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IIM Bangalore जातिगत भेदभाव मामले में आरोपियों को सिटी सिविल कोर्ट से अंतरिम सुरक्षा नहीं; अग्रिम जमानत पर सुनवाई 31 दिसंबर तक स्थगित

बेंगलुरु- आईआईएम बेंगलुरु के अधिकारियों और प्रोफेसरों पर जातिगत भेदभाव के आरोपों को लेकर गुरुवार को बेंगलुरु सिटी सिविल कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई।

मामला माईको लेआउट पुलिस स्टेशन में एफआईआर नंबर 0467/2024 के तहत दर्ज है। इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2014 और भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धाराओं के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

आईआईएम बेंगलुरु के निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन और सात प्रोफेसर डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. सैनेश जी, डॉ. श्रीनिवास प्रख्य, डॉ. चेतन सुब्रमणियन, डॉ. आशीष मिश्रा, डॉ. श्रीलता जोन्नालगड्डा और डॉ. राहुल डे के विरूद्ध एक दलित प्रोफसर डॉ. गोपाल दास पर जातिगत उत्पीड़न और भेदभाव के आरोप हैं। एफआईआर में एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) तथा बीएनएस की धारा 351(2) और 351(3) के तहत आरोप लगाए गए हैं।

आरोपियों ने 23 दिसंबर को अग्रिम जमानत याचिकाएं दायर की थीं, जिन पर गुरुवार को सुनवाई हुई। जानकारी के अनुसार अदालत ने बिना किसी अंतरिम सुरक्षा के, सुनवाई को 31 दिसंबर तक स्थगित कर दिया। सुनवाई के दौरान आईआईएम की ओर से वकील ने तर्क दिया कि किसी भी प्रतिकूल कार्रवाई से छात्रों की पढ़ाई और सेमेस्टर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

यह पहली बार है जब आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के वर्तमान निदेशक के खिलाफ जातिगत भेदभाव का मामला दर्ज किया गया है।

जब मूकनायक ने इस मुद्दे और कार्यवाही की स्थिति पर आगे स्पष्टीकरण के लिए डीसीपी सारा फातिमा से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा, "हम कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के अपलोड होने का इंतजार कर रहे हैं।"

गुरुवार को हुई अग्रिम जमानत की सुनवाई के बारे में विशेष रूप से पूछे जाने पर, डीसीपी फातिमा ने कहा, "मैं विवरण का पता लगाऊंगी।"

द मूकनायक ने आईआईएम बैंगलोर के निदेशक को अग्रिम जमानत कार्यवाही के बारे में विवरण मांगने के लिए एक ईमेल भी भेजा। हालाँकि, अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।

ये है पूरा मामला

मामला प्रोफेसर गोपाल दास से जुड़ा है, जो IIT खड़गपुर के स्नातक और मार्केटिंग के globally recognized scholar हैं। उन्होंने अप्रैल 2018 में IIM बैंगलोर में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में जॉइन किया था। दास, जो दलित समुदाय से हैं, ने आरक्षण का लाभ नहीं लिया है ।

अपने उत्कृष्ट अकादमिक रिकॉर्ड के बावजूद, दास ने आरोप लगाया कि उन्हें अपनी जाति के कारण संस्थागत उत्पीड़न और अवसरों से वंचित किया गया।

जनवरी 2024 में, प्रोफेसर दास ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की, जब वे आईआईएम बैंगलोर की यात्रा पर थीं। इस मुलाकात में, और बाद में एक औपचारिक पत्र के माध्यम से, दास ने अपने साथ हुए भेदभावपूर्ण व्यवहार के बारे में विस्तार से बताया।

इनमें उन्होंने बताया कि उनकी दलित पहचान के कारण उन्हें संस्थागत गतिविधियों से बाहर रखा गया, वैकल्पिक पाठ्यक्रम और पीएचडी कार्यक्रमों से हटने के लिए मजबूर किया , और संस्थागत संसाधनों तक पहुंचने से प्रतिबंधित किया गया था। दास ने यह भी बताया कि उनकी जाति का खुलासा बड़े पैमाने पर ईमेल के माध्यम से किया गया था, जिससे उन्हें अपमान और लक्षित उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें "निम्न जाति" का सदस्य बताया गया था, जो उनकी गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन था। प्रोफेसर दास की शिकायत के बाद, राष्ट्रपति कार्यालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को एक औपचारिक जांच शुरू करने का निर्देश दिया।

मार्च 2024 में, सिविल राइट्स एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने अपनी जांच शुरू की, जिसमें जातिगत भेदभाव के साक्ष्य मिले। हालांकि, दास ने दावा किया कि जांच शुरू होने के बाद उन्हें और भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

मूकनायक ने किया डीसीआरई रिपोर्ट में भेदभाव की पुष्टि होने का खुलासा

एफआईआर 19 दिसंबर को द मूकनायक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के बाद दर्ज की गई थी। रिपोर्ट में सिविल राइट्स एनफोर्समेंट निदेशालय (डीसीआरई) की जांच के निष्कर्ष उजागर किए गए थे, जिसमें आईआईएम-बी के निदेशक सहित अन्य लोगों द्वारा जातिगत उत्पीड़न की पुष्टि हुई थी। इस मामले में 26 नवंबर 2024 को DCRE के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) ने कर्नाटक समाज कल्याण विभाग को रिपोर्ट सौंपी थी.

डीसीआरई रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए कर्नाटक समाज कल्याण विभाग ने बेंगलुरु पुलिस आयुक्त को 9 दिसंबर, 2024 को आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे लेकिन कथित रूप से उपरी दबाव के चलते पुलिस विभाग ने मामला दर्ज नहीं किया जिससे महकमे की खूब आलोचना हुई।

द मूकनायक की रिपोर्ट के बाद, बहुजन संगठनों ने त्वरित कार्रवाई की मांग तेज कर दी। बढ़ते दबाव के बीच शुक्रवार 20 दिसंबर को आखिरकार एससी-एसटी एक्ट और बीएनएस 2023 की कड़ी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

इस मामले में 22 दिसंबर को मूकनायक द्वारा संपर्क करने पर आईआईएम बेंगलुरु निदेशक की ओर से भेजे गये स्टेटमेंट में बताया गया: "आरोप निराधार और झूठे हैं। यह मामला 20.12.2024 को कर्नाटक उच्च न्यायालय में माननीय न्यायमूर्ति हेमंत चंदन गौड़र के समक्ष सुनवाई के लिए आया। माननीय न्यायालय ने, पक्षों को सुनने के बाद, कहा कि वह प्रथम दृष्टया इस विचार का है कि DCRE को इस मामले की जांच का अधिकार नहीं हो सकता है और इसलिए प्रतिवादियों को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई और दबावकारी कदम उठाने से रोकने का आदेश पारित किया।"

आदेश की कॉपी के लिए मूकनायक द्वारा पूछने पर 25 दिसंबर को आईआईएम ने एक और बयान मेल किया जिसमे कहा कि हाईकोर्ट अवकाश पर है और आदेश अपलोड होने के बाद ही उसे देखा जा सकेगा।

जातिगत भेदभाव के आरोपों के बीच, बहुजन कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि निदेशक डॉ. कृष्णन ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (BoG) के लिए नामांकन प्रक्रिया में भी अनुचित भूमिका निभाई। बोर्ड के लिए चुने गए शीर्ष तीन नामांकनों में दो आरोपी प्रोफेसरों - डॉ. चेतन सुब्रमणियन और डॉ. श्रीलता जोन्नालगड्डा - को शामिल किया गया है।

आईआईएम संशोधन अधिनियम के अनुसार, बोर्ड के सदस्यों का साफ छवि और आपराधिक मामलों से मुक्त होना अनिवार्य है। लेकिन इस बार निदेशक द्वारा बनाई गई पात्र कैंडिडेट्स की लिस्ट में करीब 40 नाम थे जिनमे वे सभी प्रोफेसरों के नाम भी थे जो एफआईआर नंबर 0467/2024 में आरोपियों के तौर पर नामजद हैं, इतना ही नहीं बल्कि अंतिम नामांकन लिस्ट में दो आरोपी हैं जो आईआईएम संशोधन अधिनियम के तहत सही नहीं है । कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।

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