नई दिल्ली: 'ऑपरेशन सिंदूर' की वीरांगनाएं – कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह – हाल ही में देशवासियों के लिए गर्व का प्रतीक बनीं। लेकिन अब यह गौरव विवादों में घिर गया है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव की विवादित टिप्पणी ने सेना की जाति-धर्म से परे पहचान पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। बयानबाजी अब केवल राजनीति तक सीमित नहीं रही, यह सेना के उस मूल विचार पर भी चोट कर रही है जो 'राष्ट्र सर्वोपरि' के सिद्धांत पर खड़ी है।
सपा नेता रामगोपाल यादव ने मुरादाबाद में दिए एक भाषण में विंग कमांडर व्योमिका सिंह को "हरियाणा की जाटव" बताते हुए उनके लिए जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया। साथ ही उन्होंने दावा किया कि भाजपा उन्हें 'राजपूत' समझकर खामोश रही, जबकि मुसलमान होने के कारण कर्नल सोफिया कुरैशी को भाजपा नेता निशाना बना रहे हैं।
रामगोपाल यही नहीं रुके। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को "PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का युद्ध" बताते हुए इसे भाजपा द्वारा श्रेय लेने की कोशिश करार दिया।
सेना पर राजनीति: प्रतिक्रियाओं की बाढ़
रामगोपाल यादव के बयान पर भाजपा और अन्य दलों के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी:
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ: "सेना की वर्दी को जातिवादी चश्मे से नहीं देखा जाता। सैनिक राष्ट्रधर्म निभाते हैं, न कि जाति या मजहब का।"
डिप्टी सीएम केशव मौर्या: "सेना का धर्म केवल राष्ट्र की रक्षा है। जातिवादी टिप्पणियां ओछी मानसिकता दर्शाती हैं।"
ब्रजेश पाठक (डिप्टी सीएम): "एक वीरांगना का जाति के आधार पर अपमान सपा की महिला विरोधी और नीच मानसिकता उजागर करता है।"
मायावती (बसपा प्रमुख): "सेना को जाति-धर्म में बांटना शर्मनाक है। भाजपा और सपा दोनों ने इस मुद्दे पर गलत किया है।"
संजय सिंह (AAP): "सेना का अपमान किसी भी रूप में नहीं स्वीकार्य। भाजपा की ट्रोल आर्मी का व्यवहार घोर आपत्तिजनक है।"
विंग कमांडर व्योमिका सिंह: भारत की गौरवशाली बेटी
विंग कमांडर व्योमिका सिंह भारतीय वायुसेना की अनुभवी पायलट हैं, जिनके पास 2500 से अधिक घंटे का फ्लाइंग अनुभव है। चेतक और चीता जैसे हेलिकॉप्टरों को वे चुनौतीपूर्ण पहाड़ी इलाकों में ऑपरेट कर चुकी हैं। वर्ष 2020 में अरुणाचल प्रदेश में एक कठिन बचाव अभियान की उन्होंने अगुआई की थी।
उनका सपना छठी कक्षा में पनपा, जब उन्हें उनके नाम का अर्थ "आकाश में उड़ने वाली" बताया गया। इसी प्रेरणा ने उन्हें भारतीय वायुसेना तक पहुँचाया। आज वह लाखों बेटियों के लिए एक प्रेरणा हैं।
क्या सेना जातियों का प्रतिनिधि बन गई है?
रामगोपाल यादव ने सवाल उठाया कि यदि युद्ध सेना ने लड़ा, तो भाजपा इसका श्रेय क्यों ले रही है? उन्होंने पूछा कि क्या भाजपा नेता या उनके बच्चे युद्ध के मैदान में थे?
यह बयान एक महत्वपूर्ण मुद्दे को जन्म देता है—क्या हम सेना के कार्यों का राजनीतिक लाभ लेने के लिए उनके शौर्य को जातियों और धर्मों में बांट सकते हैं?
राजनीति बनाम सेना: कहाँ खड़ी है जनता?
भारत में सेना को सदैव गैर-राजनीतिक और धर्म-निरपेक्ष संस्था माना गया है। चाहे सैनिक किसी भी जाति या धर्म से हों, वे केवल तिरंगे के लिए लड़ते हैं। माना जा रहा है कि, ऐसे में राजनीतिक दलों का उन्हें अपने-अपने वोट बैंक की चश्मे से देखना न केवल सेना का अपमान है, बल्कि देश की एकता के लिए भी खतरा है।
क्या राजनीति सेना से बड़ी हो सकती है?
आमजन की राय में, सेना देश का आत्मबल है—न कि कोई राजनीतिक मोहरा। अब भारतीय आवाम को यह तय करना है कि, विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी की बहादुरी पर गर्व करना चाहिए, या उनकी जाति या धर्म को उकेर कर सियासत करने वाली पार्टियों को बर्दास्त करनी चाहिए। भारत की जनता को तय करना होगा कि क्या वह ऐसे बयानों को बर्दाश्त करेगी, जो देश की सेना को टुकड़ों में बांटने की कोशिश करें।