भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए संविधान और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को और सुदृढ़ किया है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स संघ) द्वारा दायर जनहित याचिका (क्रमांक 32834/2024) पर अदालत ने त्वरित सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट आदेश पारित किया कि प्रदेश की समस्त भर्तियों में अनारक्षित पद केवल और केवल मेरिट के आधार पर भरे जाएंगे, चाहे उम्मीदवार किसी भी वर्ग का हो।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय (SLP 5817/2023, दीपेंद्र यादव बनाम मध्य प्रदेश शासन) के आलोक में दिया गया, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने चयन प्रक्रिया के हर चरण में मेरिट आधारित चयन को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया था।
फैसले की मुख्य बातें
1. अनारक्षित पदों का चयन केवल मेरिट पर आधारित: हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि प्रदेश की सभी सरकारी भर्तियों में अनारक्षित पदों को केवल उन्हीं अभ्यर्थियों से भरा जाएगा जो मेरिट के आधार पर सबसे योग्य होंगे। यह प्रावधान प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा, दोनों चरणों पर लागू होगा।
2. भविष्य की भर्तियों में लागू: अदालत ने निर्देश दिया कि यह फैसला भविष्य की सभी भर्तियों पर भी लागू होगा, जिससे किसी वर्ग विशेष के साथ अन्याय न हो।
3. याचिका का त्वरित निपटारा: हाईकोर्ट ने कहा कि इस याचिका को लंबित रखकर आरक्षित वर्ग के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
समझिए क्या है मामला?
अजाक्स संघ ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें प्रदेश की भर्तियों में अनारक्षित पदों पर आरक्षित वर्ग के युवाओं के साथ हो रहे अन्याय का मुद्दा उठाया गया था। इस याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई 20 नवंबर 2024 को हुई थी। हाईकोर्ट ने उस दिन सभी भर्तियों को याचिका के अधीन रखते हुए सरकार से जवाब तलब किया था।
फुल कोर्ट मीटिंग के बाद पुनः हुई सुनवाई:
20 नवंबर की शाम को हाईकोर्ट की फुल कोर्ट मीटिंग के बाद यह तय किया गया कि इस याचिका को लंबित नहीं रखा जा सकता। इसे 21 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया। संबंधित अधिवक्ताओं को इस निर्णय की सूचना मोबाइल पर दी गई।
21 नवंबर को मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने सुबह 12 बजे इस याचिका की सुनवाई की। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही SLP 5817/2023 में मेरिट आधारित चयन का स्पष्ट निर्देश दिया है, इसलिए इस मामले में विलंब करना आरक्षित वर्ग के युवाओं के अधिकारों का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और हाईकोर्ट का रुख
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि चयन प्रक्रिया के हर चरण में अनारक्षित पदों को सभी वर्गों के प्रतिभाशाली उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिए।
पूर्व के फैसलों पर पुनर्विचार:
जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की डिवीजन बेंच के 2023 के निर्णय को कानून और सामाजिक न्याय के अनुकूल नहीं पाया गया।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की खंडपीठ द्वारा 2024 में पारित निर्णय को भी खारिज कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा WP 807/2022 के निर्णय को पहले ही सही ठहराया जा चुका है, जिसे हाईकोर्ट ने भी इसे फैसले में बरकरार रखा।
वकीलों ने कोर्ट को दिए थे यह तर्क
अजाक्स संघ की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, और पुष्पेंद्र शाह ने अदालत में प्रभावशाली दलीलें दीं। उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद राज्य में भर्ती प्रक्रिया में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के साथ भेदभाव हो रहा है।
इधर, सरकारी पक्ष की ओर से यह दलील दी गई कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का पालन कर रही है, लेकिन कोर्ट ने पाया कि अभी भी कई भर्तियों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं हुआ है।