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लैंगिक न्याय से कौन डरता है? IIT Bombay में भंवरी देवी पैनल डिस्कशन निरस्त होने पर APPSC ने उठाए चुभते सवाल

मुंबई — आईआईटी बॉम्बे प्रशासन ने 4 जनवरी को होने वाले पैनल डिस्कशन "What it Takes: Re-making the Workplace (Or, How Bhanwari Devi Changed Our World)" "व्हाट इट टेक्स: री-मेकिंग द वर्कप्लेस (या, भंवरी देवी ने हमारी दुनिया कैसे बदली)" को अचानक रद्द कर दिया। इस फैसले पर अंबेडकर- पेरियार- फुले स्टडी सर्कल (APPSC) ने कड़ी आपत्ति जताई है।

यह आयोजन संस्थान की जेंडर सेल द्वारा आयोजित किया जाना था, जिसका उद्देश्य भंवरी देवी के संघर्ष और उनके योगदान पर चर्चा करना था, जिसने भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ विशाखा गाइडलाइंस को आकार दिया।

भंवरी देवी, जो राजस्थान की एक ग्रामीण महिला और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, 1992 में बच्चों की शादी रोकने पर प्रभावशाली ग्रामीणों द्वारा सामूहिक बलात्कार का शिकार बनीं। उनकी इस घटना ने भारत में लैंगिक न्याय के आंदोलन को एक नई दिशा दी। अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विशाखा गाइडलाइंस जारी कीं, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए एक कानूनी तंत्र प्रदान करती हैं।

हालांकि सबूतों की कमी का हवाला देकर स्थानीय अदालत ने आरोपियों को बरी कर दिया। पुलिस द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार और आरोपियों को अदालत द्वारा बरी किए जाने ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का व्यापक ध्यान आकर्षित किया और यह भारत के महिला अधिकार आंदोलन में एक ऐतिहासिक प्रकरण बन गया। इसके बाद भंवरी देवी और अन्य ने विशाखा प्लेटफॉर्म के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की।

इस पैनल डिस्कशन का उद्देश्य भंवरी देवी के योगदान को समझाना और 1970 और 1980 के दशक में महिलाओं के आंदोलन पर चर्चा करना था, जिसने पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थापना पर जोर दिया।

पैनल रद्द करने पर एपीपीएससी का विरोध, ब्ग्ताया कैंपस लोकतंत्र पर हमला

एपीपीएससी, जो छात्रों के मुद्दों पर काम करता है, ने इस आयोजन को रद्द करने को जाति और लैंगिक समानता पर चर्चा दबाने की कोशिश करार दिया। संगठन ने अपने बयान में कहा, "इस कार्यक्रम को सभी नियमों का पालन करते हुए आयोजित किया गया था। संस्थान द्वारा इसे अचानक रद्द करना, वह भी आवश्यक बदलाव करने की कोशिशों के बाद, जाति और लैंगिक समानता पर आलोचनात्मक चर्चा को दबाने का ‘चौंकाने वाला’ प्रयास है।"

एपीपीएससी ने आयोजन रद्द करने में पारदर्शिता की कमी और गुमनाम आपत्तियों पर भरोसे पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "गुमनाम आपत्तियां और प्रशासन के अपारदर्शी हस्तक्षेप जैसे कदम जेंडर सेल जैसे स्वायत्त निकायों की स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं और पारदर्शिता, समावेशिता और अकादमिक स्वतंत्रता के मूल्यों के खिलाफ हैं।"

एपीपीएससी ने इस कदम को "कैंपस लोकतंत्र, अकादमिक स्वतंत्रता और विश्वविद्यालयों की सामाजिक जिम्मेदारी पर गंभीर हमला" करार दिया।

एपीपीएससी ने इस चर्चा को मौजूदा समय में खास तौर पर महत्वपूर्ण बताया, जब महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है। बयान में कहा गया,"आज महिलाओं के आंदोलन पर नवउदारवाद के हमले हो रहे हैं।चाहे वह उन्नाव- हाथरस की घटनाएं हों या महिला पहलवानों के खिलाफ अत्याचार, प्रतिक्रियावादी पितृसत्तात्मक राजनीति महिलाओं पर बढ़ती हिंसा के लिए जिम्मेदार है "

एपीपीएससी ने अपने बयान में प्रशासन से अकादमिक स्वतंत्रता को बहाल करने और लैंगिक हिंसा के खिलाफ संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा, "आइए सुनिश्चित करें कि आईआईटी बॉम्बे आलोचनात्मक विचार-विमर्श और परिवर्तनकारी बदलाव के लिए एक स्थान बना रहे।"

भंवरी देवी के पैनल डिस्कशन को रद्द करने की इस घटना ने अकादमिक संस्थानों में चर्चा की स्वतंत्रता पर गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी हैं। कई लोग इसे जाति और लैंगिक समानता के खिलाफ बड़े संघर्ष का प्रतीक मान रहे हैं।

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