दुष्कर्म के आरोपी की शिकायत पर बर्खास्त हुए दलित जज को सुप्रीम कोर्ट ने किया बहाल; जातिवाद पर जस्टिस सूर्यकांत की ये बड़ी टिप्पणी!

12:32 PM May 06, 2025 | The Mooknayak

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के न्यायिक अधिकारी प्रेम कुमार को सेवा में बहाल करने का आदेश दिया, जिन्हें उनकी निम्न जाति और मोची के बेटे होने के कारण निशाना बनाया गया था। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायपालिका में जातिगत भेदभाव एक गंभीर समस्या है और इसे खत्म करना होगा। कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें प्रेम कुमार की बर्खास्तगी रद्द की गई थी।

प्रेम कुमार 26 अप्रैल 2014 को बरनाला से अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बने और अमृतसर जिला कोर्ट में नियुक्त हुए। उनके पिता मोची थे और मां मजदूरी करती थीं। जस्टिस सूर्यकांत ने उनकी मेहनत की तारीफ करते हुए कहा, "उपेक्षित समुदाय से होने के बावजूद वे मेहनत से जज बने।"

प्रेम कुमार की नियुक्ति के बाद, एक दुष्कर्म के आरोपी ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की। शिकायत में आरोप लगाया गया कि प्रेम कुमार ने वकालत के दौरान दुष्कर्म पीड़िता की ओर से समझौते के लिए संपर्क किया था और पीड़िता को 1.50 लाख रुपये दिलवाए थे। इस शिकायत के आधार पर हाईकोर्ट ने विजिलेंस जांच शुरू की और उनकी ईमानदारी को "संदिग्ध" दर्ज किया।

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प्रेम कुमार के लिए प्रदर्शन और ईमानदारी का रोलरकोस्टर मूल्यांकन नियमित हो गया और अप्रैल 2022 में, प्रशासनिक पक्ष में हाईकोर्ट ने उनकी सेवाओं को समाप्त कर दिया। अपनी गरिमा की रक्षा के लिए, कुमार ने एक रिट याचिका के माध्यम से HC के समक्ष अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी।

जनवरी 2025 में, हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया, पूर्ण न्यायालय की 7 मार्च, 2022 की सिफारिश को रद्द कर दिया और साथ ही 20 अप्रैल, 2022 के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि प्रेम कुमार की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में शुरू में अच्छा प्रदर्शन था, लेकिन शिकायत के बाद अचानक खराब हो गया। कोर्ट ने इसे भेदभाव का परिणाम माना। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रेम कुमार को तुरंत बहाल किया जाए, उनकी वरिष्ठता बरकरार रखी जाए, पूरा वेतन बकाया दिया जाए और सतर्कता जांच खत्म की जाए।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "यह कब तक चलेगा? उन्हें सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे निम्न जाति से हैं। हाईकोर्ट को अपने अधिकारियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए।" यह फैसला न्यायपालिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ मजबूत संदेश देता है।