इडुक्की- जिले के वन्नपुरम इलाके में रहने वाले अनस पी.के. एक सामान्य पुलिस अधिकारी की जिंदगी जी रहे थे। वे करीमनूर पुलिस स्टेशन में सिविल पुलिस अधिकारी (सीपीओ) के पद पर तैनात थे। लेकिन दिसंबर 2021 में उनकी जिंदगी अचानक बदल गई, जब उन पर आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं की गोपनीय जानकारी लीक करने का आरोप लगा। पुलिस विभाग के मुताबिक, अनस ने जिला क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो से करीब 100 से 200 आरएसएस-बीजेपी कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) को दी थी, जो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा मानी जाती है।
यह मामला तब सामने आया, जब 3 दिसंबर 2021 को थोडुपुझा में एसडीपीआई कार्यकर्ताओं ने एक केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) के बस कंडक्टर या ड्राइवर पर हमला किया। हमला एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर हुआ था, जिसमें पैगंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक बात कही गई थी। हमला बस में सवार कंडक्टर के बच्चों के सामने हुआ। पुलिस ने छह एसडीपीआई सदस्यों को गिरफ्तार किया। जांच के दौरान एक आरोपी के फोन में अनस का नंबर मिला, जिससे उनकी दोस्ती का पता चला। इससे पुलिस को शक हुआ कि अनस एसडीपीआई के लिए जासूसी कर रहे थे।
थोडुपुझा के डिप्टी एसपी के. सदान ने 16 दिसंबर 2021 को इडुक्की एसपी को रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद अनस को करीमनूर स्टेशन से इडुक्की पुलिस मुख्यालय ट्रांसफर कर दिया गया। उनका फोन जब्त कर लिया गया और एसडीपीआई से और लिंक जांचने की कोशिश की गई। 29 दिसंबर 2021 को उन्हें निलंबित कर दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने साथी कर्मचारियों को चेतावनी दी कि अनस से बात करने पर वे भी संदिग्ध माने जाएंगे। फरवरी 2022 में जांच रिपोर्ट के आधार पर अनस को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इडुक्की एसपी आर. करुपास्वामी ने खुद उन्हें बर्खास्तगी का पत्र सौंपा।
राष्ट्रीय मीडिया में इस खबर को सनसनीखेज तरीके से दिखाया गया। अनस को "मुस्लिम चरमपंथियों" से जुड़ा बताकर 159 आरएसएस कार्यकर्ताओं का डेटाबेस लीक करने का आरोपी बनाया गया। बीजेपी ने इस मुद्दे को भुनाया और तत्कालीन राज्य उपाध्यक्ष ए.एन. राधाकृष्णन के नेतृत्व में अनस के घर और पुलिस स्टेशन पर मार्च निकाला। डर के मारे अनस अपनी कैंसर से पीड़ित मां और भाई के साथ भाग गए। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को भी सुरक्षित जगह पर भेज दिया। घर लौटने पर उन्हें अपना गेट टूटा मिला। पत्थरबाजी हुई और उनके परिवार को धमकियां मिलीं। उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चों की तस्वीर को "आतंकवादी" बताकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया।
अनस का पक्ष अलग था। उनके मुताबिक, उन्होंने सिर्फ दो संदिग्ध वाहनों की रजिस्ट्रेशन डिटेल्स चेक की थीं। एक स्थानीय निवासी ने उन्हें प्लेग्राउंड के पास ड्रग्स की तस्करी की आशंका जताई थी, जहां अनस और पड़ोस के बच्चे खेलते थे। उन्होंने पुलिस ऐप "क्राइम ड्राइव" से वाहनों की जानकारी निकाली और पड़ोसी को फॉरवर्ड की। लेकिन इसे बढ़ा-चढ़ाकर आरएसएस डेटाबेस लीक का मामला बना दिया गया। बाद में साबित हुआ कि पुलिस रिकॉर्ड्स में कोई आरएसएस डेटाबेस था ही नहीं, और वे वाहन किसी संगठन से जुड़े नहीं थे।

संगी-साथियों ने मुंह मोड़ा, मुफलिसी में कट रहा जीवन
नौकरी जाने के बाद अनस की जिंदगी मुश्किल हो गई। रिश्तेदार और दोस्तों ने साथ छोड़ दिया। उनकी पत्नी रातों को जागती रहतीं कि कहीं अनस खुद को नुकसान न पहुंचा लें। अनस ने राइट टू इंफॉर्मेशन (आरटीआई) एक्ट के जरिए रिकॉर्ड्स जुटाए और अपनी बर्खास्तगी को केरल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (केएटी) में चुनौती दी। सितंबर 2024 में ट्रिब्यूनल ने आरोपों को निराधार बताते हुए बर्खास्तगी रद्द कर दी। आदेश दिया गया कि अनस को बहाल किया जाए, और अगर जरूरी हो तो कानूनी विभागीय जांच की जा सकती है।
लेकिन बहाली का आदेश आने के एक साल बाद भी अमल नहीं हुआ। इडुक्की एसपी ने सिर्फ मौखिक निर्देश दिए और "अगर जरूरी हो" वाले क्लॉज का हवाला देकर टाल दिया। लिखित आदेश 18 दिन बाद मिला। इस बीच अनस अपने ससुर की स्क्रैप शॉप में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। वे दो बच्चों के पिता हैं और पिछले चार साल से यही काम कर जीवन चला रहे हैं।
मकतूब मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार यह मामला फिर से चर्चा में आया जब साथी पुलिस अधिकारी उमेश वल्लिकुन्नु ने फेसबुक पर अनस की स्थिति को उजागर किया। उमेश ने लिखा, "क्या आप अनस के जीवन के बारे में जानते हैं, जो दो बच्चों का पिता है और 16 दिसंबर 2021 से इडुक्की में स्क्रैप शॉप में काम कर रहा है?" उन्होंने अनस के अलगाव, डर और परिवार की पीड़ा का जिक्र किया। उमेश ने कहा कि झूठी प्रचार से पुलिस की इज्जत बचाने की कोशिश खुद पुलिसवालों के खिलाफ हो सकती है, और ऐसे में कोई साथ नहीं देता।
अनस का यह मामला पुलिस विभाग में सांप्रदायिक पूर्वाग्रह और झूठे आरोपों की समस्या को दर्शाता है। ट्रिब्यूनल के आदेश के बावजूद बहाली में देरी से सवाल उठ रहे हैं कि क्या न्याय व्यवस्था पूरी तरह अमल में लाई जा रही है। अनस अब भी इंसाफ की उम्मीद में संघर्ष कर रहे हैं।