— ✍️ Jaywant Bherviya
उदयपुर, राजस्थान: उदयपुर पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (RSHRC) के आदेशों की अवहेलना करने का गंभीर आरोप लगा है। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत दिसंबर 2024 और जनवरी 2025 में प्राप्त जानकारी के अनुसार, उदयपुर पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की पालना में मासिक रिपोर्ट राज्य मानवाधिकार आयोग को नहीं भेजी है। यह मामला डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2001 में जारी 11 बिंदुओं वाले निर्देशों से संबंधित है, जिसका उद्देश्य हिरासत में हिंसा को रोकना और गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना है।
वर्ष 2005 में, राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (DGP) के.पी.एस. गिल को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के इन आदेशों का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। पत्र में कहा गया था कि पुलिस को हर महीने मानवाधिकार आयोग को पालना रिपोर्ट भेजनी होगी। इसके लिए 28 सितंबर 2005 को अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस, अपराध शाखा, राजस्थान, जयपुर ने सभी रेंज महानिरीक्षकों और जिला पुलिस अधीक्षकों को आदेश जारी किया था, जिसमें मासिक पालना रिपोर्ट भेजने को कहा गया था।
सुप्रीम कोर्ट के 11 निर्देशों में शामिल प्रमुख बिंदु हैं:
गिरफ्तारी करने वाले पुलिसकर्मियों के पास स्पष्ट पहचान और नाम टैग होने चाहिए, और पूछताछ करने वाले अधिकारियों का विवरण रजिस्टर में दर्ज होना चाहिए।
गिरफ्तारी के समय एक ज्ञापन तैयार किया जाए, जिसे कम से कम एक गवाह सत्यापित करे और उसमें गिरफ्तारी का समय और तारीख दर्ज हो।
गिरफ्तार व्यक्ति को अपने किसी रिश्तेदार या मित्र को हिरासत की सूचना देने का अधिकार है।
गिरफ्तारी का समय, स्थान और हिरासत का स्थान 8 से 12 घंटे के भीतर टेलीग्राफिक रूप से संबंधित व्यक्ति को सूचित किया जाए।
गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की सूचना देने के अधिकार के बारे में बताया जाए।
हिरासत स्थल पर डायरी में गिरफ्तारी की सूचना और संबंधित पुलिस अधिकारियों का विवरण दर्ज किया जाए।
गिरफ्तारी के समय व्यक्ति की शारीरिक जांच हो और चोटों का विवरण दर्ज किया जाए।
गिरफ्तार व्यक्ति की हिरासत के दौरान हर 48 घंटे में संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के स्वास्थ्य सेवा निदेशक द्वारा नियुक्त अनुमोदित डॉक्टरों के पैनल में से किसी एक डॉक्टर द्वारा प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा चिकित्सा जाँच कराई जानी चाहिए। स्वास्थ्य सेवा निदेशक को सभी तहसीलों और जिलों के लिए भी ऐसा पैनल तैयार करना चाहिए।
सभी दस्तावेजों की प्रतियां मजिस्ट्रेट को भेजी जाएं।
पूछताछ के दौरान गिरफ्तार व्यक्ति को अपने वकील से मिलने की अनुमति हो।
सभी जिला और राज्य मुख्यालयों पर पुलिस नियंत्रण कक्ष में गिरफ्तारी की सूचना प्रदर्शित की जाए।
हालांकि, RTI से मिली जानकारी के अनुसार, उदयपुर पुलिस ने इन निर्देशों की पालना में कोई मासिक रिपोर्ट मानवाधिकार आयोग को नहीं भेजी। यह गंभीर लापरवाही का मामला है, खासकर तब जब उदयपुर में पिछले कुछ समय में हिरासत में मारपीट और मौत के मामले सामने आए हैं।
राज्य मानवाधिकार आयोग ने बार-बार पुलिस अधिकारियों को इन आदेशों का पालन करने और नियमित रिपोर्ट भेजने के लिए कहा, लेकिन उदयपुर पुलिस की ओर से कोई जवाबदेही नहीं दिखाई गई।
- लेखक राजस्थान के एक सक्रिय RTI कार्यकर्ता हैं, जो पुलिस प्रशासन में सुधार और सरकारी तंत्र में पारदर्शिता के लिए समर्पित हैं।