जोधपुर- राजस्थान के जोधपुर शहर में बुधवार को वाल्मीकि समाज ने सफाई कर्मियों की भर्ती के मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन किया . यहाँ मौके पर एक शख्स कमर से झाड़ू और गले में मटकी लगाये प्रदर्शन करते दिखे जो सभी के लिए कौतुहल का विषय बने, जिन्हें देख कर कई लोग ठिठक कर रुके, कुछ हंस कर आगे बढ़ गए तो कुछ ने रुक कर उनसे कारण पूछा कि भला आपने कमर में झाड़ू क्यों बाँधी है ? गले में मटकी क्यों टांगी है?
इस अनूठे ढंग से प्रदर्शन करने वाले 60 वर्षीय प्रकाश विद्रोही अखिल भारतीय वाल्मीकि महासभा जोधपुर के जिलाध्यक्ष हैं जो राजस्थान सरकार द्वारा की जाने वाली सफाई कर्मी भर्ती प्रक्रिया में वाल्मीकि समाज को प्राथमिकता देने के लिए संघर्षरत हैं. प्रकाश का कहना है कि सफाई का काम सदियों से वाल्मीकि समुदाय ही करता आया है इसलिए इन पदों पर भर्ती और नौकरी का पहला अधिकार भी समुदाय के युवाओं का है, उन्हें इस अधिकार से वंचित किया गया तो इनका जीवन स्तर, रहन सहन और शैक्षिक उन्नयन कभी नहीं होगा. द मूकनायक ने प्रकाश विद्रोही से विस्तृत बात कर वाल्मीकि समुदाय की पीड़ा और नाराजगी को जानने का प्रयास किया. प्रकाश वाल्मीकि समुदाय से हैं और नानकदेव को मानने वाले मजहबी सिख हैं.
प्रकाश कहते हैं, " सदियों पहले बाबा साहब ने हम वाल्मीकियों को जिस स्थिति से उठाया था (यानी वह जमाना जब कुछ जाति , जैसे महार, जिस जाति में आंबेडकर पैदा हुए थे, वे लोग अपनी कमर में झाड़ू बांधते थे ताकि अपने प्रदूषित पदचिन्हों को साफ़ करते चले और गले में मटकी लटकाते थे ताकि उनका थूक नीचे गिरकर जमीन अपवित्र ना कर दें) , आज मनुवादी सरकारें हमें उसी दशा में वापस धकेलने का प्रयास कर रही हैं-यही बात समुदाय को समझाने के लिए मैंने झाड़ू और मटकी बाँधी हैं. "
प्रकाश इस वर्ष जुलाई में रेलवे से ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ट के पोस्ट से रिटायर हुए हैं और बीते कई वर्षों से सामाजिक चेतना बढ़ाने और दलित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं. वर्ष 1991 में सफाई कर्मी के पद पर भर्ती हुए प्रकाश कहते हैं कि ये बाबा साहब की ही बदौलत है कि मैं एक नॉन मेट्रिक व्यक्ति होकर भी 15 साल की नौकरी के अनुभव के आधार पर विभागीय पदोन्नति परीक्षा में बैठने की पात्रता हासिल कर सका और सफाई कर्मी से लेकर बाबू और उससे आगे कार्यालय अधीक्षक तक का सफ़र तय कर पाया.
विद्रोही ने राजस्थान में बीते कुछ समय से वाल्मीकि समाज द्वारा सफाई कर्मी भर्ती प्रक्रिया को लेकर नाराजगी और चलाए जा रहे आन्दोलन की पूरी वजह बताई. विद्रोही ने बताया कि प्रदेश में सफाई कर्मी भर्ती 2024 और उससे पहले गहलोत सरकार के समय 2018 में निकाली गई. इस बार भर्ती के लिए प्रदेशभर में 9 लाख से ज्यादा आवेदन आए। आवेदकों में गैर-वाल्मीकि समाज के युवा भी बड़ी तादाद में थे।
प्रकाश कहते हैं , " 2018 से पहले तक सफाई कर्मी पदों पर केवल वाल्मीकि समाज के लोग ही भर्ती के लिए आवेदन करते थे. इसकी वजह यह है कि पहले सफाई का काम बहुत कठिन होता था, नालों और सीवर की सफाई हाथों से होती थी लेकिन कुछ वर्षों से सफाई काम में आधुनिकीकरण हो गया, मशीनें और रोबोट भी आ गये तो काम आसान हुआ. यही वजह है कि सवर्ण वर्ग के युवा भी सफाई कर्मी भर्ती में आवेदन करने लगे हैं."
प्रकाश कहते हैं, " सरकारी नौकरी में फायदे बहुत हैं, समय पर तनख्वाह के साथ कई सुविधाए, बच्चों को पढ़ाने और घर- वाहन लेने के लिए लोन आदि भी मिलते हैं". प्रकाश कहते हैं कि यही वजह थी कि वाल्मीकि समुदाय के लोग तरक्की करने लगे, हमारे बच्चे भी शिक्षा पाने लगे लेकिन मनुवादी सरकारों को यह रास नहीं आया- इसलिए उन्होंने सफाई कर्मचारियों की भर्ती में भी आरक्षण लागू कर दिया ताकि गैर वाल्मीकि समाज के लोग भी इसमें प्रवेश कर लें. "
प्रकाश कहते हैं कि नौकरी प्राप्त करने के बाद गैर वाल्मीकि समुदाय के कर्मी सफाई का मूल काम नहीं करते और वे अफसरों के निजी काम या कार्यालयों में पोस्टिंग ले लेते हैं, ग्राउंड पर अन्तत: वाल्मीकि समुदाय के लोगों को ही काम करना पड़ता है. यह समुदाय के साथ अन्याय है.
वाल्मीकि समाज का आन्दोलन
सफाई कर्मचारी भर्ती में प्राथमिकता देने की मांग को लेकर वाल्मीकि समाज ने आंदोलन छेड़ा हुआ था। बताया जाता है कि वाल्मीकि समाज की मांग के बाद राज्य सरकार ने भर्ती प्रक्रिया में बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है।
राजस्थान में करीब 24 हजार पदों पर होने वाली सफाई कर्मचारियों की भर्ती को रद्द कर दिया गया है. इस संबंध में बुधवार को स्वायत्त शासन विभाग की ओर से 29 सितंबर को जारी भर्ती विज्ञप्ति को वापस लेने के आदेश जारी किए गए.
यह तीसरी बार है जब इस भर्ती को रोका गया है. हाल ही में संयुक्त वाल्मीकि एवं सफाई श्रमिक संघ और प्रशासन के बीच अनुभव प्रमाण पत्र नहीं बनने के कारण जयपुर के हेरिटेज और ग्रेटर नगर निगम में सफाई कर्मचारियों की भर्ती स्थगित करने का समझौता हुआ था.
सरकारी संस्थानों में भेदभाव के बदलते रूप: विद्रोही प्रकाश का अनुभव
तीन दशकों की राजकीय सेवा के दौरान उनके साथ हुए किस्सी प्रकार के भेदभाव के अनुभाव को लेकर किये सवाल पर प्रकाश कहते हैं कि वाल्मीकि समाज को पहले भी और आज भी जगह जगह भेद भाव का सामना करना पड़ता है- बस तरीके बदल जाते हैं. अपने व्यक्तिगत अनुभव शेयर करते हुए विद्रोही बताते हैं की जब वे सफाई कर्मी से प्रमोट होकर 1998 में रेलवे अस्पताल में चपरासी के पद पर काम करने गया वहां जातिगत भेदभाव का विरोध किया.
विद्रोही बताते हैं, "सरकारी अस्पताल होने के बावजूद हमें फ्रिज में पानी या दूध रखने की अनुमति नहीं थी। शिकायत करने के बाद ही यह अधिकार मिला।" दफ्तरों में चाय के कप का उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि पहले वाल्मीकि समाज के लिए अलग कप रखे जाते थे। आज भले ही ऐसा न हो, लेकिन प्लास्टिक और पेपर कप की व्यवस्था भी कहीं न कहीं भेदभाव का आधुनिक रूप दर्शाती है।
बाबा साहेब के आदर्शों के प्रति समर्पित, साहित्य और समाज सुधार में अग्रसर
प्रकाश विद्रोही बाबा साहेब आंबेडकर के अनन्य समर्थक हैं और उनके आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। वे हिन्दू धर्म के रीति रिवाजों को नहीं मानते हैं और कहते हैं कि वे दलित समाज के देवी-देवताओं पर आस्था रखते हैं जिन्हें मांसाहार का भोग लगाया जाता है. वे मानते हैं मनुवादियों ने समुदाय के लोगों को धर्म और कुरीतियों के जरिये बाँट दिया है, आरक्षण के बावजूद दलित समाज की अपेक्षित प्रगति न होने का मुख्य कारण समाज में बिखराव और संगठन की कमी है।
प्रकाश का कहना है, "आज कई संगठन बाबा साहेब के नाम का उपयोग केवल अपने निजी स्वार्थों के लिए कर रहे हैं। ये संगठन उनके वास्तविक आदर्शों पर चलने के बजाय समाज को दिशाहीन बना रहे हैं। यही कारण है कि दलित समाज अभी भी अपने अधिकारों और अवसरों में पिछड़ा हुआ है।"
साहित्य से गहरा जुड़ाव रखने वाले प्रकाश विद्रोही अपने खाली समय में कविताएं, विचारोत्तेजक लेख, और शायरी लिखते हैं। उनके पास रचनाओं का एक समृद्ध संग्रह है, जिसे वे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करना चाहते हैं। उनके साहित्यिक कार्य न केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति हैं, बल्कि सामाजिक जागरूकता बढ़ाने का एक माध्यम भी हैं।