भविष्य अधर में लटक गया है।

27% आरक्षण पर सरकार की दुविधा

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इस कानून के खिलाफ याचिकाएं लंबित हैं, और इसी आधार पर इसे लागू नहीं किया जा रहा। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि जब तक किसी कानून की संवैधानिकता पर निर्णय नहीं हो जाता, तब तक उसे स्टे नहीं किया जा सकता।

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कोर्ट ने कहा, "विधायिका द्वारा बनाए गए कानून को बिना जांचे-परखे स्टे नहीं दिया जा सकता।" इस टिप्पणी के बाद महाधिवक्ता के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था।

राजनीतिक आरोप और महाधिवक्ता की भूमिका

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने कोर्ट को यह भी बताया कि कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून को वर्तमान भाजपा सरकार लागू करने से बच रही है। उन्होंने कहा कि यदि इसे लागू किया जाता है, तो इसका राजनीतिक लाभ कांग्रेस को मिलेगा, और इसी वजह से सरकार इसे टाल रही है।

उन्होंने महाधिवक्ता कार्यालय पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामलों को जानबूझकर लंबित रखा जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित याचिकाओं की सुनवाई के लिए अभी तक कोई तिथि निर्धारित नहीं हुई है, और सरकार इस पर सक्रियता दिखाने में असफल रही है।

हाईकोर्ट ने सरकार को फटकारा!

हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता की निष्क्रियता पर कड़ी नाराजगी जाहिर की और सरकार से स्पष्ट रूप से पूछा कि वह अपना ही बनाया कानून क्यों लागू नहीं कर रही। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, जब तक किसी कानून की संवैधानिकता पर अंतिम निर्णय नहीं होता, उसे रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित याचिकाओं को एकसाथ जोड़कर शीघ्र सुनवाई की जाए।

ओबीसी आरक्षण का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

27% ओबीसी आरक्षण लागू न होने के कारण हजारों अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं। प्राथमिक शिक्षक भर्ती में 300 से अधिक उम्मीदवारों को होल्ड पर रखा गया है, जिससे कई युवाओं का भविष्य अनिश्चितता में है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में यह भी बताया कि इस देरी और असमंजस के कारण कई अभ्यर्थियों ने मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या कर ली है।

सरकार की निष्क्रियता पर सवाल

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने 'द मूकनायक' से बातचीत में आरोप लगाया कि महाधिवक्ता कार्यालय ने ओबीसी समुदाय से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे को सुलझाने के बजाय जानबूझकर उलझाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि सरकार ओबीसी समुदाय के अधिकारों के प्रति उदासीन रवैया अपना रही है, जिससे समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है। रामेश्वर सिंह ने इस मुद्दे पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह रवैया न केवल समुदाय के हितों के लिए हानिकारक है, बल्कि सामाजिक न्याय की मूल भावना के खिलाफ भी है।

उन्होंने कहा कि संविधान ने ओबीसी समुदाय को शिक्षा और रोजगार में जो आरक्षण और अधिकार दिए हैं, उन्हें लागू करने में सरकार नाकाम साबित हो रही है। उन्होंने इस मामले को उच्च स्तर पर उठाने की बात कहते हुए सरकार से तुरंत उचित कार्रवाई की मांग की।