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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: रेप केस में देरी पर मामला रद्द, हाईकोर्ट के लिए जारी हुई नई गाइडलाइंस, जानें पूरा मामला

नई दिल्ली: कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एक छात्रा द्वारा दायर बलात्कार के एक मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया है कि शिकायत कथित घटना के चार साल बाद दर्ज की गई थी। इस फैसले को एक नजीर बनाते हुए, अदालत ने उत्पीड़नकारी और कानून का दुरुपयोग करने वाले आपराधिक मामलों को रद्द करने के लिए देश के सभी उच्च न्यायालयों के लिए नए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।

यह मामला प्रदीप कुमार केसरवानी नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक अपील पर आधारित था। केसरवानी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके खिलाफ निचली अदालत द्वारा जारी समन को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

क्या था पूरा मामला?

पूरा विवाद 2014 में शुरू हुआ, जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एक दलित छात्रा ने प्रदीप कुमार केसरवानी के खिलाफ बलात्कार और एससी-एसटी अधिनियम के तहत गंभीर आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। केसरवानी ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि यह शिकायत पूरी तरह से झूठी और दुर्भावनापूर्ण है, जिसे कथित घटना के चार साल बाद दर्ज कराया गया। उन्होंने दलील दी कि उनके और महिला के बीच संबंध सहमति पर आधारित थे, लेकिन जब रिश्ता बिगड़ गया तो उन्हें फंसाने के लिए यह झूठा मामला बनाया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खारिज किया केस?

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि शिकायतकर्ता मामले को आगे बढ़ाने में गंभीर नहीं थी। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा, "शिकायत को सरसरी तौर पर पढ़ने से ही, विशेष रूप से आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, यह कोई विश्वास पैदा नहीं करती है। इस बात का कोई अच्छा स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि शिकायत दर्ज करने में चार साल क्यों लगे।"

पीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया, तो उन्होंने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने माना कि ऐसी स्थिति में आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना "कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग" होगा। इसी आधार पर, अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पूरी आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया।

हाईकोर्ट के लिए नए दिशा-निर्देश

इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए उच्च न्यायालयों के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार की है। ये दिशा-निर्देश हाईकोर्ट को यह तय करने में मदद करेंगे कि किन परिस्थितियों में आपराधिक मामलों को रद्द किया जाना चाहिए:

  1. उच्च न्यायालय को यह जांचना चाहिए कि आरोपी द्वारा पेश की गई सामग्री क्या ठोस, तर्कसंगत और अकाट्य है।

  2. क्या ये सबूत आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को पूरी तरह से खारिज करने की क्षमता रखते हैं।

  3. यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या अभियोजन पक्ष या शिकायतकर्ता ने आरोपी द्वारा प्रस्तुत सामग्री का खंडन नहीं किया है।

  4. अंत में, क्या मामले में सुनवाई जारी रखने से अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि इन सभी सवालों का जवाब "हाँ" में है, तो उच्च न्यायालय को अपनी न्यायिक अंतरात्मा की आवाज पर ऐसे आपराधिक मामलों को रद्द कर देना चाहिए। यह फैसला भविष्य में झूठे और बहुत देरी से दर्ज होने वाले मामलों पर लगाम लगाने में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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