भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों की स्थिति युवाओं ख़ासकर अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए लगातार निराशाजनक होती जा रही है। mprojgar.gov.in पोर्टल पर उपलब्ध आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि बेरोज़गारी का संकट थमने का नाम नहीं ले रहा। पोर्टल पर दर्ज 23,19,196 आकांक्षी युवा सरकारी नियुक्तियों की प्रतीक्षा में हैं, जबकि मात्र मौजूदा वर्ष में ही 6,77,827 नए पंजीयन हुए हैं। यह संकेत है कि रोज़गार के अवसर बढ़ने के बजाय सीमित होते जा रहे हैं और युवाओं की एक बड़ी आबादी अब भी सम्मानजनक नौकरी से वंचित है।
साथ ही, आरक्षित वर्गों के लिए बैकलॉग भर्ती का मुद्दा वर्षों से अनसुलझा है। विभिन्न विभागों में करीब 1.40 लाख बैकलॉग पद रिक्त बताए जाते हैं, सबसे अधिक दबाव स्कूल शिक्षा विभाग पर है, जहाँ शिक्षक पात्रता परीक्षा (वर्ग-1, वर्ग-2 और वर्ग-3) से जुड़े लगभग 40 हज़ार पद खाली बताए जाते हैं। इसके अलावा सामाजिक न्याय, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास जैसे विभागों में भी हज़ारों पद सालों से रिक्त पड़े हैं। परिणाम यह कि आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों का सरकारी सेवा में प्रवेश और लंबित प्रमोशन, दोनों पर असर पड़ा है।
अभ्यर्थी तैयारी कर रहे हैं, पर सीटें नहीं बढ़ रहीं
द मूकनायक से बातचीत में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी निखिल कुमार कहते हैं, “पिछले 6 साल से तैयारी कर रहा हूँ, लेकिन आरक्षित पदों पर भर्ती की संख्या बहुत कम निकलती है। रोजगार का संकट है, इस साल हुआ तो ठीक, वरना प्राइवेट नौकरी देखूँगा।”
एक अन्य छात्र, जिन्होंने नाम प्रकाशित न करने का अनुरोध किया, कहते हैं, “पाँच साल से तैयारी कर रहा हूँ, पर भर्ती प्रक्रिया बहुत धीमी है। प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, सीटें कम हैं, बैकलॉग भर्ती में भी रिक्तियाँ कम ही निकलती हैं।”
अभ्यर्थियों की यह आवाज़ बताती है कि लम्बे समय से परीक्षाएँ, परिणाम, जॉइनिंग और काउंसलिंग, हर चरण में देरी ने युवाओं के मनोबल को तोड़ा है। निजी क्षेत्र में भी भर्तियाँ सुस्त हैं, असंगठित और ठेका आधारित नौकरियों का चलन बढ़ा है, जिससे रोज़गार की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। कुल मिलाकर, आधिकारिक पोर्टल पर दिख रहा बेरोज़गारों का आँकड़ा वास्तविक संकट का सिर्फ एक हिस्सा भर है- क्योंकि इसमें वे लाखों युवा शामिल नहीं हैं जो सिर्फ प्राइवेट सेक्टर की तलाश में हैं।
कांग्रेस ने कहा- योजनाएँ कागज़ों तक सीमित, युवाओं को हक़ से वंचित किया जा रहा
इस मुद्दे पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा है। अनुसूचित जाति कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने द मूकनायक से कहा, “सरकार एक तरफ रोजगार देने की बात करती है, दूसरी तरफ युवाओं को उनके हक से वंचित किया जा रहा है। परीक्षा घोटाले, पेपर लीक और खाली पदों पर नियुक्ति न होना, ये सब सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करते हैं।” उनका कहना है कि “योजनाएँ कागज़ों पर हैं, ज़मीन पर असर नहीं। बैकलॉग पद लगातार बढ़ रहे हैं, इससे हज़ारों युवाओं का भविष्य अंधकार में है। हमारी मांग है कि सरकार तत्काल बैकलॉग भर्ती शुरू करे, वरना आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।”
कांग्रेस का तर्क है कि आरक्षित वर्गों के लिए बैकलॉग भरना न केवल संवैधानिक और नीतिगत प्रतिबद्धता है, बल्कि सामाजिक न्याय की आधारशिला भी है। वर्षों से खाली पड़े पद सामाजिक प्रतिनिधित्व में असंतुलन पैदा करते हैं और युवाओं के बीच विश्वास-संकट को बढ़ाते हैं।
सरकार का वादा और ज़मीन हकीकत
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने चुनावी संकल्प पत्र-2024 और उसके बाद अपने वक्तव्यों में युवाओं को व्यापक रोज़गार अवसर देने की बात कही थी। अभ्यर्थियों का कहना है कि घोषणाएँ होती हैं, भर्तियाँ घोषित भी हो जाती हैं, मगर कई बार विज्ञापन, परीक्षा, परिणाम, दस्तावेज़ सत्यापन और नियुक्ति आदेश- इन चरणों में ऐसी देरी होती है कि पूरा कैलेंडर खिसक जाता है। इससे अगली भर्तियों का चक्र भी आगे बढ़ जाता है और बैकलॉग का पहाड़ जस का तस बना रहता है।
क्यों नहीं घट रहा बैकलॉग?
भर्ती कैलेंडर का पालन न होना: कई विभाग नियमित वार्षिक कैलेंडर जारी नहीं कर पाते या जारी होने के बाद भी समयबद्धता नहीं रह पाती।
विधिक अड़चनें और अभ्यर्थी-हित याचिकाएँ: परीक्षा-पेपर लीक, आरक्षण-रोस्टर, पात्रता या आयु-सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर न्यायालयीन स्थगन प्रक्रियाएँ लंबी खिंच जाती हैं।
वित्तीय स्वीकृतियों में देरी: कई पद सृजित तो हैं, पर बजटीय स्वीकृति और नियुक्ति-आदेश में समय लगता है।
विभागीय समन्वय की कमी: शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय जैसे बड़े विभागों में समन्वय की कमी से काउंसलिंग/पोस्टिंग प्रक्रियाएँ लटक जाती हैं।
निजीकरण/ठेका मॉडल का विस्तार: कुछ सेवाओं में आउटसोर्सिंग बढ़ने से नियमित पदों पर सीधी भर्ती धीमी पड़ती है।
शिक्षा विभाग पर सबसे बड़ा बोझ
स्कूल शिक्षा विभाग में हज़ारों शिक्षकों की कमी कई स्तरों पर असर डालती है, शिक्षण की गुणवत्ता, विद्यालयों का संचालन, और ग्रामीण आदिवासी अंचलों में विषय-विशेषज्ञों की उपलब्धता। वर्ग-1, वर्ग-2 और वर्ग-3 शिक्षक पद वर्षो से खाली है, इससे न सिर्फ छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है बल्कि आरक्षित वर्गों के योग्य अभ्यर्थियों का करियर प्रगति भी रुकती है।
निजी क्षेत्र का सिमटता अवसर-क्षेत्र
मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर उद्योग निवेश, स्टार्टअप-इकोसिस्टम, और सेवा क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता के रोजगार अपेक्षानुसार नहीं बढ़ पाए। नए निवेश की घोषणाएँ होती हैं, पर उनका रोज़गार में अनुवाद समय लेता है। परिणामस्वरूप, निजी नौकरियों के भरोसे बैठे युवाओं को भी स्थिर, कौशलसम्मत अवसर कम मिलते हैं। सरकार की कौशल-विकास योजनाएँ हैं, पर तब तक जब तक स्थायी पद नहीं निकलते, युवाओं की प्रतीक्षा बनी रहती है।
द मूकनायक से बातचीत में आदिवासी एक्टिविस्ट एडवोकेट सुनील आदिवासी ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश में खाली पड़े बैकलॉग पदों को भरने की कोई मंशा सरकार की नहीं दिखती। उन्होंने कहा, “सरकार जानबूझकर बैकलॉग भर्ती को टाल रही है। जिन पदों पर नियमित भर्ती होनी चाहिए, वहां कॉन्ट्रेक्ट और ठेका प्रणाली थोप दी गई है। इससे न सिर्फ आरक्षित वर्गों के हक का हनन हो रहा है, बल्कि युवाओं के भविष्य के साथ खुला खिलवाड़ किया जा रहा है।” उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार ईमानदार होती, तो बैकलॉग पद वर्षों तक खाली न रहते।
बैकलॉग आखिर है क्या?
सरकार हर भर्ती में आरक्षण-रोस्टर के अनुसार पद तय करती है। कई बार किसी भर्ती-वर्ष में आरक्षित श्रेणी के पद भर नहीं पाते तो वे बैकलॉग बन जाते हैं- यानी ऐसे लंबित आरक्षित पद जिन्हें अगली भर्तियों में प्राथमिकता से भरना चाहिए। अगर वर्षों तक बैकलॉग नहीं भरे जाते, तो आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व और करियर-मार्ग दोनों प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि बैकलॉग भरना कानूनी-नीतिगत और सामाजिक न्याय- दोनों लिहाज़ से आवश्यक है।