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MP: 5 साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के आदेश में गड़बड़ी, हाई कोर्ट ने जज पर कार्रवाई के लिए की सिफारिश

भोपाल। राजधानी के शाहजहांनाबाद इलाके में 5 साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के बहुचर्चित मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले की गड़बड़ी ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। पॉक्सो कोर्ट की जज कुमुदिनी पटेल ने मुख्य आरोपी की मां और बहन की सजा को अलग-अलग हिस्सों में अलग अवधि में दर्ज कर दिया। कहीं आदेश में सजा एक साल लिखी गई, तो कहीं दो साल। हाई कोर्ट ने इस गंभीर अनियमितता को लापरवाही मानते हुए जज पर प्रशासनिक कार्रवाई की सिफारिश की है।

हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनिंद्र कुमार सिंह ने आदेश दिया कि इस पूरे मामले को रजिस्ट्रार जनरल चीफ जस्टिस के संज्ञान में रखें। कोर्ट ने कहा कि यह केवल टाइपिंग की गलती नहीं है, बल्कि न्यायिक आदेश में गंभीर असंगति है, जो अभियुक्तों के अधिकारों और न्यायालय की विश्वसनीयता पर सीधा असर डालती है।

क्या है मामला?

दरअसल, ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपी अतुल निहाले को 5 साल की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं, आरोपी की मां बसंती बाई और बहन चंचल को साक्ष्य छुपाने का दोषी मानते हुए एक-एक साल की सजा सुनाई गई थी। लेकिन आदेश की अंतिम तालिका में उनकी सजा दो-दो साल लिखी गई। इतना ही नहीं, जेल वारंट भी दो साल का जारी कर दिया गया।

हाई कोर्ट ने सरकारी वकील मानसमणि वर्मा की भूमिका की सराहना की, जिन्होंने रिकॉर्ड पर इस गड़बड़ी को सामने रखा। बेंच ने कहा कि यदि यह त्रुटि उजागर नहीं होती, तो अपील की सुनवाई 25 सितंबर के बाद होती और इस बीच दोनों आरोपी अवैध निरोध में जेल में रहते। यह न केवल अभियुक्तों के अधिकारों का उल्लंघन होता बल्कि अदालत की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्न उठते।

आरोपियों को कोर्ट ने माना दोषी

यह मामला 24 सितंबर 2024 का है, जब बाजपेयी नगर मल्टी से 5 साल की बच्ची लापता हुई थी। दो दिन की तलाश के बाद बच्ची का शव मुख्य आरोपी अतुल निहाले के घर से बरामद हुआ। पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपी ने बच्ची से दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए ट्रायल कोर्ट ने अतुल को फांसी और उसकी मां व बहन को साक्ष्य छुपाने के अपराध में दोषी करार दिया।

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि यह केवल लिपिकीय त्रुटि (टाइपिंग मिस्टेक) नहीं है। फैसले के पैरा 145 में बसंती बाई और चंचल को एक-एक साल की सजा लिखी गई थी, वहीं बाद के पन्नों पर बनाई गई तालिका में दो-दो साल दर्ज किया गया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में यह गलती साधारण लापरवाही नहीं मानी जा सकती।

आदेशों में पहले भी हुई त्रुटि

यह पहली बार नहीं है जब ऐसे मामले सामने आए हों। 2022 में भोपाल के ही एक पॉक्सो केस में आदेश में सजा 10 साल लिखी गई जबकि फैसले में 7 साल थी। हाई कोर्ट ने स्पष्टीकरण लेकर फैसला सुधारा और जज को चेतावनी दी थी। 2019 के इंदौर मर्डर केस और 2024 के ग्वालियर रेप केस में भी इसी तरह की असंगतियां सामने आई थीं, जिन्हें बाद में उच्च न्यायालय ने दुरुस्त किया।

द मूकनायक से बातचीत करते विधि विशेषज्ञ, अधिवक्ता मयंक सिंह ने बताया की ऐसी त्रुटियों से केस खत्म नहीं होता। सीआरपीसी की धारा 465 के तहत आदेश में असंगति को सुधारा जा सकता है और फैसला फिर से ‘रेक्टीफाइड’ या ‘क्लेरिफाइड’ किया जाता है। हालांकि, जज की लापरवाही साबित होने पर उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई संभव है। उन्होंने कहा, "ज्यादातर मामलों में चेतावनी जारी होती है, लेकिन बार-बार ऐसी गलतियों से न्यायिक व्यवस्था की साख पर असर पड़ता है।"

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