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दिन में मज़दूरी, रात में टार्च जलाकर पढ़ाई, आदिवासी परिवार की रोहिणी ने JEE पास कर NIT में बनाई जगह

नई दिल्ली: तमिलनाडु के एक छोटे से गाँव की 18 वर्षीय रोहिणी की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए एक जीती-जागती मिसाल बन गई है, जो मुश्किलों के बावजूद बड़े सपने देखते हैं। एक बेहद ग़रीब आदिवासी परिवार से आने वाली रोहिणी ने साबित कर दिया है कि अगर इरादे फौलादी हों, तो कोई भी बाधा आपकी मंज़िल नहीं रोक सकती। दिन में खेतों में पसीना बहाने और रात में टार्च की रोशनी में पढ़ने वाली इस बेटी ने देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक, JEE Main, को पास कर NIT त्रिची में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए दाख़िला हासिल किया है।

संघर्ष भरा था जीवन, खेतों में करती थीं काम

रोहिणी तमिलनाडु के चिन्ना इल्लूपुर गाँव की रहने वाली हैं। उनके माता-पिता, मथिअज़गन और वसंती, खेतिहर मज़दूर हैं। पिता मथिअज़गन काम के लिए केरल जाते हैं, जबकि माँ वसंती गाँव के ही खेतों में काम करती हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि कई बार दो वक़्त का खाना-पानी जुटाना भी एक चुनौती बन जाता था।

रोहिणी ने बहुत कम उम्र में ही परिवार की मदद के लिए काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन उनके दिल में ग़रीबी के इस चक्र से बाहर निकलने का सपना था। उन्होंने जल्दी ही समझ लिया कि केवल शिक्षा ही उनकी ज़िंदगी बदल सकती है। इसलिए, वह दिन में मज़दूरी करतीं और रात में अपनी पढ़ाई के लिए वक़्त निकालतीं।

बिना कोचिंग के मिली शानदार सफलता

उनकी यह असाधारण मेहनत तब रंग लाई, जब उन्होंने JEE Main 2024 की परीक्षा में 73.8 प्रतिशत अंक हासिल किए। इस शानदार प्रदर्शन के आधार पर उन्हें NIT त्रिची जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में प्रवेश मिला है। यह उपलब्धि इसलिए भी ख़ास है क्योंकि JEE को दुनिया की सबसे कठिन प्रवेश परीक्षाओं में गिना जाता है।

रोहिणी की सफलता इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि उनके पास तैयारी के लिए न तो कोई महँगी कोचिंग थी, न ही लाइब्रेरी या इंटरनेट जैसी आधुनिक सुविधाएँ। वह दिन भर के काम से थककर लौटने के बाद रात में टॉर्च की रोशनी में किताबें पढ़ती थीं। उन्होंने अपने स्कूल की लाइब्रेरी और शिक्षकों की मदद से ही भौतिकी, रसायन और गणित जैसे विषयों की तैयारी की।

समुदाय की पहली इंजीनियर, स्कूल ने दिया पूरा साथ

रोहिणी अपने आदिवासी समुदाय की पहली लड़की हैं जो NIT त्रिची में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने पहुँची हैं। उन्होंने चिन्ना इल्लूपुर स्थित सरकारी आदिवासी आवासीय विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। तमिलनाडु सरकार ने उनकी फ़ीस और शिक्षा से जुड़े सभी ख़र्चों का वहन किया।

रोहिणी अपनी इस सफलता का श्रेय अपने स्कूल के हेडमास्टर और शिक्षकों को देती हैं। उन्होंने मीडिया को बताया कि अगर उनके शिक्षकों का समर्थन और प्रोत्साहन नहीं मिलता, तो शायद वह यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पातीं। पहले ही प्रयास में JEE Mains पास करके रोहिणी ने न सिर्फ़ अपने परिवार, बल्कि पूरे गाँव और समुदाय का नाम रौशन किया है।

युवाओं के लिए बनीं प्रेरणास्रोत

रोहिणी की यह यात्रा सिर्फ़ एक लड़की की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन सभी युवाओं के लिए एक सबक है जो संसाधनों की कमी का रोना रोते हैं। ग़रीबी और तमाम अभावों के बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण के दम पर NIT जैसे शीर्ष संस्थान में अपनी जगह बनाई।

रोहिणी वर्तमान में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं और भविष्य में एक सफल इंजीनियर बनकर अपने परिवार को इस ग़रीबी से बाहर निकालना और समाज के लिए कुछ बड़ा करना चाहती हैं। उनकी कहानी सिखाती है कि अगर आप अपने लक्ष्यों के प्रति ईमानदार हैं, तो मुश्किलें आपको रोक नहीं सकतीं।

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