भोपाल — मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में दलित महिलाओं के खिलाफ हो रही बर्बरता को उजागर करने वाला एक और दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। चुरहट थाना क्षेत्र के एक जंगल में टहलने गई एक दलित युवती के साथ पांच लोगों ने कथित रूप से गैंगरेप किया।
जानकारी के अनुसार, पीड़िता अपने पुरुष मित्र के साथ जंगल में तस्वीरें खींचने और टहलने गई थी। इसी दौरान दोनों को पांच लोगों ने घेर लिया। आरोपियों ने पहले युवक के सिर पर डंडे से हमला किया और फिर युवती को घसीटते हुए जंगल के अंदर ले गए।
पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसने आरोपियों से रहम की गुहार की, उनके पैर तक पकड़े, लेकिन वे नहीं पसीजे। दो आरोपियों ने उसके दोस्त को पकड़ कर रखा, जबकि बाकी तीन ने बारी-बारी से उसके साथ दुष्कर्म किया। जाते-जाते आरोपियों ने उन्हें धमकी दी कि अगर किसी से इस घटना का ज़िक्र किया तो जान से मार देंगे। दोनों के मोबाइल फोन भी छीन लिए गए।
घटना के बाद करीब दोपहर 2:30 बजे पीड़िता किसी तरह रोती-बिलखती जंगल से बाहर निकली और पास के एक निर्माण स्थल पर पहुँची। वहां मज़दूरों को उसने आपबीती सुनाई। इसके बाद स्थानीय सरपंच के पति दलवीर सिंह गोंड की मदद से पुलिस को सूचना दी गई।
पुलिस मौके पर पहुँची और जंगल में जांच के दौरान खून से सना तौलिया और संघर्ष के निशान बरामद किए। रातभर पुलिस टीमें आरोपियों की तलाश में आसपास के गांवों में छापेमारी करती रहीं।
जिला पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस घटना को “जघन्य अपराध” बताया और कहा कि पीड़िता को तुरंत मेडिकल सहायता दी गई है। अधिकारी ने माना कि क्षेत्र का दूरदराज़ होना और सीसीटीवी की अनुपस्थिति जांच में बाधा बना हुआ है, लेकिन आरोपियों को जल्द गिरफ़्तार कर सख़्त से सख़्त सज़ा दिलाई जाएगी। कुछ संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है, हालांकि अब तक कोई औपचारिक गिरफ़्तारी नहीं हुई है।
इस वीभत्स घटना के बीच मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने महिलाओं के खिलाफ दलितों और आदिवासियों पर हो रहे अपराधों के चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं।
सरकार के अनुसार, 2022 से 2024 के बीच राज्य में 7,418 रेप के मामले SC/ST महिलाओं के साथ दर्ज किए गए — यानी औसतन हर दिन 7 रेप। इसी अवधि में 338 गैंगरेप और 558 हत्याएं भी दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ दर्ज की गईं।
ध्यान देने वाली बात है कि मध्य प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 38% हिस्सा दलित और आदिवासी समुदायों से आता है, जो इन आंकड़ों को और भी चिंताजनक बनाता है।
पुलिस और राज्य सरकार पर तेजी से कार्रवाई करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि हाशिए पर खड़ी महिलाओं की सुरक्षा के लिए सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर ठोस बदलाव की जरूरत है।