नई दिल्ली। उत्तर भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब यूजीसी-नेट/जेआरएफ (UGC-NET/JRF) उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के लिए पीएचडी प्रवेश में CRET (Combined Research Entrance Test) परीक्षा की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है।
यह निर्णय अचानक नहीं, बल्कि एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन के दबाव में लिया गया, जिसने वर्षों से चली आ रही एक नियमविरुद्ध व्यवस्था की परतें उधेड़ दीं।
आरटीआई ने खोली वर्षों की खामोशी
जानकारी के अनुसार, आरटीआई एक्टविस्ट ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत विश्वविद्यालय प्रशासन से यह प्रश्न पूछा कि जब यूजीसी के 2018 के नियम स्पष्ट रूप से NET/JRF योग्य अभ्यर्थियों को प्रवेश परीक्षा से छूट देते हैं, तो आखिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी अब तक इन अभ्यर्थियों को CRET जैसी परीक्षा में क्यों सम्मिलित करवा रही थी?
आरटीआई आवेदन में मांगे गए दस्तावेजों में शामिल थे:
CRET परीक्षा की कानूनी वैधता।
यूजीसी या शिक्षा मंत्रालय से मिली कोई स्वीकृति।
पिछले दो वर्षों में NET योग्य छात्रों का प्रवेश आंकड़ा।
भविष्य की प्रवेश नीति की कोई बदलाव योजना।
यह आवेदन विश्वविद्यालय के लिए एक आईना साबित हुआ। महज 10 दिनों के भीतर विश्वविद्यालय ने अपने रुख में बदलाव करते हुए यह स्वीकारा कि वो यूजीसी के रेगुलेशन का उल्लंघन कर रहा था।
आरटीआई के जवाब सामने आने के कुछ ही दिनों में दो मीडिया संस्थानों ने इस मुद्दे पर रिपोर्ट प्रकाशित की, जिससे सार्वजनिक दबाव और तेज हुआ।
इस दबाव के बीच विश्वविद्यालय ने नई नीति घोषित की — अब UGC-NET और JRF योग्य उम्मीदवारों का मूल्यांकन दो स्तरों पर किया जाएगा:
उच्च स्कोर वाले अभ्यर्थी सीधे इंटरव्यू प्रक्रिया के लिए पात्र होंगे।
अन्य NET योग्य अभ्यर्थियों को 70:30 फॉर्मूले (70% NET स्कोर + 30% इंटरव्यू) के आधार पर परखा जाएगा।
वर्षों से छात्रों पर अनावश्यक बोझ
अब सवाल यह है कि जब 2018 से ही यूजीसी स्पष्ट कर चुका था कि NET योग्य छात्रों को अतिरिक्त प्रवेश परीक्षा से छूट है, तो आखिर क्यों विश्वविद्यालय CRET परीक्षा को अनिवार्य बनाए हुए था?
कई छात्र संगठनों ने अतीत में CRET परीक्षा को खत्म करने की मांग की थी, लेकिन प्रशासन ने कभी गंभीरता से विचार नहीं किया। यह तब तक जारी रहा जब तक एक नागरिक ने जवाबदेही की मांग नहीं की।
क्या यह प्रवेश प्रणाली एक "व्यवसाय" बन गई थी?
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी आंतरिक परीक्षाओं का प्रचलन कुछ संस्थानों में केवल योग्यता परीक्षण का माध्यम नहीं, बल्कि "प्रवेश व्यवस्था का व्यापार" बन गया था। आवेदन शुल्क, कोचिंग संस्थानों की निर्भरता, और लंबी चयन प्रक्रियाएं — ये सभी ऐसे संकेत हैं जिनसे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
यह आरटीआई क्यों है ऐतिहासिक?
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि शिक्षा संस्थानों में भी जवाबदेही और पारदर्शिता तभी आती है जब नागरिक अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हैं। अगर यह RTI दाखिल नहीं होती, तो शायद छात्र आज भी बेवजह परीक्षा देने को मजबूर होते
UGC का 2018 रेगुलेशन क्या कहता है?
NET या JRF उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को विश्वविद्यालय की आंतरिक प्रवेश परीक्षाओं से छूट दी जाएगी।
विश्वविद्यालय केवल इंटरव्यू या रिसर्च प्रपोजल के मूल्यांकन के आधार पर प्रवेश दे सकते हैं।
दोहरी परीक्षा प्रणाली लागू करना नियमों के विरुद्ध है।
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