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आदिवासियों के खून में क्या है खास? गुजरात सरकार ने शुरू किया ऐसा DNA प्रोजेक्ट जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे!

अहमदाबाद: गुजरात में एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक पहल के तहत राज्य सरकार ने आदिवासी समुदायों के लिए विशेष रूप से केंद्रित देश का पहला बड़े पैमाने का जीनोम मैपिंग प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस परियोजना के तहत 17 जिलों में फैले आदिवासी बहुल इलाकों से 4,158 जैविक नमूने—जिनमें रक्त भी शामिल है—इकट्ठे किए जाएंगे। इससे 2,000 से अधिक पूर्ण जीनोम अनुक्रम (Whole Genome Sequences) तैयार किए जाएंगे, जो 20 से अधिक आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व करेंगे।

हालांकि गुजरात के नमूने पहले राष्ट्रीय स्तर की 'जीनोम इंडिया परियोजना' का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन यह पहली बार है जब किसी राज्य के आदिवासी समुदायों के लिए स्वतंत्र रूप से एक रेफरेंस जीनोम डाटाबेस तैयार किया जा रहा है।

Time Of India की रिपोर्ट के अनुसार, यह परियोजना बुधवार को आयोजित एक सत्र “गुजरात की आदिवासी आबादी के लिए रेफरेंस जीनोम डाटाबेस का निर्माण” के दौरान प्रस्तुत की गई। सत्र की अध्यक्षता आदिवासी विकास मंत्री कुबेर डिंडोर और राज्य मंत्री (आदिवासी विकास) कुंवरजी हलपति ने की। इसमें गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (GBRC) के वैज्ञानिकों, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधिकारियों तथा आदिवासी विकास विशेषज्ञों ने भाग लिया।

इसपर एक अधिकारी ने कहा, “यह देश की पहली ऐसी पहल है जो पूरी तरह से आदिवासी समुदायों पर केंद्रित है।”

आदिवासी स्वास्थ्य के लिए वैज्ञानिक क्रांति

यह जीनोम मैपिंग परियोजना गुजरात की लगभग 15% आदिवासी आबादी के आनुवंशिक स्वास्थ्य और विविधता को सूक्ष्म स्तर पर समझने में मदद करेगी। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि किन बीमारियों की संभावना किन समुदायों में अधिक है और कौन-से अनुवांशिक लक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं।

इस अध्ययन में शामिल प्रमुख समुदाय हैं: बमचा, गरासिया भील, ढोली भील, चौधरी, धनका, तडवी, वाल्वी, डुबला, गामित, गोंड, कठोड़ी, कुकना, कुंभी, नायक, पारधी, पाटेलिया, राठवा, वारली, कोटवालिया और अन्य।

अफ्रीकी मूल के लिए प्रसिद्ध सिद्दी समुदाय, जो अमरेली, भावनगर, जामनगर, जूनागढ़, राजकोट और सुरेंद्रनगर जिलों में रहता है, को भी इस अध्ययन में शामिल किया गया है।

परियोजना की मुख्य विशेषताएं

  • प्रत्येक समुदाय से कम से कम एक "जेनेटिक ट्रायो" (माता, पिता और एक संतान के नमूने) लिए जाएंगे ताकि आनुवंशिक लक्षणों की पहचान की जा सके।

  • केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के स्वस्थ व्यक्तियों के नमूने लिए जाएंगे, जिनमें कोई स्पष्ट रक्त विकार न हो।

  • नमूना संग्रहण में 50% महिलाओं की भागीदारी का लक्ष्य रखा गया है।

  • स्थानीय प्रशासनिक निकाय लोगों को जानकारी देने और सहमति फॉर्म भरवाने में मदद करेंगे।

परंपरा और विज्ञान के बीच सेतु

मंत्री कुबेर डिंडोर ने इस पहल को विज्ञान और परंपरा के बीच एक सेतु बताया। उन्होंने कहा कि यह परियोजना व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर आनुवंशिक डेटा के माध्यम से आदिवासी समुदायों की स्वास्थ्य और कल्याण संबंधी जरूरतों को समझने में अहम भूमिका निभाएगी।

डिंडोर ने कहा, “यह परियोजना आदिवासी समाज की विशेषताओं को समझने और उनके लिए प्रभावी नीति निर्धारण में मददगार होगी।”

क्यों ज़रूरी है आदिवासी जीनोम मैपिंग?

  • स्वास्थ्य विश्लेषण: यह परियोजना विभिन्न समुदायों में पाए जाने वाले जेनेटिक मार्कर्स की जानकारी देगी, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि किस बीमारी की संभावना किस समुदाय में अधिक है।

  • नीति निर्माण में मदद: राष्ट्रीय सर्वेक्षणों से यह सामने आया है कि आदिवासी समुदायों में एनीमिया, कुपोषण और शिशु मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक है। यह डेटा नीतियों को बेहतर बनाने में मदद करेगा।

  • सांस्कृतिक पहचान को सहेजना: यह अध्ययन न केवल स्वास्थ्य बल्कि आनुवंशिक और सांस्कृतिक विविधता को भी दस्तावेज करेगा, जिससे समुदायों की विशिष्ट पहचान को संरक्षित किया जा सकेगा।

गुजरात की यह पहल अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है, और देश में समावेशी, डेटा-आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

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