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Kerala: जातिवादी प्रधानाध्यापिका के खिलाफ FIR; बच्चों को जातिसूचक नामों से पुकारती थीं, रंग का उड़ाती उपहास

कायमकुलम- केरल के कायमकुलम स्थित पेरकाड एमएससी लोअर प्राइमरी स्कूल की प्रधानाध्यापिका ग्रेसी पर अनुसूचित जाति के बच्चों के साथ जातिवादी व्यवहार करने और उन्हें लगातार प्रताड़ित करने के गंभीर आरोप लगे हैं। इस मामले में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है जिसकी जांच कायमकुलम के डीवाईएसपी द्वारा की जा रही है। स्कूल में मात्र नौ छात्र हैं, जिनमें से अधिकांश अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं। ग्रेसी स्कूल की एकमात्र स्थायी शिक्षिका हैं जबकि तीन अनुबंधित कर्मचारी भी वहां कार्यरत हैं।

माता-पिता द्वारा पुलिस को दी शिकायत में बताया कि प्रधानाध्यापिका ग्रेसी कक्षा के दौरान दलित बच्चों को उनकी जाति से जुड़े अपमानजनक नामों से पुकारती थीं और उनकी त्वचा के रंग का मजाक उड़ाती थीं। शिकायत में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि उन्होंने एक बच्चे को "करिन्कुरंगु" (काला बंदर) और "करिवेडन" (जनजातीय समुदाय के लिए प्रयुक्त अपमानजनक शब्द ) आदि संबोधित किया। इसके अलावा एक घटना में जब एक बच्चे ने ब्लैकबोर्ड पर गलत लिख दिया तो ग्रेसी ने उसे इतनी बेरहमी से पीटा कि उसके शरीर पर चोट के निशान पड़ गए।

जब एक माँ ने प्रधानाध्यापिका के इस दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई तो ग्रेसी ने उन्हें भी जातिसूचक गालियाँ देते हुए कहा, "क्या तुम पुलायर (दलित समुदाय) नहीं हो? तुम लोग हमेशा ऐसा ही व्यवहार करते हो।" उसने यह भी दावा किया कि माता-पिता चाहे जितनी भी शिकायत कर लें, उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। एक अन्य घटना में ग्रेसी ने एक बच्चे को पूरे दिन पेशाब करने की अनुमति नहीं दी जिससे उसे गंभीर शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी।

अभिभावकों ने मीडिया को बताया कि यह पहली बार नहीं था जब ग्रेसी ने इस तरह का व्यवहार किया। पहले भी उन्होंने दलित छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया था, लेकिन अन्य शिक्षकों के समझाने पर माता-पिता ने शिकायत नहीं की। हालाँकि जब यह उत्पीड़न बर्दाश्त से बाहर हो गया, तो उन्होंने पुलिस में केस दर्ज कराया। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने तुरंत एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई शुरू की। हालांकि पीड़ित बच्चे की माँ ने एक स्थानीय मलयालम न्यूज़ चैनल को बताया कि शुरुआत में पुलिस ने प्रधानाध्यापिका का पक्ष लिया और उन पर केस वापस लेने का दबाव बनाया।

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