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12 साल से गांव से भगाए गए 300 आदिवासी अब लौटेंगे अपने घर – जानिए कैसे टूटी ‘छड़ोतारू’ की डरावनी परंपरा की बेड़ियां!

बनासकांठा, गुजरात – गुजरात के बनासकांठा ज़िले के दांता तालुका स्थित मोटा पिपोदरा गांव से 12 साल पहले एक प्राचीन परंपरा ‘छड़ोतारू’ के चलते निर्वासित किए गए कोडरवी समुदाय के 29 आदिवासी परिवार अब अपने गांव लौटने जा रहे हैं। करीब 300 लोगों वाले इन परिवारों की घरवापसी 17 जुलाई 2025 (गुरुवार) को एक विशेष समारोह के साथ होगी।

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, छड़ोतारू—एक प्रतिशोध आधारित सामाजिक प्रथा—के कारण गांव में लगातार विवाद और तनाव की स्थिति बनी रही, जिससे ये परिवार पलायन को मजबूर हुए। ये परिवार पालनपुर और सूरत में शरण लेकर वर्षों तक अपनी ज़मीन, घर और यादों को पीछे छोड़कर बाहरी लोगों की तरह जीवन जीते रहे।

इनकी पीड़ा को समझते हुए, बनासकांठा पुलिस और जिला प्रशासन ने इनके पुनर्वास के लिए गंभीर प्रयास शुरू किए। गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने बताया कि गांव के बुज़ुर्गों, पंचायत सदस्यों और समुदाय के नेताओं के साथ कई बैठकें की गईं ताकि शांति और सौहार्दपूर्ण ढंग से इनकी वापसी सुनिश्चित हो सके।

मंत्री ने कहा, "बनासकांठा पुलिस ने सुलह की एक लंबी प्रक्रिया चलाई और सभी पक्षों से बातचीत कर रास्ता निकाला।"

जिला प्रशासन ने इन परिवारों की करीब 8.5 हेक्टेयर पुश्तैनी ज़मीन को चिह्नित कर पुनर्जीवित किया, जो वर्षों से बंजर और झाड़ियों में तब्दील हो चुकी थी। इसे साफ़ कर समतल किया गया और खेती योग्य बनाया गया।

संघवी ने बताया, "यह ज़मीन अब फिर से उपजाऊ बन गई है, और इनके नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है।"

पुनर्वास योजना के तहत दो मकानों का निर्माण हो चुका है और बाकी 27 परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना तथा सामाजिक संगठनों की मदद से घर दिए जाएंगे।

17 जुलाई को इन परिवारों का गांव में स्वागत एक विशेष कार्यक्रम के साथ किया जाएगा, जिसमें पूजा अनुष्ठान और पुनर्जीवित ज़मीन पर बीज बोने की प्रतीकात्मक क्रिया भी शामिल होगी—जो नई शुरुआत और समृद्धि का संकेत होगा। मंत्री ने बताया कि वे स्वयं परिवारों को शैक्षिक किट्स, राशन सामग्री वितरित करेंगे और दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाओं पर चर्चा करेंगे।

संघवी ने कहा, "यह केवल लोगों को उनके गांव वापस लाने का विषय नहीं है, बल्कि पुराने ज़ख्मों को भरने और सामंजस्यपूर्ण भविष्य की नींव रखने का प्रयास है। हम मानते हैं कि किसी भी आदिवासी परिवार को किसी पुरानी और अमानवीय परंपरा के चलते विस्थापित नहीं रहना चाहिए। विकास और संवाद ही किसी भी मतभेद पर विजय पा सकते हैं।"

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