नई दिल्ली- दलित इतिहास माह (Dalit History Month) के दौरान जहाँ दलित समुदाय के योगदान और उपलब्धियों को याद किया जाता है, वहीं कार्डिनल एंथोनी पूला एक ऐसा नाम है जिन्होंने इतिहास रचा है।
अगस्त 2022 में, पोप फ्रांसिस ने दो भारतीय बिशप्स को कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स में नियुक्त किया— गोवा और दमन के आर्कबिशप फिलीप नेरी फेराओ और हैदराबाद के आर्कबिशप एंथोनी पूला। एंथोनी पूला पहले दलित ईसाई कार्डिनल बने, जो भारत और वैश्विक कैथोलिक चर्च के लिए एक ऐतिहासिक पल था।
यह रिपोर्ट पूला के असाधारण जीवन, उनकी नियुक्ति के महत्व और उनकी प्रतिष्ठित भूमिका पर प्रकाश डालती है।
29 मई 2022 को, पोप फ्रांसिस ने 21 नए कार्डिनल्स की घोषणा की, जिनमें आर्कबिशप एंथोनी पूला भी शामिल थे। इसके साथ ही, वे पहले दलित ईसाई कार्डिनल बन गए। साथ ही, वे पहले तेलुगु व्यक्ति भी हैं जिन्हें यह उपाधि मिली है। कार्डिनल का पद कैथोलिक चर्च में पोप के बाद सबसे ऊँचा माना जाता है।
27 अगस्त 2022 को वेटिकन स्थित सेंट पीटर बेसिलिका में एक समारोह आयोजित किया गया, जहाँ पूला को औपचारिक रूप से कार्डिनल बनाया गया।
एंथोनी पूला का जन्म 15 नवंबर 1961 को आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के चिंदुकुर गाँव में एक दलित परिवार में हुआ। गरीबी और समाजिक भेदभाव के बीच पले-बढ़े पूला ने अपनी धार्मिक शिक्षा नुजविड सेमिनरी से शुरू की और बाद में बेंगलुरु के सेंट पीटर पोंटिफिकल सेमिनरी से धर्मशास्त्र की पढ़ाई की।
20 फरवरी 1992 को उन्हें कडपा डायोसीज के लिए पादरी बनाया गया। इसके बाद, उन्होंने हमेशा पिछड़े और दलित समुदायों की सेवा पर ध्यान दिया। 19 अप्रैल 2008 को उन्हें कुरनूल का बिशप बनाया गया। बाद में 19 नवंबर 2020 को वे हैदराबाद के आर्कबिशप बने।

कार्डिनल की भूमिका क्यों है इतनी महत्वपूर्ण?
कार्डिनल्स को "चर्च के राजकुमार" भी कहा जाता है। ये कैथोलिक चर्च के सबसे प्रभावशाली लोगों में से होते हैं और पोप के मुख्य सलाहकारों की भूमिका निभाते हैं। इनका सबसे महत्वपूर्ण काम है— नए पोप का चुनाव करना।
वर्तमान में, कार्डिनल्स की कुल संख्या 242 है, जिनमें से 134 पोप चुनने के अधिकारी (80 साल से कम उम्र के) हैं। एंथोनी पूला भी इन्हीं में शामिल हैं, जिसका मतलब है कि वे अगले पोप के चुनाव में भाग लेंगे।
पोप फ्रांसिस ने पूला को यह पद देकर दलित और तेलुगु समुदाय को वैश्विक स्तर पर प्रतिनिधित्व दिया है। यह नियुक्ति चर्च में समानता और समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
दलित ईसाइयों के लिए एक बड़ी उम्मीद
भारत में दलित ईसाइयों को अक्सर चर्च के भीतर भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत के 1.9 करोड़ कैथोलिक्स में से एक बड़ी संख्या दलित ईसाइयों की है, लेकिन चर्च के उच्च पदों पर उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम रहा है। पूला की यह नियुक्ति इस स्थिति को बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
दलित इतिहास माह के दौरान, पूला की कहानी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है। उनका यह सफर दिखाता है कि ईमानदारी, सेवा और विश्वास से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।
एक छोटे से गाँव से निकलकर वेटिकन तक का सफर तय करने वाले कार्डिनल एंथोनी पूला का जीवन संघर्ष, विश्वास और समर्पण की मिसाल है। दलित समुदाय से आने वाले पहले कार्डिनल के रूप में उनकी नियुक्ति न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह समानता और न्याय के लिए चर्च की प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।
आज वे न सिर्फ पोप के सलाहकार हैं, बल्कि दुनिया भर के करोड़ों दलित ईसाइयों की आवाज़ भी बने हुए हैं। उनकी यह उपलब्धि साबित करती है कि दृढ निश्चय और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।