नई दिल्ली — भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सख्त होती नीति का एक और संकेत देते हुए देश की दो प्रमुख विश्वविद्यालयों — जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) — ने तुर्की की शैक्षणिक संस्थाओं के साथ अपने अकादमिक समझौतों (MoUs) को निलंबित कर दिया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने 15 मई को अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल के माध्यम से यह घोषणा की:
“राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली और तुर्की गणराज्य की किसी भी सरकारी संस्था से संबद्ध संस्थान के साथ कोई भी समझौता (MoU) तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक निलंबित किया जाता है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया राष्ट्र के साथ दृढ़ता से खड़ी है।”
यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने भी कुछ दिन पहले ही इसी तरह का निर्णय लिया था। जेएनयू ने 14 मई को पोस्ट किया:
“राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र, जेएनयू और तुर्की के इनोनू विश्वविद्यालय के बीच हुआ समझौता अगले आदेश तक निलंबित किया जाता है। जेएनयू राष्ट्र के साथ खड़ा है।”
भू-राजनीतिक तनावों की छाया में अकादमिक रिश्ते
पिछले दो दशकों में भारतीय विश्वविद्यालयों ने वैश्विक अनुसंधान और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से समझौते किए हैं। तुर्की, अपनी बढ़ती उच्च शिक्षा प्रणाली के चलते, कई भारतीय संस्थानों के लिए एक आकर्षक भागीदार रहा है। लेकिन बदलते कूटनीतिक समीकरण और वैश्विक सुरक्षा चिंताओं के बीच अब शिक्षण संस्थान भी इन बदलावों की चपेट में आ रहे हैं।
शैक्षणिक जगत से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार उन देशों के साथ हुए समझौतों की समीक्षा कर रही है जिनके रणनीतिक हित भारत से मेल नहीं खाते या जिन पर भारत के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने का संदेह है।
प्रतीकात्मकता और राष्ट्र के प्रति एकजुटता
दोनों विश्वविद्यालयों ने अपने बयानों में "राष्ट्र के साथ खड़े होने" की बात कही है — यह उच्च शिक्षा के स्वतंत्र माहौल में एक अहम और प्रतीकात्मक बदलाव माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाक्रम दर्शाता है कि अब अकादमिक संस्थान भी राष्ट्रीय रणनीतिक चिंताओं से अछूते नहीं हैं।
आगे क्या?
फिलहाल इन MoUs को “अगले आदेश तक” निलंबित किया गया है, जिससे संकेत मिलता है कि अगर हालात बदलते हैं तो इन्हें पुनः शुरू किया जा सकता है। लेकिन वर्तमान में तुर्की के संस्थानों के साथ छात्र आदान-प्रदान, संयुक्त शोध परियोजनाएं और सेमिनार जैसे सभी कार्यक्रम रोक दिए गए हैं।
भारत की विदेश नीति में हो रहे बदलावों के साथ विश्वविद्यालय, जो कभी सॉफ्ट पावर के वाहक माने जाते थे, अब हार्ड पावर की रणनीतियों का हिस्सा बनते दिख रहे हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जेएनयू के ताजा निर्णय यह स्पष्ट करते हैं कि आज की दुनिया में कक्षा की दीवारें भी भू-राजनीति से अछूती नहीं रहीं।