भोपाल। मध्य प्रदेश के 69वें स्थापना दिवस के अवसर पर इस बार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने "मोह लिया रे" नामक नया टूरिज्म टीवीसी लॉन्च किया। राज्य के नैसर्गिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता को प्रमोट करने के उद्देश्य से बने इस विज्ञापन में उज्जैन, खजुराहो और ओरछा जैसे प्रसिद्ध स्थलों को दिखाया गया है। हालाँकि, इस नए विज्ञापन में मध्यप्रदेश की विश्व धरोहर स्थलों—सांची, भीमबेटका, और मांडू—की अनुपस्थिति को लेकर गहरी नाराजगी और सवाल उठाए जा रहे हैं। पर्यटन विभाग पर राज्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की अनदेखी के आरोप लग रहे हैं।
सांची: बौद्ध विरासत की अनदेखी
सांची का बौद्ध स्तूप, जो सम्राट अशोक की धरोहर है, मध्यप्रदेश की एक ऐतिहासिक पहचान है। इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है, और इसे बौद्ध कला का एक अनमोल उदाहरण माना जाता है। इसके बावजूद, "मोह लिया रे" विज्ञापन से सांची को बाहर रखना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को नजरअंदाज करने जैसा है, जिससे यह आभास होता है कि पर्यटन विभाग के निर्णय में ऐतिहासिक स्थलों की अहमियत को दरकिनार किया गया है।
भीमबेटका: मानव सभ्यता के शैलचित्रों का अपमान!
भीमबेटका की प्रागैतिहासिक गुफाएँ और शैलचित्र पाषाण युग के समय की अमूल्य धरोहर हैं, जो भारतीय इतिहास और मानव सभ्यता का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। लेकिन "मोह लिया रे" में भीमबेटका की अनुपस्थिति ने पर्यटन विभाग की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसे नजरअंदाज करना न केवल प्रदेश की ऐतिहासिक विरासत का अपमान है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार द्वारा पर्यटन को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है, न कि सांस्कृतिक या ऐतिहासिक महत्व के रूप में।
मांडू: प्रेम और वास्तुकला के अनमोल स्थल की अनदेखी
"प्रेम नगर" मांडू, राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेम कहानी का साक्षी है, और अफगान शैली की अद्भुत वास्तुकला का गढ़ है। लेकिन मांडू को नवीन विज्ञापन से बाहर रखना न केवल मध्यप्रदेश की धरोहरों के प्रति एक लापरवाही का प्रतीक है, बल्कि इस पर्यटन स्थल के महत्व को कमतर आंका गया है। मांडू में हजारों पर्यटक सालाना आते हैं, और इसे विज्ञापन में न दिखाना प्रदेश के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों के साथ न्याय नहीं करता।
पर्यटन विभाग की असंवेदनशीलता या चूक?
पर्यटन विभाग ने इस मामले पर अब तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, जो विभाग की असंवेदनशीलता को उजागर करता है। यह समझ से परे है कि यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त सांची और भीमबेटका जैसे स्थलों को छोड़कर विभाग ने कुछ चुनिंदा स्थलों पर ही फोकस क्यों किया है! ऐसा लगता है कि सरकार और विभाग का ध्यान केवल वही पर्यटन स्थल हैं जो लोकप्रियता या आर्थिक लाभ के मापदंडों पर फिट बैठते हैं, न कि सांस्कृतिक धरोहरों की समृद्धि पर।
द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए इतिहासविद् ,स्वतंत्र अध्येता एवं पर्यावरणविद्डॉ. स्मिता राशी ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि " मध्य प्रदेश में स्थित बौद्ध स्मारक साँची के स्तूप भारतीय स्थापत्य और सौंदर्य का अद्वितीय प्रतीक है। 1989 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी, जो न केवल भारत के बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन गया है।" डॉ. राशी ने यह भी बताया कि शांति के प्रतीक सांची के स्तूप न केवल ऐतिहासिक महत्व को वैश्विक पृष्ठभूमि में स्थापित किया है अपितु भारतीय स्थापत्य कला,धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को बखूबी दर्शातें है।
उन्होंने भीमबेटका की गुफाओं का उल्लेख करते हुए कहा, भीमबेटका के शैलचित्र पुराषाणिक जीवन को उजागर करती हैं। 2003 में यूनेस्को ने भीमबेटका को भी विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया। ये गुफाएं चित्रकला की एक अहम धरोहर हैं और आज भी उन चित्रों के माध्यम से हमें पहली मानव सभ्यता की झलक मिलती है।
डॉ. राशी ने यह भी कहा कि इन अद्भुत धरोहरों का प्रचार और प्रसार और अधिक होना चाहिए। उनका मानना है कि इन स्थलों को पर्यटन के टीवीसी विज्ञापनों में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए था, ताकि इनका महत्व दुनिया भर में फैल सके।
नेता प्रतिपक्ष ने जताई आपत्ति
मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने 'द मूकनायक' से बातचीत करते हुए राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा जारी विज्ञापन में वर्ल्ड हेरिटेज स्थलों सांची और भीमबेटका को हटाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, "क्या मध्य प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव प्रदेश के नक्शे से इन धरोहरों को गायब करना चाहते हैं?" सिंघार ने इस पर तीखा सवाल करते हुए कहा कि इस विज्ञापन में तुरंत सुधार किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि न केवल सांची और भीमबेटका, बल्कि राज्य के अन्य धरोहर स्थल, जैसे मण्डू को भी पर्यटन विभाग के विज्ञापन में शामिल किया जाना चाहिए।
कांग्रेस का सरकार पर आरोप
अनुसूचित जाति कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि "मोह लिया रे" टीवीसी में सांची, मांडू और भीम बेटका की गुफाओं को जानबूझकर गायब कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सांची बौद्ध स्तूप और इन ऐतिहासिक स्थलों का महत्व देश-विदेश में है, और इनको हटाना सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करता है। उन्होंने पर्यटन विभाग से इस गलती को सुधारने की मांग की और कहा कि इन स्थलों को सही स्थान दिया जाए।
पुराने टीवीसी से लेकर वर्तमान तक – धरोहरों का सिलसिला टूटा
पिछले टीवीसी विज्ञापनों में सांची और भीमबेटका जैसे स्थलों को शामिल किया गया था। लेकिन 2018 के बाद से टीवीसी 'एमपी की माया' से शुरू हुए इस बदलाव में ये स्थल लगातार नदारद होते जा रहे हैं। इसे लेकर यह आरोप लगाया जा रहा है कि विभाग जानबूझकर ऐसी धरोहरों को हटा रहा है, जो शायद बाजार या ब्रांडिंग के मानकों पर फिट नहीं बैठते। यह कदम न केवल धरोहरों की उपेक्षा है, बल्कि यह पर्यटन के माध्यम से मध्यप्रदेश की पहचान को सीमित करने का प्रयास भी प्रतीत होता है!
विभाग की प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल
पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला का कहना है कि "मोह लिया रे" से प्रदेश को एक नई पहचान मिलेगी" लेकिन इस विज्ञापन में विश्व धरोहर स्थलों को शामिल न करना उनके बयान पर सवाल खड़ा करता है। इससे स्पष्ट होता है कि विभाग की प्राथमिकताओं में केवल उन स्थानों को महत्व दिया जा रहा है जो 'विज्ञापन योग्य' हैं, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थलों को अनदेखा किया जा रहा है।
पर्यटन की ब्रांडिंग या ऐतिहासिक धरोहरों की उपेक्षा?
मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों को इस प्रकार से नजरअंदाज करना राज्य के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को आघात पहुँचाने जैसा है। कांग्रेस की मांग है की सरकार और पर्यटन विभाग को इन स्थानों को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के अपने कर्तव्यों को समझें और इस तरह के विज्ञापनों में इन स्थलों को उचित स्थान दें। यह केवल पर्यटन नहीं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान की बात है, जिस पर पर्यटन विभाग की यह अनदेखी भविष्य में पर्यटन की साख पर भी असर डाल सकती है। इस संबंध में मप्र शासन के पर्यटन राज्य मंत्री धर्मेंद्र भाव लोधी के पक्ष के लिए बातचीत करने के लिए फोन किया पर संपर्क नहीं हो सका।