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MP पर बढ़ता कर्ज : लाडली बहना योजना की लागत और विकास परियोजनाओं के लिए सरकार फिर ले रही कर्ज

भोपाल। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार एक बार फिर कर्ज के सहारे आर्थिक जरूरतें पूरी करने की तैयारी में है। वित्तीय वर्ष 2025-26 की शुरुआत के साथ ही राज्य सरकार 6 मई को भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से 12 वर्षों की अवधि के लिए 2500 करोड़ रुपये का कर्ज लेने जा रही है। सरकार का दावा है कि इस कर्ज का उपयोग राज्य में विकास परियोजनाओं को गति देने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा। लेकिन विपक्ष इस पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहा है और सरकार की योजनाओं को ‘घी पीने वाली नीतियां’ करार दे रहा है।

4.21 लाख करोड़ के कर्ज में दबा मध्यप्रदेश

31 मार्च 2025 की स्थिति में मध्यप्रदेश सरकार पर कुल कर्ज 4.21 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। यह आंकड़ा राज्य के आर्थिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंता उत्पन्न करता है। अकेले वर्ष 2025-26 में सरकार को करीब 29 हजार करोड़ रुपये केवल ब्याज चुकाने में खर्च करने होंगे। यह किसी भी एकल सरकारी योजना पर किए जाने वाले व्यय से कहीं अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार बढ़ते कर्ज और ब्याज भुगतान का बोझ राज्य की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरे की घंटी है।

लाडली बहना योजना बन रही भारी

माना जा रहा है कि सरकार को बार-बार कर्ज लेने के लिए मजबूर करने वाली योजनाओं में लाडली बहना योजना प्रमुख कारण बन रही है। योजना के तहत लाखों महिलाओं के खातों में प्रति माह एक निश्चित राशि ट्रांसफर की जाती है, जिससे सरकार पर मासिक आर्थिक दबाव बना हुआ है। इस योजना की लोकप्रियता राजनीतिक लाभ तो दे सकती है, लेकिन लंबे समय तक इसका वित्तीय भार उठाना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।

किस सीमा तक ले सकती है कर्ज सरकार?

वित्त विभाग के अधिकारियों के अनुसार, राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) के तीन प्रतिशत तक का कर्ज लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आधा प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज ऊर्जा और नगरीय विकास के क्षेत्रों में आधारभूत सुधार के लिए अनुमन्य है। अभी तक सरकार ने जितना भी कर्ज लिया है, वह राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम की सीमाओं के भीतर रहा है।

क्यों साल की शुरुआत में लेती है सरकार कर्ज?

वित्तीय वर्ष की शुरुआत में कर्ज की ब्याज दरें अपेक्षाकृत कम होती हैं। यही कारण है कि अधिकतर राज्य वर्ष के पहले ही चरण में कर्ज लेना पसंद करते हैं ताकि कम दर पर अधिक पूंजी प्राप्त हो सके। लेकिन कर्ज लेकर योजनाओं को संचालित करना एक अस्थायी समाधान मात्र है, जिसकी सीमा राज्य की भुगतान क्षमता पर निर्भर करती है।

कांग्रेस का आरोप : भाजपा सरकार बना रही "कर्ज प्रदेश"

सरकार की ऋण नीति पर कांग्रेस ने तीखा हमला बोला है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा, "मध्यप्रदेश की मोहन सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है। प्रदेश लगातार आर्थिक बोझ के नीचे दबता जा रहा है। भाजपा सरकार ने प्रदेश को 'कर्ज प्रदेश' बना दिया है।"

उन्होंने आरोप लगाया कि लाडली बहना जैसी योजनाओं को चुनावी लाभ के लिए लागू किया गया है, जिनका आर्थिक रूप से कोई दीर्घकालिक आधार नहीं है। सिंघार ने यह भी मांग की कि सरकार यह स्पष्ट करे कि लिए गए कर्ज का उपयोग कहां-कहां किया जा रहा है।

प्रदेश कांग्रेस के अन्य पदाधिकारियों ने भी आरोप लगाया है कि अब तक जो भी कर्ज लिया गया है, उसका प्रत्यक्ष लाभ जनता को नहीं मिला है। जनहित के नाम पर योजनाओं को प्रचारित जरूर किया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर उनके परिणाम संदिग्ध हैं।

आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि किसी भी राज्य के लिए कर्ज लेना एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन उसका उपयोग यदि पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के साथ न किया जाए, तो यह संकट में बदल सकता है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह हर वर्ष श्वेतपत्र जारी कर बताए कि कर्ज का कितना भाग कहां खर्च किया गया है।

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