कर्नाटक में दलित ईसाई बनाम दलित हिंदू! आरक्षण की लड़ाई में धर्म बना सबसे बड़ा सवाल

04:03 PM May 07, 2025 | Rajan Chaudhary

बेंगलुरु: कर्नाटक में अनुसूचित जातियों (SCs) के आंतरिक आरक्षण के लिए जारी व्यापक जनगणना के बीच "दलित ईसाइयों" की पहचान एक बड़ा और विवादास्पद मुद्दा बनकर उभरा है।

जहां दलित राइट समूह (मुख्य रूप से होलेया समुदाय) दलित ईसाइयों के लिए एक अलग कॉलम की मांग कर रहे हैं, वहीं दलित लेफ्ट समूह (जैसे मादीगा समुदाय) का कहना है कि धर्म परिवर्तन के बाद भी मूल जाति के रूप में अपनी पहचान बनाए रखना आरक्षण लाभों को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है। इसी बीच, दलित क्रिश्चियन फेडरेशन का तर्क है कि धर्म के आधार पर पहचान से राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार होगा।

यह सर्वे पूर्व न्यायाधीश एच. एन. नागमोहन दास की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा किया जा रहा है, जिसमें राज्य की 101 अनुसूचित जातियों को कवर किया जाएगा। यह आयोग जनसंख्या आंकड़ों के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का मूल्यांकन करेगा, जो अनुसूचित जातियों के लिए निर्धारित 17% आरक्षण के भीतर आंतरिक आरक्षण तय करने का आधार बनेगा। अनुसूचित जातियों की कुल जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का 18.27% यानी लगभग 1.09 करोड़ है।

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आंतरिक आरक्षण की पुरानी मांग

दलित लेफ्ट समुदायों की यह लंबे समय से मांग रही है कि आरक्षण लाभों का बड़ा हिस्सा दलित राइट समुदायों को मिल रहा है। वे आरक्षण को दलित लेफ्ट, दलित राइट और भुवी, कोरमा, कोरचा, लांबानी जैसी "स्पर्श्य" अनुसूचित जातियों के बीच समान रूप से बांटने की मांग कर रहे हैं।

न्यायालयों का रुख और धार्मिक पहचान का सवाल

न्यायालयों ने यह स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जातियों के आरक्षण का आधार जाति होना चाहिए, जबकि ईसाई धर्म में जाति की कोई मान्यता नहीं है। इसी आधार पर दलित राइट समूह आयोग से मांग कर रहे हैं कि दलित ईसाइयों के लिए एक अलग कॉलम रखा जाए, जिससे उन्हें एससी आरक्षण से बाहर रखा जा सके।

चाळवाड़ी महासभा से जुड़े एक सदस्य ने बताया, “आयोग को चाहिए कि वह दलित ईसाइयों को अपने धर्म की पहचान दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित करे, ताकि उन्हें एससी आरक्षण मैट्रिक्स से बाहर किया जा सके। कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसकी अध्यक्षता के. जयप्रकाश हेगड़े कर रहे हैं, ने भी दलित ईसाइयों को पिछड़ा वर्ग आरक्षण में शामिल करने की सिफारिश की है।”

कलबुर्गी स्थित धम्म दीप बुद्ध विहार ने भी आयोग को एक याचिका सौंप कर जनगणना में धर्म कॉलम शामिल करने की मांग की है।

आंकड़ों में असहमति

कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा 2015 में कराए गए सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 9.47 लाख थी। इसमें ब्राह्मण ईसाई, कुरुबा ईसाई, होलेया ईसाई, जालगारा ईसाई, मादीगा ईसाई, रेड्डी ईसाई, विश्वकर्मा ईसाई, वोक्कालिगा ईसाई और वाल्मीकि ईसाई जैसी जाति-आधारित ईसाई उप-समुदाय शामिल थे। सर्वे में यह भी पाया गया कि करीब 12,865 अनुसूचित जाति के लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित हुए हैं और इन्हें पिछड़ा वर्ग की श्रेणी 1B (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) में शामिल करने की सिफारिश की गई थी।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर मतभेद

दलित लेफ्ट समूहों का मानना है कि विशेषकर उत्तर कर्नाटक में उनके समुदाय के कई लोगों ने जातीय भेदभाव, सामाजिक पिछड़ापन, ऊंची जातियों द्वारा शोषण और गरीबी के कारण ईसाई धर्म अपना लिया।

मादीगा समुदाय के बसवराज कौथल ने कहा, “धर्म परिवर्तन के बावजूद उनकी सामाजिक स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। यदि वे खुद को केवल ईसाई के रूप में दर्ज कराते हैं, तो आरक्षण लाभों से वंचित होने का खतरा है। हम लोगों को इस बात के लिए जागरूक कर रहे हैं कि वे जनगणना में अपनी जाति पहचान बनाए रखें।”

वहीं, दलित क्रिश्चियन फेडरेशन के अध्यक्ष और चर्च ऑफ साउथ इंडिया के पादरी डी. मनोहर चंद्र प्रसाद का कहना है, “हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि वे खुद को दलित ईसाई के रूप में दर्ज कराएं। नई सिफारिशों के तहत उन्हें पिछड़ा वर्ग में आरक्षण का लाभ मिल रहा है, इसलिए आरक्षण छूटने का कोई डर नहीं है।”

उन्होंने आयोग द्वारा बताई गई ईसाई जनसंख्या के आंकड़ों पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “हमारे 2018 के सर्वे में राज्य में ईसाई जनसंख्या लगभग 40 लाख, यानी करीब 6% पाई गई थी। सही आंकड़ा हमें राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग में मदद करेगा।”